इंफ्लामेट्री बाउल डिजीज (आईबीडी) में पाचन तंत्र के सभी हिस्सों में या कुछ हिस्सों में इंफ्लामेषन हो जाता है जिसके कारण रोगी के पेट में दर्द होता है। इंफ्लामेट्री बाउल डिजीज के कारण कई प्रकार की समस्याएं पैदा हो सकती है और लंबे समय तक इसका इलाज नहीं कराने पर कोलोन कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
प्रकार
इंफ्लामेट्री बाउल डिजीज मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं - अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोहन डिजीज। क्रोहन डिजीज का इंफ्लामेशन पाचन तंत्र के किसी भी हिस्से -मुंह से लेकर गुदा तक कहीं भी हो सकता है। इसके विपरीत अल्सरेटिव कोलाइटिस में इंफ्लामेशन सिर्फ बड़ी आंत या गुदा में होता है। हालांकि इन दोनों स्थितियों में काफी अंतर होता है लेकिन इनके लक्षणों में काफी समानता होती है।
लक्षण
अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोहन रोग के लक्षण लगभग एक समान होते है। इनके मुख्य लक्षण हैं:
— पेट में दर्द या ऐंठन।
— प्रति दिन कई बार दस्त होना।
— दस्त के साथ रक्त का आना।
— बुखार तथा जोड़ों में दर्द
— भूख न लगना
— थकान
— वजन में कमी।
कारण
इंफ्लामेट्री बाउल डिजीज की दोनों स्थितियां- क्रोहन रोग और अल्सरेटिव कोलाइटिस होने के कारण अब तक अज्ञात हैं। ये दोनों स्थितियां क्रोनिक और गंभीर हो सकती है। पहले, इसका कारण आहार और तनाव को माना जाता था, लेकिन अब विशेषज्ञों का मानना है कि आहार और तनाव जैसे कारक इस बीमारी को बढ़ा सकते हैं लेकिन इस बीमारी को पैदा करने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।
इसका एक संभावित कारण प्रतिरक्षा प्रणाली में खराबी आना है। जब हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस या जीवाणु को शरीर में प्रवेश करने से रोकने के लिए उनका मुकाबला करती है, तो प्रतिरक्षा प्रणाली की असामान्य प्रतिक्रिया पाचन तंत्र में कोशिकाओं पर भी प्रहार करने का प्रयास करती है। इंफ्लामेट्री बाउल डिजीज में आनुवंशिकता भी मुख्य भूमिका निभाती है। इसलिए यह इस बीमारी के इतिहास वाले लोगों में अधिक सामान्य होती है। हालांकि इंफ्लामेट्री बाउल डिजीज वाले अधिकतर रोगियों में इसका पारिवारिक इतिहास नहीं होता है। लेकिन विभिन्न शोधों में जीन और पर्यावरण कारक इसके लिए जिम्मेदार पाये गये हैं।
इंफ्लामेट्री बाउल डिजीज के लिए जिम्मेदार कुछ मुख्य कारक हैं -
— जीवन शैली- आरामतलब जीवन शैली, धूम्रपान और खान-पान की गलत आदतों के कारण इस बीमारी के होने का खतरा अधिक रहता है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में भी पश्चिमी देशों की जीवन शैली को अपनाने के कारण इंफ्लामेट्री बाउल डिजीज के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है।
— धूम्रपान- आम धारणा के विपरीत धूम्रपान करने वाले लोगों में अल्सरेटिव कोलाइटिस होने का खतरा कम होता है जबकि इसके विपरीत क्रोहन डिजीज के लिए धूम्रपान मुख्य रूप से जिम्मेदार होता है और इनके लक्षणों को बदतर बना सकता है।
— पारिवारिक इतिहास- परिवार में इस बीमारी का इतिहास रहने पर इसका खतरा बढ़ता है। अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए 30 जीन को जिम्मेदार पाया गया है और क्रोहन डिजीज के लिए 71 आनुवंशिक कारण जिम्मेदार पाये गये हैं।
— आयु- पहले 50 से 60 वर्श के लोगों में ही इंफ्लामेट्री बाउल डिजीज के मामले देखने को मिलते थे लेकिन अब किशोरों और युवाओं में भी इसके मामले देखने को मिल रहे हैं। अब तो इंफ्लामेट्री बाउल डिजीज के करीब 15 प्रतिषत रोगी 18 वर्श से कम उम्र के होते हैं और उनमें यह बीमारी अधिक गंभीर रूप धारण कर लेती है।
