कहीं आप एलर्जी से पीड़ित तो नहीं

सामान्य जीवन में हर किसी को किसी न किसी से एलर्जी होती ही है लेकिन कुछ लोगों के लिये यह गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन कर उनके जीवन को कष्टप्रद बना देती है। दुनिया में हर पांचवा व्यक्ति किसी न किसी किस्म की एलर्जी से ग्रस्त है। दमा एलर्जी का अत्यंत सामान्य रूप है जिसमें श्वास नली में फैलाव लाने वाली औषधियां काफी फायदेमंद है।
एलर्जी हमारे जीवन की अपरिहार्य बुराई है। सामान्य बोलचाल में नापसंदगी का पर्याय माने जाने वाली एलर्जी अत्यंत गंभीर किस्म की स्वास्थ्य समस्या है जिससे लगभग हर व्यक्ति को किसी न किसी रूप में दो-चार होना पड़ता है। किस व्यक्ति को किस चीज से एलर्जी हो सकती है यह कहना मुश्किल है। कहा जाता है कि इस आसमान के नीचे जितनी चीजें हैं सभी एलर्जी पैदा करती हैं। किसी को धूल कण से तो किसी को फूलों से, किसी को मछली से तो किसी को अंडे से एलर्जी हो सकती है। कर्मचारियों को गुस्सैल किस्म के बाॅस से और छात्रों को पिटाई करने वाले शिक्षकों से आम तौर पर एलर्जी होती है। यहां तक कि कई पत्नियों को अपने पतियों से और पतियों को अपनी पत्नियों से एलर्जी होती है। पति से एलर्जी होने के एक मामले में पति काम से घर लौटने पर जब पत्नी को बांहों में लेता था तो पत्नी की नाक में सुरसराहट होने लगती थी, छींकें आने लगती थी और सांस लेने में कठिनाई होती थी। काफी खोज-बीन और मशक्कत के बाद पता चला कि पति ने शौकिया तौर पर घुड़सवारी शुरू कर दी थी। दरअसल पति के कपड़ों में लगी घोड़े की रूसियां ही पत्नी के रोमांस रहित व्यवहार का कारण थी। पति ने घुड़सवारी के बदले जब गोल्फ खेलना शुरू कर दिया तो सब कुछ ठीक हो गया। 
एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में करीब 20 प्रतिशत लोग किसी न किसी तरह की एलर्जी से ग्रस्त हैं। आस्ट्रेलिया के बाल रोग विशेषज्ञ क्लीमेंस वाॅन पिरके ;1874.1929द्ध ने 1906 में पहली बार एलर्जी शब्द की व्याख्या की। एलर्जी शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के एलाॅस और अर्गोन शब्द को मिलाकर हुयी है। एलाॅस का अर्थ है भिन्न या परिवर्तित अवस्था तथा अर्गोन का अर्थ है क्रिया अथवा प्रतिक्रिया।
अर्थात एलर्जी में सामान्य स्थिति से हट कर भिन्न किस्म की क्रिया या प्रतिक्रिया होती है। 
एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थ एलर्गन कहलाते हैं। एलर्गनों की संख्या सैकड़ों में है। पनीर, गाय के दूध, आटा, अंडे, मछली और फलियां जैसे खाद्य पदार्थ, कई दवाईयां, रसायनिक पदार्थ, धूल, परागकण आदि सामान्य एलर्गन हैं। इन एलर्गनों के संपर्क में आने पर सांस लेने में कठिनाई, छींक, नाक से पानी आने, सूजन, खुजली, मितली, उल्टी, दस्त और पेट खराब होने जैसी समस्यायें उत्पन्न हो सकती हंै। 
एलर्जी है क्या और यह क्यों होती है। जब कोई भी बाह्य प्रोटीन शरीर में प्रवेश कर जाता है तो शरीर उसे शत्राु मान बैठता है और उसके विरुद्ध रसायनों का उत्पादन करने लगता है। वे सभी पदार्थ जो शरीर को रसायनों के निर्माण के लिये बाध्य करते हैं प्रतिजन (एंटीजन) कहलाते हैं। इस तरह से सभी एलर्गन एंटीजन हैं। हमारा शरीर इन प्रतिजनों के विरुद्ध जिन रसायनों को उत्पन्न करता है उन्हें प्रतिपिंड (एंटीबाॅडी) कहा जाता है। प्रतिपिंड दरअसल प्रोटीन अणु होते हैं और रक्त में मौजूद रहते हैं। 
