बच्चों को खान-पान में लापरवाही, मौसम बदलने, सर्दी-गर्मी के असर तथा विभिन्न जीवाणुओं एवं विषाणुओं के संक्रमण से तरह-तरह की बीमारियां हो सकती हैं। आज के समय में बढ़ते प्रदूषण एवं जीवाणुओं तथा विषाणुओं के विभिन्न रूपों में प्रकट होने के कारण बच्चों को बीमारियां ज्यादा सताने लगी हंै। इसके बावजूद एक तथ्य महत्वपूर्ण है कि बच्चों को होने वाली ज्यादातर बीमारियां ऐसी होती हैं जिनसे थोड़ी सी सावधानी बरत कर तथा सही जानकारियां हासिल कर बच्चों को बचाया जा सकता है।
जल संक्रमण से होने वाली बीमारियां
देश में बच्चों की मृत्युदर अधिक होने का प्रमुख कारण दूषित पेयजल है। पीने के पानी में बैक्टीरिया, वायरस इत्यादि नहीं होने चाहिए क्योंकि पेयजल इनकी मौजूदगी स्वास्थ्य की दृष्टि से खतरनाक होती है।
भारत और दूसरे उष्ण-कटिबंधीय देशों में बच्चों की अधिकतर बीमारियां जल संक्रमण या दूषित पेयजल से होती हैं। अप्रैल से लेकर सितंबर महीने तक जल संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा होता है। इसलिए इन दिनों ऐसी बीमारियों के होने की आशंका भी ज्यादा होती है, इनमें कई बीमारियां जानलेवा भी होती हैं। इनमें प्रमुख हैं टायफाइड, हेपाटाइटिस, गैस्ट्रोएंटेराइटिस (दस्त) इत्यादि। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पांच वर्ष की आयु से कम उम्र के बच्चों में 90 प्रतिशत बीमारियां जल संक्रमण के कारण होती हंै।
जल संक्रमण की जांच
कल्चर परीक्षण से पानी संक्रमण होने का पता लगाया जा सकता है, मगर यह काम व्यक्तिगत स्तर पर कर पाना संभव नहीं है, क्योंकि यह काफी महंगा पड़ता है। हर 10-15 दिनों में पानी की एक बार जांच जरूरी है। यह कार्य पेयजल की आपूर्ति करने वाली संस्थाएं या निजी स्वयंसेवी संगठन कर सकते हैं मगर यहां एक बात पर ध्यान देना जरूरी है कि सप्लाई लाइनों का रखरखाव ठीक न होने या घर में स्टोरेज टेंक का ढक्कन खुला रहने पर साफ पानी फिर से संक्रमित हो सकता है।
पेयजल संक्रमण से बचने का सबसे सुरक्षित तरीका यह है कि पानी को फिल्टर कर लिया जाए। बाजार में कई प्रकार के फिल्टर उपलब्ध हैं। अगर ये उपलब्ध नहीं हों तो छनना पत्रा या साफ कपड़े का उपयोग किया जा सकता है। इसके बाद पानी को 10-15 मिनट तक उबालना चाहिए। इस तरह का पानी 5-6 घंटे तक काम में लाया जा सकता है। पानी को साफ करने के लिए रासायनिक उपायों में ब्लीचिंग पाउडर, हाईटेस्ट हाइपोक्लोराइट या एच.टी.एस. क्लोरीन टेबलेट या आयोडीन उपयोग किया जा सकता है। पोटैशियम परमैगनेट (लाल पोटाश) से भी पानी को संक्रमण से मुक्त किया जा सकता है।
जल संक्रमण से बच्चों को बीमारियां
यों तो जल संक्रमण से कई प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं, मगर वाइरल हेपाटाइटिस या पीलिया, पोलियो, टाइफाइड, हैजा, अतिसार, रोटा वायरस, डायरिया, अमीबायसिस व जिआरडियासिस प्रमुख हैं।
हेपाटाइटिस
वाइरल हेपाटाइटिस बच्चों को होने वाली एक प्रमुख बीमारी है। इसे आम बोलचाल की भाषा में पीलिया, कमला रोग, पांडु रोग या जांडिस के नाम से जाना जाता है, वाइरल हेपाटाइटिस कई प्रकार की होती है - हेपाटाइटिस 'ए', हेपाटाइटिस 'बी', हेपाटाइटिस 'सी' एवं हेपाटाइटिस 'ई'। इसमें पानी से हेपाटाइटिस 'ए' एवं 'ई' होती है। हेपाटाइटिस 'बी' एवं 'सी' रक्त संक्रमण से होता है। हेपाटाइटिस 'ए' एवं 'ई' बीमारी पानी के संक्रमण से फैलती है। यह एंटोवाइरस-72 (7) नामक विषाणु से होती है। इससे लीवर में सूजन आ जाती है, रोगी की भूख खत्म होने लगती है, बुखार आ सकता है या ठंड लगने से सिरदर्द, थकान, कमजोरी आदि की शिकायत हो सकती है। रोग बढ़ने पर उल्टी के साथ सिर में चक्कर आने शुरू हो जाते हैं तथा आंखों और पेशाब का रंग पीला पड़ जाता है। इस बीमारी में मौत का खतरा कम रहता है।
हेपाटाइटिस का उपचार