— अपेंडेेक्टाॅमी- अपेंडिसाइटिस से पीड़ित 20 साल से कम उम्र के लोगों में अपेंडिक्स को निकाल दिये जाने पर अल्सरेटिव कोलाइटिस का खतरा कम हो जाता है और उनमें यह रोग अधिक गंभीर नहीं होता है। इसके अलावा अपेंडेक्टाॅमी क्रोहन डिजीज की शुरुआत में भी देरी करता है। इसका संबंध प्रतिरक्षा प्रणाली से हो सकता है।
— परजीवी के संपर्क में रहना- आंत्र परजीवी के संपर्क में रहने पर इसका खतरा कम हो सकता है। दरअसल मानव प्रतिरक्षा प्रणाली की रचना इस प्रकार हुई है कि वह परजीवियों से लड़ सके, लेकिन विकसित देशों के लोग बेहतर रहन-सहन के कारण मुश्किल से वर्म के संपर्क में आते हैं और जब वे वर्म के संपर्क में आते हैं तो इस रोग से पीडित हो जाते हैं।
— आहार- कुछ शोधों में पाया गया है कि अधिक मात्रा में प्रोटीन विशेषकर पशु प्रोटीन का सेवन करने वाली महिलाओं में क्रोहन डिजीज का खतरा बढ़ जाता है। अन्य अध्ययनों में भी अधिक वसा और शुगर वाले आहार का इस बीमारी से संबंध पाया गया है।
इलाज
इंफ्लामेट्री बाउल डिजीज के इलाज के तहत इसके लक्षणों को बढ़ाने वाले इंफ्लामेशन को कम किया जाता है। इसका इलाज या तो दवाइयों से किया जाता है या फिर सर्जरी की जाती है। इसके तहत चिकित्सक सबसे पहले अमीनोसैलिसाइलेट्स और कार्टिकोस्टेराॅयड्स जैसी एंटी- इंफ्लामेट्री दवाइयां देते हैं। लेकिन चूंकि इन दवाइयों के अधिक दुष्प्रभाव होते हैं इसलिए इन्हें लंबे समय तक नहीं लिया जा सकता है। इनके अलावा इम्यून सिस्टम सप्रेसर भी दी जाती हैं। ये दवाइयां भी इंफ्लामेशन को कम करती हैं। लेकिन ये दवाइयां इंफ्लामेशन को सीधे कम करने की बजाय इम्यून सिस्टम को लक्ष्य करती है और इंटेस्टाइनल लाइनिंग में इंफ्लामेशन को इन्ड्येस करने वाले रसायन को छोड़ने वाले इम्यून सिस्टम को सप्रेस करती हैं। बुखार से पीड़ित अल्सरेटिव कोलाइटिस के रोगियों से संक्रमण को रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाइयां भी दी जाती है। इसके अलावा लक्षणों के आधार पर दस्त को रोकने, दर्द को कम करने वाली दवाइयां और आयरन, विटामिन बी 2, कैल्शियम, विटामिन डी सप्लिमेंट आदि भी दी जाती है।
इसके अलावा रोगी को अपने खान-पान और रहन-सहन में सुधार करने की भी सलाह दी जाती है। लेकिन इसके बावजूद जब रोगी को फायदा नहीं होता है तो सर्जरी की सलाह दी जाती है।
अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए सर्जरी
अल्सरेटिव कोलाइटिस में अक्सर पूरे कोलोन और रेक्टम को निकाला जाता है। यह प्रक्रिया प्रोक्टोकोलेक्टाॅमी कहलाती है। अधिकतर मामलों में इलियोएनल एनास्टोमोसिस प्रक्रिया की जाती है जिसके तहत सर्जन मल को जमा करने के लिए छोटी आंत के आखिरी में एक पाउच का निर्माण करते है और इस पाउच को सीधे गुदा से जोड़ दिया जाता है ताकि रोगी सामान्य ढंग से मल त्याग कर सके। कुछ रोगियों में पाउच का निर्माण करना संभव नहीं होता। ऐसी स्थिति में सर्जन पेट में एक स्थायी ओपनिंग बना देते हैं जिससे होकर मल इससे जुड़े बैग में जमा होता है।
क्रोहन डिजीज के लिए सर्जरी
क्रेाहन डिजीज के आधे से अधिक रोगियों में सर्जरी की जरूरत होती है। सर्जरी के दौरान सर्जन रोगी के पाचन तंत्र के क्षतिग्रस्त हिस्से को निकालकर इसे फिर से स्वस्थ हिस्से से जोड़ देते हैं। क्रोहन डिजीज के लिए स्ट्रिक्चरप्लास्टी नामक प्रक्रिया भी की जाती है जिसके तहत संकरी आंत के हिस्से को चैड़ा किया जाता है। लेकिन इसका लाभ अस्थायी रूप से होता है और कुछ समय के बाद उससे जुड़े उतकों में बीमारी फिर से हो जाती है। इसलिए इसके दोबारा होने के खतरे को कम करने के लिए रोगी को सर्जरी के साथ दवा भी देते रहने की जरूरत होती है
रोकथाम
इस बीमारी से बचने के लिये आरामतलब जीवन शैली, धूम्रपान और खान-पान की गलत आदतों से परहेज करना चाहिये। अधिक प्रोटीन युक्त विषेशकर पशु प्रोटीन, वसा और शुगर वाले आहार से परहेज करना चाहिये।