हृदय रोगों, उच्च रक्त चाप, मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियों के जनक माने जाने वाले अत्यधिक मोटापे से स्थायी तौर पर छुटकारा दिलाने वाली आधुनिक शल्य चिकित्सा अब भारत में भी उपलब्ध हो गयी है।
लैपरोस्कोपी आधारित बैरिएट्रिक सर्जरी नामक यह शल्य चिकित्सा 100 किलोग्राम से अधिक वजन वाले लोगों के लिए कारगर विकल्प साबित हो रही है।
एक बार लैपरोस्कोपिक सर्जरी कराने वजन 30 से 40 किलोग्राम का शारीरिक वजन घट जाता है। विदेशों में इस सर्जरी पर 30 से 40 लाख रूपये का खर्च आता है लेकिन भारत में यह सर्जरी 3 से 4 लाख में ही हो जाती है। यही कारण है कि इस सर्जरी को कराने के लिये विदेश से भी काफी संख्या में लोग भारत आने लगे हैं।
बैरिएट्रिक सर्जरी के विशेषज्ञ डा. अरूण प्रसाद बताते हैं कि अमरीका और यूरोप में यह सर्जरी काफी कारगर एवं सफल साबित हुयी है और अब भारत में भी यह तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के लैपरोस्कोपिक सर्जन डा. प्रसाद कहते हैं कि आज के समय में विलासितापूर्ण जीवन शैली तथा वसायुक्त एवं डिब्बाबंद आहार के बढ़ते प्रचलन के कारण लोगों में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में एक अरब 20 करोड लोग मोटे लोगों की श्रेणी में हैं। विकसित देशों में मोटापा एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है और यह समस्या भारत जैसे विकासशील देशें में भी बढ़ रही है। एक अनुमान के अनुसार केवल भारत में ढाई करोड लोग मोटापे से ग्रस्त हैं।
रोजमर्रे की सक्रियता तथा जीवन काल को घटा देने वाले मोटापे को मधुमेह, उच्च रक्त चाप, कोरोनरी आर्टरी डिजिज, हाइपरलिपिडेमिया, जोड़ों की समस्याओं और यहां तक कि कैंसर के लिये भी जिम्मेदार पाया गया है।
डा. प्रसाद बताते हैं कि सामान्य मोटापे से डायटिंग और नियमित व्यायाम की मदद से कुछ हद तक निजात पाया जा सकता है लेकिन अत्यधिक मोटापे की स्थिति में ये उपाय मददगार नहीं होते लेकिन बैरिएट्रिक सर्जरी की मदद से अत्यधिक मोटापे से छुटकारा पाया जा सकता है।
डा़ प्रसाद के अनुसार भारत में कई बड़े अस्पतालों में इस सर्जरी की शुरूआत हो गयी है हालांकि अभी भारत में जो लोग इस सर्जरी का लाभ ले रहे हैं उनमें ज्यादातर विदेशों में रहने वाले लोग ही हैं। इसका कारण है कि अन्य देशों की तुलना में भारत में इस सर्जरी पर कम खर्च आता है। धीरे-धीरे भारतीयों में भी इस सर्जरी को लेकर जानकारी एवं दिलचस्पी बढ़ रही है।
डा. प्रसाद के अनुसार बैरिएट्रिक सर्जरी दो तरीकों से की जाती है - बैंडिंग और गैस्ट्रिक बाईपास । बैंडिग में पेट के उपर एक बैंड लगा दिया जाता है जबकि जबकि गैस्ट्रिक बाईपास में आंत में लैपेरोसोपिक बाईपास सर्जरी की जाती है।
गैस्ट्रिक बाइपास और गैस्ट्रिक बैंडिंग की मदद से की जाने वाली इस सर्जरी के द्वारा अमाशय का आकार छोटा कर दिया जाता है जिससे मरीज अधिक नहीं खा पाता है और उसका अपने आप वजन घट जाता हैं।
लैपरोस्कोपिक गैस्ट्रिक बाइपास एवं गैस्ट्रिक बैंडिंग सर्जरी भारतीयों के लिये अनुकूल है क्योंकि वे कार्बोहाइड्रेट युक्त आहार ग्रहण करते हैं। भारतीयों में जो मोटापा प्रचलित है वह पेट से जुड़ा हुआ है और इस तरह का मोटापा मधुमेह, रक्त चाप और अधिक कालेस्ट्राल जैसी समस्याओं को जन्म दे सकता है और इनकी परिणति किडनी एवं दिल की बीमारियों के रूप में हो सकती है।
गैस्ट्रिक बैंडिंग वजन घटाने के लिये यूरोप और आस्ट्रेलिया और यूरोप में की जाने वाली सबसे प्रचलित सर्जरी है जबकि लैपरोस्कोपिक गैस्ट्रिक बाइपास अमरीका में अधिक लोकप्रिय है।
डा. अरूण प्रसाद बताते हैं कि लैपरोस्कोपिक गैस्ट्रिक बैंडिंग सर्जरी में पेट के उपरी भाग पर सिलिकन पटटी लगा दी जाती है ताकि उसकी क्षमता घट जाये। यह बहुत ही सुरक्षित सर्जरी है और इसके लिये केवल एक रात अस्पताल में रहने की जरूरत होती है। इससे व्यक्ति कम भोजन ग्रहण करता है और इसके बार नियमित रूप से वजन घटता रहता हैं। जबकि लैपरोस्कोपित गैस्ट्रिक बाइपास बड़ी सर्जरी है और इसके लिये चार दिन अस्पताल में रहना पड़ता हैं। इस सर्जरी में स्टेपल्स की मदद से अमाशय में छोटे-छोटे पॉच बना दिये जाते हैं इससे व्यक्ति की खाने की क्षमता घट जाती है।
यह सर्जरी न केवल भोजन खाने की क्षमता को कम करता है बल्कि भोजन पचाने की क्षमता को भी घटा देती है। अमाशय में बनाये गये छोटे पॉच के कारण पेट जल्द ही मस्तिक को पेट भर जाने और तृप्त हो जाने का संकेत भेज देता हैं इस दोहरे असर के कारण इस सर्जरी में वजन तेजी से घटता है।
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