कैंसर के बाद संभव होगा स्तन का पुनर्विकास

स्तन कैंसर का सबसे प्रभावी इलाज मास्टेक्टोमी अर्थात् कैंसर ग्रस्त स्तन को पूरा काटकर निकाल देना माना जाता है लेकिन स्तन निकाल देने के कारण महिला को ताउम्र भयानक मानसिक त्रासदी एवं हीन भावना से गुजरना पड़ता है। लेकिन अब आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने सर्जरी की एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिसकी मदद से स्तन कैंसर से पीड़ित महिला में मास्टेक्टोमी के बाद स्तन को दोबारा विकसित करना संभव हो सकता है। इससे रोगी महिला के शारीरिक सौंदर्य पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा और न ही उसे कोई मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ेगा।
इस तकनीक के तहत् महिला के वसा उतक का सैंम्पल युक्त स्तन के आकार का चैम्बर छाती की त्वचा के नीचे प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। उसके बाद वसा उतक से एक रक्त नलिका को जोड़ दिया जाता है ताकि यह चैम्बर छह से आठ महीनों में वसा उतक से पूरी तरह से भर जाए।
मेलबर्न के बरनार्ड ओ'ब्रियेन इंस्टीट्युट ऑफ माइक्रोसर्जरी के नेतृत्व में विकसित इस तकनीक से 24 महीनों के अंदर एक बायोडिग्रेडेबल चैम्बर विकसित हो जाने की उम्मीद है। यह चैम्बर एक बार भर जाने के बाद घुल जाएगा।
इंस्टीट्युट के मुख्य सर्जन डा. फिलिप मारजेला कहते हैं, ''हमलोगों ने कुछ जानवरों के मॉडलों में इस तकनीक का परीक्षण कर लिया है ताकि मनुष्यों में इसके परीक्षण से पहले हम यह सुनिश्चित कर लें कि यह तकनीक पूरी तरह से सुरक्षित है। हमलोग अगले तीन से छह महीनों में एक आदर्श परीक्षण शुरू कर रहे हैं। यह परीक्षण पहले पांच-छह महिलाओं में यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाएगा कि शरीर स्तन में अपने वसा की आपूर्ति दोबारा कर सकता है।''
मारजेला कहते हैं कि यह तकनीक शरीर के अपने अंदरूनी रिक्त जगहों को भरने के व्यवहार पर आधारित है। लेकिन इसमें वसा के विकास को उत्तेजित करने के लिए जेल की तरह का एक पदार्थ भी इंजेक्ट किया जा सकता है।
मारजेला कहते हैं, ''प्रकृति किसी रिक्त स्थान से नफरत करता है इसलिए चूंकि चैम्बर भी खाली है इसलिए इसे शरीर के द्वारा भरा जाना चाहिए।''
इस शोध में शामिल महिलाओं ने या तो मास्टेक्टोमी या आंशिक मास्टेक्टोमी कराया है लेकिन फिर भी उनके स्तन में कोई कमी या विषमता रह गयी है। इस जांच में एक पूरे स्तन का विकास नहीं किया जाएगा बल्कि इस तकनीक की व्यवहारिकता को साबित करने के लिए स्तन के क्षतिग्रस्त क्षेत्र में वसा का विकास किया जाएगा।
मारजेला कहते हैं, ''यह पुनरुत्पादक तकनीक स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं को मास्टेक्टॉमी के बाद परम्परागत स्तन पुनर्निमाण और प्रत्यारोपण के बजाय एक नया विकल्प दे सकता है। इस तकनीक का इस्तेमाल शरीर के अन्य क्षतिग्रस्त हिस्सों के मरम्मत में भी किया जा सकता है।
मारजेला कहते हैं, ''अब हमलोग इसी सिद्धांत पर शरीर के अन्य अंगों पर भी कार्य करने की योजना बना रहे हैं। एक ऐसा चैम्बर जो कोशिकाओं को सुरक्षा प्रदान करे और कोशिकाओं की वृद्धि होने पर उसे सुरक्षित रखे ताकि वह अंग अपने सामान्य क्रियाकलापों को पुनः स्थापित कर सके। 
आस्ट्रेलिया के नेशनल ब्रेस्ट एंड ओवेरियन कैंसर सेंटर ने कहा है कि यदि यह नयी तकनीक सफल हो जाती है तो हम स्तन कैंसर के समाधान में एक महत्वपूर्ण कदम और आगे बढ़ा लेंगे। सेंटर की डा. हेलन जोरबा कहती हैं, ''मास्टेक्टोमी करा चुकी महिलाओं के लिए टिशू इंजीनियरिंग का यह विचार वास्तव में उत्साहवर्द्धक है।''