कान बहना अत्यंत सामान्य समस्या है। शिशुओं को गलत तरीके से दूध पिलाने तथा नजला - जुकाम का समय पर इलाज नहीं कराने पर कान बहने की समस्या उत्पन्न हो सकती है। नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ ई.एन.टी.शल्य चिकित्सक डा.राजीव पुरी बताते हैं कि कान बहने की समस्या का सफलतापूर्वक इलाज हो सकता है लेकिन इसका लंबे समय तक इलाज नहीं कराने पर कान के पर्दे में छेद हो सकता है, सुनने की क्षमता जा सकती है और श्रवण शक्ति बहाल करने के लिये आपरेशन की जरूरत पड़ सकती है।
उदभव की उम्र इस समय 35 साल है। उसे बचपन से ही कान बहने की समस्या थी। जब भी उसे जुकाम होता था, कान से गंधहीन तरल निकलता रहता था। उसे कान में किसी तरह का दर्द भी नहीं होता था। दवाई लेने पर यह जुकाम के साथ ही बंद हो जाता था। उसके माता-पिता ने इसे जुकाम का ही एक लक्षण मानकर इसे किसी विशेषज्ञ से नहीं दिखाया। लेकिन धीरे-धीरे उसे कम सुनाई पड़ने लगा।
वैभव की तरह सुनयना को भी कान बहने की समस्या थी। वह जब दो साल की थी तभी से उसकी कान बह रही हैं। वैभव के विपरीत सुनयना की कान से निकलने वाले तरह से बदबू भी आती है और दवाई लेने से भी कान का बहना नहीं रूकता है। इसके अलावा उसकी सुनने की क्षमता भी कम होती गयी।
वैभव और सुनयना की तरह हमारे देश में हजारों लोग कान बहने की समस्या की अनदेखी के कारण सुनने की क्षमता खो चुके हैं। कान बहने के कारण कान में किसी तरह का दर्द नहीं होने अथवा बुखार जैसी किसी समस्या के नहीं होने के कारण ज्यादातर लोग इसके इलाज के मामले में लापरवाही बरतते हैं लेकिन यह लापरवाही बाद में त्रासदी बन जाती है।
नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ ई.एन.टी. सर्जन डा. राजीव पुरी बताते हैं कि वैभव की जांच करने से पता चला कि उसकी कान में बार-बार संक्रमण के कारण उसकी कान के पर्दे में स्थायी तौर पर छेद बन गया है। दूसरी तरफ सुनयना को काॅलेस्टेटोमा नामक क्लोस्एक खतरनाक किस्म की अवस्था से ग्रस्त पाया गया जिसके इलाज के लिये तत्काल आपरेशन करने की जरूरत पड़ती है।
कान बहना एक सामान्य समस्या है जो किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है लेकिन बच्चों खासकर गरीब बच्चों यह ज्यादा होती है।
गले या नाक में संक्रमण होने पर भी यह समस्या हो सकती है। इस्च्यूरिन ट्यूब के जरिये यह संक्रमण कान में चला जाता है।
कान बहने के कारण सुनाई कम पड़ता है। कान के निकट मस्तिष्क के महत्वपूर्ण हिस्से होने के कारण कान के संक्रमण अधिक समय तक रहने पर मस्तिष्क में पहुंच सकते हैं।
डा. राजीव पुरी बताते हैं कि बच्चों में कान के संक्रमण का एक प्रमुख कारण बच्चे को सही तरीके से दूध नहीं पिलाना है। इसके अलावा नजला-जुकाम का इलाज समय पर नहीं कराने पर भी कान बहने की समस्या उत्पन्न हो सकती है। कान में संक्रमण, चोट, परजीवियों या अन्य सूक्ष्म जीवाणुओं से होने वाले रोग आदि के कारण भी कान कान बहने लगता है। हालांकि कुछ लोगों में मैल बनने की प्रवृति ही अधिक होती है ऐसे में थोड़ा स्राव होना सामान्य बात है। लेकिन कान को साफ रखने से यह समस्या ठीक हो जाती है। लेकिन अधिकतर मामलों में कान बहना कान में गंभीर संक्रमण या माइट के कारण होता है। सबसे पहले कान में खरोंच आती है, उसके बाद वहां सूजन आ जाती है और फिर कान की नली से स्राव निकलने लगता है। इसके अलावा कान से बदबू भी आ सकती है। ऐसी स्थिति में कान में जीवाणु या यीस्ट संक्रमण भी हो सकता है। प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करने वाली बीमारियां तथा त्वचा की बीमारियां इस समस्या को और बढ़ाती हैं।
कान बहने की आरंभिक अवस्था में दवाइयों से इलाज हो सकता है, लेकिन कई बच्चों में कई बार कान बहने का पता काफी देर से चलता है जबकि कई बच्चों में कान बहने का पता चलने पर भी समय पर इलाज नहीं कराया जाता है और ऐसी स्थिति में कान के पर्दे को स्थायी नुकसान होने की आशंका रहती है।
डा. राजीव पुरी बताते हैं कि कान के पर्दे में छेद होने पर माइरिंगोप्लास्टी नामक आपरेशन करना पड़ता है। इस आपरेशन से श्रवण शक्ति बढ़ायी जा सकती है। कान के पर्दे में छेद अगर लंबे समय तक रहे तो कान की हड्डी गल सकती है। हड्डी के गलने की प्रक्रिया मस्तिष्क तक जा सकती है जिससे मस्तिष्क में मवाद बन सकता है। इसका आपरेशन की मदद से तत्काल इलाज होना चाहिये अन्यथा जान को खतरा हो सकता है। डा.पुरी बताते हैं कि तीस साल पहले की तुलना में आज माइक्रोस्कोपिक शल्य उपकरणों के इजाद होने के कारण कान के आपरेशन अत्यंत सुरक्षित एवं कारगर हो गये हैं।
कान बहने से हो सकता है बहरापन
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