इराक की 8 महीने बच्ची की जटिल मस्तिष्क समस्या का इलाज

गुरुग्राम : इराक की 8 महीने की बच्ची के मस्तिष्क की रक्त वाहिका में घातक सूजन का गुरूग्राम स्थित आर्टिमस अस्पताल में सफलता पूर्वक इलाज किया गया। बच्ची के मस्तिष्क में काफी बड़ी सूजन थी जो मस्तिष्क के अंदर पूर्ण रक्त प्रवाह में रुकावट पैदा कर रही थी, जो घातक हो सकती थी।
बच्ची के माता-पिता ने बताया कि बच्ची जन्म के बाद से ही बहुत रोती थी और उसे इराक के कई अस्पतालों में इलाज के लिए ले जाया गया था। एमआरआई से मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में एक बड़ी सूजन का पता चला था लेकिन बच्ची की उम्र बहुत कम होने के कारण इलाज नहीं किया जा सका क्योंकि बच्ची की उम्र बहुत कम होने के कारण सर्जरी जोखिम भरी मानी जा रही थी। हालांकि, समय के साथ यह देखा गया कि उसके तंत्रिका संबंधी विकास में देरी हो रही थी और मस्तिष्क सामान्य रूप से विकसित नहीं हो रहा था। उसे एक राय लेेने के लिए गुरूग्राम के आर्टिमस अस्पताल लाया गया, जहां डॉ. विपुल गुप्ता की अगुआई वाली न्यूरो- इंटरवेंषनल टीम ने इस मामले की जांच की।
आर्टिमस हाॅस्पिटल के अग्रिम इंस्टीच्यूट फाॅर न्यूरो साइंसेज“के न्यूरोइंटरवेंषन के निदेषक डाॅ. विपुल गुप्ता ने कहा, ''रोगी के इतिहास की पूरी जानकारी लेने के बाद उसकी विस्तृत जांच की गई। एमआरआई रिपोर्टों से  मस्तिष्क में रक्त वाहिका में एक बड़े सूजन का पता चला जो मस्तिष्क के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को दबा रही थी। सूजन वाली रक्त वाहिका कम रक्त प्रवाह और मस्तिष्क के दबाव में बदलाव के कारण मस्तिष्क के बाकी हिस्सों में संकुचन पैदा कर रही थी, जो उसके समग्र विकास में बाधा डाल रहा था। यह स्थिति बच्चे के लिए बहुत जटिल और जोखिम भरी थी लेकिन टीम ने प्रक्रिया करने का फैसला किया। रक्त वाहिका में सूजन के कारण का पता लगाने के लिए एंजियोग्राफी की गई और इसका इलाज करने की योजना बनाई गई।'' 
जांच में मस्तिश्क में रक्त की आपूर्ति करने वाली रक्त वाहिकाओं (धमनी) और मस्तिश्क से रक्त को बाहर ले जाने वाली रक्त वाहिकाओं (जिन्हें नस कहा जाता है) के बीच असामान्य संबंध पाया गया। यह स्थिति  आर्टिरियो-वेनस फिस्टुला (एवीएफ) के रूप में जानी जाती है। गलत संबंध के कारण रक्त को बहुत अधिक दबाव के साथ नसों में सीधे धकेला जा रहा था जिसके कारण सूजन हो गई। टीम ने एम्बोलिजेशन तकनीक का उपयोग करके तुरंत इसका इलाज करने और उसे बंद करने का फैसला किया।
इस टीम में षामिल न्यूरो इंटरवेंषनलिस्ट डाॅ. राज श्रीनिवासन पार्थसारथी ने कहा, ''माइक्रोकैथेटर नामक 1 मिमी से भी कम मोटाई की एक बहुत छोटी ट्यूब को पैर की रक्त वाहिकाओं से डाला गया और उसे असामान्य कनेक्शन की जगह पर ले जाया गया और क्वाइल्स के नाम से जाने जाने वाले प्लैटिनम के छल्ले को कनेक्षन को बंद करने के लिए धीरे-धीरे वहां रखा गया और मस्तिश्क के बाकी हिस्से में रक्त प्रवाह को सुचारू रखा गया। बच्ची की उम्र बहुत कम होने के बावजूद यह प्रक्रिया काफी सफल हुई और उसके परिवार और डॉक्टरों को काफी खुशी हुई। एक सप्ताह के भीतर ही उसकी स्थितियों में सुधार देखा गया। वह अब पहले से काफी बेहतर है क्योंकि बच्ची की इस समस्या का इलाज हो गया है और टीम को उम्मीद है कि बच्ची का भविष्य में सामान्य रूप से विकास होगा।''
ओपन सर्जरी की पारंपरिक और पुरानी विधि जो कि इंवैसिव और अत्यधिक जोखिम भरी है, की तुलना में क्वाइलिंग के साथ इम्बोलाइजेषन की आधुनिक विधि मस्तिष्क के वैस्कुलर (रक्त वाहिका) विकृतियों के इलाज के लिए बेहद सटीक, सुरक्षित और नाॅन-इंवैसिव विधि है। यह विधि न केवल गलत कनेक्शन को बंद कर देती हैै, बल्कि मस्तिष्क में रक्त वाहिकाओं को भी सुरक्षित रखती है। कनेक्शन को बंद करने के तुरंत बाद, मस्तिष्क में रक्त प्रवाह और दबाव सामान्य हो जाता है, जिससे बेहतर रिकवरी की अधिकतम संभावनाएं होती हैं।
हालांकि ऐसी असामान्य संरचनाओं के होने का कोई विशिष्ट कारण नहीं होता है, लेकिन जन्मजात विकृति के कारण बच्चे के विकास में देरी हो सकती है और बच्चे के जीवन की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। धमनियां दिल के द्वारा पंप किये गये ऑक्सीजनयुक्त रक्त की मस्तिश्क में उच्च दबाव पर आपूर्ति करती हैं और नसें इन्हें कम दबाव पर वापस ले जाती हैं। लेकिन कुछ मरीजों में ये रक्त वाहिका यहां तक कि जन्म से पहले से ही  गलत कनेक्शन बनाती हंै। यह स्थिति आर्टिरियो-वेनस फिस्टुला (एवीएफ) के रूप में जानी जाती है। इस स्थिति में जहां धमनियों और नसों का गलत कनेक्शन होता है, दिल के द्वारा पंप किया गया मस्तिश्क में जाने वाला उच्च दबाव वाला रक्त सीधे नसों में चला जाता है। यह समस्या न केवल ऐसे रक्त प्रवाह के साथ होती है, बल्कि जब उच्च दबाव रक्त नसों में बहता है तो सूजन हो जाती है।
8 महीने की यह इराकी लड़की जन्मजात एवीएफ से पीड़ित थी। आरंभिक बचपन (जन्म के तुरंत बाद) में ही इसका आॅपरेषन बहुत ही जटिल साबित हो सकता था और इसलिए हर सर्जन जितना संभव हो सके देर से आॅपरेषन करना चाहते थे लेकिन मस्तिष्क की स्थिति लगातार खराब होने के कारण उसके मस्तिश्क का  विकास भी प्रभावित हो रहा था। ऐसी स्थिति में यह मिनिमली इंवैसिव सर्जरी एक वरदान साबित हुई और इस सर्जरी ने उसे नई जिंदगी दी।