हृदय रोगों के उपचार में आयुर्वेद को अब वैज्ञानिक मान्यता मिलने लगी है। देश-विदेश में किये गये अनेक वैज्ञानिक अध्ययनों से हृदय और हृदय रोगों के बारे में प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णित मान्यताओं को समर्थन मिला है। आयुर्वेद में हृदय को प्राण, ओज और आत्मा का केन्द्र बिन्दु माना गया है, जो पूरे शरीर में रक्त संचार का संचालन करता है तथा हमारी भावनाओं को नियंत्रित करता है। पश्चिमी चिकित्सा प्रणाली के विपरीत आयुर्वेद में मस्तिष्क के बजाय हृदय को चिंतन, चेतना एवं संवेदना का केन्द्र बिन्दु माना गया है। आयुर्वेद में हृदय रोगों के उपचार के तहत भावनाओं को समझने पर बहुत अधिक महत्व दिया गया है।
जर्नल आफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में हृदय के बारे में आयुर्वेदिक मान्यता की पुष्टि की गयी है। इस शोध रिपोर्ट के अनुसार कैलिफोर्निया में किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि गुस्से एवं वैमनस्य जैसी नकारात्मक भावनायें रक्त धमनियों में कड़ापन बढ़ाती हैं। इसी तरह आर्काइव्स आफ इंटरनल मेडिसीन में हाल में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि डिप्रेशन से ग्रस्त लोगों में दिल के दौरे एवं अन्य हृदय रोगों की आशंका 70 प्रतिशत अधिक होती है।
भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली में हृदय एवं रक्त वाहिका रोगों के लिये अनेक कारगर उपचार एवं औषधियां हैं। आयुर्वेद में हृदय रोगों के उपचार के लिये अत्यंत प्राचीन काल से अर्जुन वृक्ष की पत्तियों एवं छाल से बनी दवाई का इस्तेमाल किया जाता रहा है। आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में बताया गया है कि अर्जुन हृदय की मांसपेशियों को पोषण प्रदान करता है, रक्त संचार बढ़ाता है और रक्त धमनियों में अवरोध बनने से रोकता है। अर्जुन वृक्ष का वैज्ञानिक नाम टरमिनालिया अर्जुना है जिसे संस्कृत में नदीसृज्जा कहा जाता है। गुजरात आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय की ओर से किये गये अध्ययन के दौरान अर्जुन एवं जहरमोहरा से बनी दवाइयां चुने हुये मरीजों को दी गयी। इनमें से 66 प्रतिशत मरीजों में एंजाइना, पल्पिटेशन एवं थकावट जैसी समस्याओं में काफी कमी आयी तथा रक्त चाप एवं दिल की धड़कन की दर भी सामान्य हो गयी।
अर्जुन लंबा एवं सघन पत्तियों वाला वृक्ष है। इसकी शंकुनुमा गोलाकार पत्तियों तथा सफेद रंग की छाल से दवाइयां बनायी जाती है। यह पेड़ मुख्य रूप से भारत में उगता है। लेकिन यह म्यांमार एवं श्रीलंका में भी पाया गया है। अर्जुन को हृदय रोगों के अलावा शरीर के अंदर होने वाले रक्तस्राव, अल्सर, दमा, डायरिया एवं अतिसार में लाभकारी पाया गया है। अब अर्जुन वृक्ष से प्राप्त रसायन में अनेक अन्य रसायन मिलाकर अलग-अलग हृदय रोगों के लिये अलग-अलग औषधियां तैयार की गयी है। इन औषधियों में एक औषधि मायोड्राप है।
अर्जुन की पत्तियों एवं छाल तथा कुछ अन्य जड़ी-बूटियों से बनायी गयी औषधि मायोड्राप दुष्प्रभावरहित है, जो न केवल रक्त को पतला करती है बल्कि रक्त के थक्कों को भी दूर करती है और हृदय की स्थिति में सुधार करती है। इसके अलावा मायोड्राॅप हृदय को जरूरी पोषण उपलब्ध कराती है और उसकी मांसपेशियों (मायोकार्डियम) को मजबूत बनाती है। यह कालेटेरल्स का विकास करती है जिसके कारण हृदय में अवरुद्ध धमनियों के होने पर प्राकृतिक तौर पर बाईपास का निर्माण करता है।
मायोड्राप का निर्माण ग्लोबल हार्ट फाउंडेशन ने किया है। यह दवाई उन मरीजों के लिये अत्यंत लाभदायक है जिनकी किन्हीं कारणों से सर्जरी नहीं हो सकती है अथवा जिनकी सर्जरी अथवा एंजियोप्लास्टी हो चुकी है अथवा जो सर्जरी का खर्च वहन नहीं कर सकते।
मायोड्राप अर्जुन के अलावा अम्बा, शेवागा, कादिनिम्ब, पिम्पली और पुर्णनवा जैसी जड़ी-बूटियों से भी बनायी गयी है। इन सभी का आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में जिक्र मिलता है। मायोड्राप में ये सभी घटक सही अनुपात में हैं ताकि मरीज के लिये कारगर साबित हो सके। यह दवाई हृदय की आधुनिक या अन्य विधियों से इलाज कराने के दौरान भी ली जा सकती है। मायोड्राॅप के नियमित उपयोग से नये कालेटेरल के निर्माण के प्रक्रिया में तेजी आती है, धमनियों में अवरोध दूर होता है और रक्त के संचार में 50 से 60 प्रतिशत सुधार होता है।
हृदय रोगों के उपचार में आयुर्वेद का बढ़ता महत्व
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