शरीर की रोगविरोधी प्रणाली हानिकारक प्रोटीनों को अविलंब पहचान लेती है और उनके विरूद्ध प्रतिपिंड तैयार करने लगती है। लेकिन कई बार जीवाणुओं और विषाणुओं से शरीर की रक्षा करने वाला यह व्यापक रोगप्रतिरक्षण तंत्रा अपने मूल रास्ते से भटक कर एलर्जी जनित कष्टदायी लक्षणों को जन्म देता है। लेकिन किन्हीं जटिल प्रक्रमों की मदद से किसी स्वस्थ व्यक्ति की सामान्य रोगविरोधी प्रणाली हानिरहित प्रोटीन, जैसे भोजन के प्रोटीन, तथा हानिकारक ब्राह्य प्रोटीन जैसे विषाणुओं के अंतर को स्पष्ट रूप से पहचान लेती है। परन्तु एलर्जी के रोगी व्यक्ति की रोगविरोधी व्यवस्था ऐसा नहीं कर पाती है। वह किसी भी हानिरहित बाह्य प्रोटीन को हानिकारक समझकर प्रतिपिंड बनाना आरंभ कर देती है। इन हानिरहित प्रोटीनों के लिये निर्मित प्रतिपिंड आई जी वर्ग के इम्यूनोग्लोबुलिन होते हैं जो विशेष प्रकार की कोशिकाओं, जिन्हें मास्ट कोशिकायें कहते हैं, की सतह पर उपस्थित रहते हैं। ये कोशिकाएं त्वचा, भोजन और श्वास में बहुतायत में पायी जाती है। इनमें कई तरह के रासायनिक पदार्थ होते हैं जिनमें हिस्टामीन प्रमुख हैं। जब कभी कोई अहानिकारक प्रोटीन या एलर्गन जैसे परागकण, शरीर में प्रवेश करता है तो वह मास्ट कोशिकाओं तक पहुंचता है जिनकी सतह पर इस एलर्गन के विरोधी प्रतिपिंड पहले से ही मौजूद रहते हैं। मास्ट कोशिकाओं की सतह पर इन दोनों में भीषण संघर्ष होता है, कोशिकाएं टूट जाती हैं और अंदर का रासायनिक पदार्थ, हिस्टामीन मुक्त हो जाता है। थोड़ी मात्रा में शरीर के लिये लाभदायक इस हिस्टामीन के एकाएक काफी मात्रा में विमाचित होने से एलर्जिक प्रतिक्रियाएं प्रकट हो जाती हंै। 
दमा और परागज ज्वर (हे फीवर) संूघे जाने वाले एलर्गनों से उत्पन्न होने वाली दो प्रमुख एलर्जी है। दमा अर्थात अस्थमा यूनानी शब्द है जिसका अर्थ है हांफना या संास फूलना। 
भोजन की एलर्जी खाने के साथ जाने वाले एलर्गनों के कारण होती है। यह किसी भी भोजन से हो सकती है। परंतु यह अधिकतर दूध, आटा, अंडे और स्ट्राॅबेरीज, शेलफिश, गिरीदार फल तथा भोजन में मिलाये जाने वाले कुछ पदार्थों से होती है। इस एलर्जी में मितली, उल्टी तथा अतिसार के अलावा जीभ और होंठों में सूजन भी हो सकती है। अगर एलर्गन रक्त में पहुंच जाये तो त्वचा पर एक्जीमा की तरह चकत्ते हो सकते हैं। 
स्पर्श या संस्पर्शी एलर्गनों द्वारा जो एलर्जी होती है, उनमें संस्पर्शी त्वचाशोथ (कांटेक्ट डर्मेटाइटिस) या त्वचा की सूजन और हाइव्ज अथवा पित्ती (अर्टिकेरिया) मुख्य हंै। संस्पर्शी त्वचाशोथ एलर्जी आभूषणों या धोने के पाउडर में उपस्थित रसायनों के संपर्क से होती है। इसमें त्वचा पर खुजलाहट भरे फफोले हो जाते हैं। हाइव्ज कुछ पौधों के संसर्ग या ठंडे-गर्म पानी के उपयोग से होता है जिसमें लाल, खुजली भरी सूजन आ जाती है। 
एलर्जी का एक सुगम उपचार एलर्गनों से बचना है, परन्तु यह पहचान करना हमेशा आसान नहीं होता है कि कौन से पदार्थ से एलर्जी के लक्षण उभरते हैं। किसी व्यक्ति को  किस पदार्थ से एलर्जी है यह जानने के लिये प्रिक टेस्ट किये जाते हैं। 
मरीज को किसी विशेष एलर्गन के प्रति संवेदनरहित करने के लिये चिकित्सक उसी एलर्गन की थोड़ी-थोड़ी मात्रा बार-बार देते हैं इसका प्रयोजन शरीर में एक प्रतिरोधी प्रतिपिंड के निर्माण को बढ़ावा देना है। प्रतिरोधी प्रतिपिंड रक्त में एलर्गन को पकड़ कर उसे क्षीण और बेअसर बना देता है। इसके फलस्वरूप एलर्गन को मास्ट कोशिकाओं तक जाकर विस्फोटक प्रतिक्रिया करने का मौका नहीं मिलता है। कुछ दवाईयां भी एलर्जी की रोकथाम में काम में आती हैं।  जैसा कि बताया गया है कि हिस्टामीन एलर्जी के लिये उत्तरदायी है, अतः इसे नष्ट करने वाली औषधियां अर्थात एंटीहिस्टामीन बड़ी लाभदायक है। दूसरा उपाय यह है कि मास्ट कोशिकाओं से हिस्टामीन निकलने ही नहीं दिया जाये। सोडियम क्रोमोग्लाइकेट से यह संभव है, परन्तु यह औषधि हिस्टामीन के विमोचित होने से पहले ही लेने पर प्रभावी रहता है।  कोर्टिकोस्टेराॅयड नामक विशिष्ट औषधियां एलर्जी में बहुत लाभकारी हैं जबकि श्वास नलिकाओं में फैलाव लाने वाली औषधियां दमे के दौरों से छुटकारा दिलाती हंै।