एक बार हेपाटाइटिस 'ए' या 'ई' हो जाये तो इसकी कोई दवा नहीं है। हेपाटाइटिस 'ए' की रोकथाम का टीका बाजार में उपलब्ध है। इसकी दो खुराक छह महीने के अंतर पर लगती है। हेपाटाइटिस 'बी' भी वैक्सीन से रोकी जा सकती है। इसकी तीन खुराकें 0, 1 एवं 6 महीने पर लगानी पड़ती है। हेपाटाइटिस 'ए' के टीके का असर 15-20 वर्ष तक रहता है जबकि हेपाटाइटिस 'बी' का टीका हर पांच साल बाद फिर से लगवाना चाहिए। हेपाटाइटिस चार से छह सप्ताह में खुद ठीक हो जाती है, मगर रोगी को पूरा आराम एवं कार्बोहाइड्रेट युक्त और सुपाच्य भोजन देना जरूरी है। बच्चे को सभी चीजें दें लेकिन वसा युक्त चीजों का परहेज करें। रोगी को चीनी एवं अन्य मीठी चीजें खूब दें। बाहरी चीजें न खाने-पीने से इस बीमारी से बचा जा सकता है।
पोलियो
जल संक्रमण से होने वाली दूसरी प्रमुख बीमारी 'पोलियो' है। यह भी पानी में मौजूद एक वायरस से फैलती है। इसका सर्वाधिक खतरा छह माह से लेकर तीन वर्ष की उम्र तक होता है। पोलियो से बच्चा स्थाई रूप से विकलांग हो सकता है। यहां एक बात जान लेना जरूरी है कि आम तौर पर लोग यही समझते हैं कि पोलियो हाथ - पैर में होता है, मगर यह सच नहीं है। यह स्नायुतंत्रा की बीमारी है और किसी भी अंग में हो सकती है। यह दिमाग, गले आदि में भी हो सकता है। पोलियो के असर से बच्चे को लकवा मार सकता है, वह बहरा, अंधा, गूंगा भी हो सकता है।
पोलियो से बचाव के लिए ओरल पोलियो वैक्सीन आती है। यह जन्म से छह सप्ताह बाद शुरू की जा जाती है और हर 4-6 सप्ताह पर इसकी एक खुराक दी जाती है। इसकी कम से कम तीन या अधिकतम सात खुराक दी जाती है। सात खुराक पर पोलियो से शर्तिया बचा जा सकता है। पोलियो एक बार हो जाए तो आमतौर पर इसकी दवा नहीं है। पहले यह बीमारी दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को नहीं होती थी, अब तो दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों में भी इस बीमारी का खतरा रहता है। इसमें रोगी को तेज बुखार रहता है। परंतु मुश्किल यह है कि बुखार अन्य कारणों से भी हो सकता है। टाइफाइड बुखार की पहचान तीन से पांच दिन के पहले हो सकती है। बुखार टाइफाइड है या नहीं जाने बिना रोगी का तापमान चार्ट बनाएं। इसमें बुखार जल्दी-जल्दी आता है और यही इसका प्रमुख लक्षण है।
टाइफाइड
टाइफाइड से बचाव के लिए शत-प्रतिशत सुरक्षित कोई वैक्सीन नहीं है मगर टाइफाइड के टीके लगवाकर इसका खतरा 60-90 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। दो वर्ष की उम्र में बच्चे को इसका टीका लगाया जाता है। आजकल इसका उपचार टाइफाइड वैक्सीन जैसे 'टाइफाइड वी' आदि का टीका ही काफी है और हर तीन साल पर इसे दोबारा दिया जाता है। 12 वर्ष से 16 वर्ष की उम्र तक इसे लगवाने चाहिए। बुखार तेज हो तो भी रोगी को पानी से नहाना बंद नहीं करना चाहिए। उसे कम्बल से न ढकें और खूब पानी पिलाएं।
हैजा
जल संक्रमण से फैलने वाली एक और भी बीमारी है - हैजा। पिछले कुछ वर्षों में महानगरों और इसके आसपास हैजा का प्रकोप बढ़ा है। हैजा बैक्टीरिया से होने वाली जानलेवा बीमारी है। दूषित खानपान से यह बीमारी फैलती है इसलिए फुटपाथ पर बिकने वाली चीजों जैसे - कटे फल, बासी भोजन, गन्ने का रस, पानी आदि नहीं लेना चाहिए। पानी उबाल कर और विसंक्रमित कर ही पीना चाहिए। इस बीमारी में जल्दी-जल्दी और बहुत पतले दस्त आते हैं। दस्त का रंग माड़ की तरह सफेद होता है। इस बीमारी से निर्जलीकरण (पानी की कमी) होता है इसलिए रोगी का जलस्तर बनाये रखें। हर एक या डेढ़ घंटे में ओ.आर.एस. जैसे 'इलेक्ट्राल' और काफी मात्रा में पानी दें। तुरंत डाक्टर को दिखायें।
अन्य बीमारियां
जल संक्रमण की अन्य प्रमुख बीमारियां अतिसार, जिआरडीयासिस आदि हैं। ये बीमारियां जल या पेयजल में रोगी का मल मिलने से होती हैे इसलिए पेयजल के संक्रमण मुक्त होने का ख्याल रखें। इन बीमारियों में मल बदबूदार होते हैं और बार-बार आते हैं। इन बीमारियों में मौत का प्रमुख कारण निर्जलीकरण है। इसलिए इस बात पर गौर करना जरूरी है कि बच्चा सामान्य अवस्था में जितना पेशाब कर सकता है उतना कर रहा है या नहीं। अगर बच्चा पेशाब कम कर रहा हो और सुस्त दिख रहा हो तो तुरंत ओ.आर.एस. और खूब पानी पिलाएं। उसका खाना-पीना बंद नहीं करें।
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