हेपेटाइटिस-बी को आम तौर पर लोग पीलिया समझकर नजरअंदाज करते हैं। क्योंकि हेपेटाइटिस बी से फैलने वाला पीलिया का रोग शुरू में तो सामान्य पीलिया के ही लक्षण पैदा करता है। जैसे रोगी व्यक्ति का शरीर दर्द करता है, हल्का बुखार आता है, भूख कम हो जाती है, उल्टी होने लगती है, इसके साथ ही पेशाब और आंखों का रंग पीला होने लगता है। लेकिन लंबे समय तक इसका इलाज नहीं कराने पर हेपेटाइटिस-बी वायरस लिवर सिरोसिस पैदा कर सकता है, लिवर फेल कर सकता है और लिवर का कैंसर हो सकता है।
हेपेटाइटिस-बी के लक्षण क्या हैं?
इसके लक्षण सामान्य पीलिया के लक्षण की तरह ही होते है। इसमें रोगी को हल्का बुखार, बदन दर्द, भूख कम लगना, उल्टी आना या जी मिचलाना, पेशाब तथा आंखों का रंग पीला होना जैसे लक्षण होते हैं।
हेपेटाइटिस-बी का वायरस किस प्रकार फैलता है?
यह वायरस आम तौर पर रोगी के रक्त में रहता है। जब भी किसी स्वस्थ व्यक्ति को हेपेटाइटिस-बी के वायरस से संक्रमित रोगी का रक्त चढ़ाया जाता है या कोई व्यक्ति जब उससे संक्रमित इंजेक्शन का इस्तेमाल करता है तो वह व्यक्ति भी इस वायरस से संक्रमित हो जाता है। यहां तक कि संक्रमित व्यक्ति के रक्त के किसी स्वस्थ व्यक्ति की त्वचा के संपर्क में आने और उस व्यक्ति की त्वचा में दरार होने की स्थिति में वायरस उसकी त्वचा में प्रवेश कर जाता है। गर्भवती महिला के इस वायरस से संक्रमित होने पर उसकेे नवजात शिशु के भी सक्रमित हो जाने की संभावना होती है।
हेपेटाइटिस-बी का इलाज
हेपेटाइटिस के पुराने रोगियों का इलाज इंटरफेरोन से किया जाता है। इंटरफेरोन विषाणुओं से लड़ने के लिए शरीर द्वारा पैदा किया जाने वाला प्राकृतिक प्रोटीन है। लेकिन पुराने हेपेटाइटिस-बी में शरीर विषाणु को नष्ट करने के लिए काफी इंटरफेरोन पैदा नहीं कर पाता। तब शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा को बढ़ाने के लिए इंटरफेरोन को दवा के रूप में दिया जाता है। इंटरफेरोन प्रोटीन है, इसलिए इसे मुंह से लेने पर यह नष्ट हो जाएगा, इसलिए इसे केवल त्वचा के नीचे इंजेक्शन से दिया जा सकता है। इसे 12 महीनों तक लेना होता है।
इस रोग से बचने के लिए कौन-कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए?
इस रोग से बचने के लिए निम्न सावधानियां बरतनी चाहिए -
0 किसी चोट लगे व्यक्ति के रक्त के सम्पर्क मे आने पर या संक्रमित सुई चुभ जाने पर या रक्त के हाथ पर गिर जाने पर हेपेटाइटिस-बी की जांच कराना चाहिए।
0 सभी पैरामेडिकल स्टाफ और चिकित्सकों को मरीजों के घावों के इलाज करते समय या आपरेशन के समय या रक्त सम्बन्धित टैस्ट करते समय दस्ताने अवश्य पहनना चाहिए।
0 हमेशा सुरक्षित, कीटाणु रहित और नई सिरिंज का इस्तेमाल करें। ग्लास सिरिंज और सुई का इस्तेमाल 15-20 मिनट तक उबालने के बाद ही करें।
0 रक्त चढ़ाने से पूर्व यह पता कर लें कि उस रक्त की जांच की हुई है और वह हेपेटाइटिस-बी वायरस से मुक्त है।
0 सुरक्षित यौन सम्बन्ध बनायें।
इससे बचाव के क्या उपाय हैं?
इस रोग से बचाव के लिए हेपेटाइटिस-बी के टीके लगवाना चाहिए। इस टीके से रोग से प्रतिरोध करने वाले एंटीबाडीज पैदा किये जा सकते हैं। सभी उम्र व लिंग के वैसे सभी व्यक्ति जिनमें हेपेटाइटिस-बी वायरस मौजूदा नहीं है यह टीके लगवाना चाहिए। नवजात शिशुओं और हेपेटाइटिस-बी वायरस से संक्रमित मां से उत्पन्न संतान को भी यह टीके लगवाना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस टीके को ई.पी.आई. प्रोग्राम में शामिल किया है।
इसके टीके किस तरह और कितने समय के अंतराल पर लगाना चाहिए?
यह टीका बायें हाथ के उपरी हिस्से में ही लगाना चाहिए। पहले टीके के एक माह बाद दूसरा टीका लगाया जाता है और पहले टीके के छह महीने के बाद तीसरा टीका लगाया जाता है। टीका लगने के बाद करीब 10 साल तक एंटीबाॅडीज शरीर में रहते हैं और व्यक्ति इस वायरस से संक्रमित नहीं होता।
क्या यह एड्स संक्रमण के समान ही खतरनाक है?
यह एड्स से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि एड्स संक्रमण के लिये 0.1 मि.ली. संक्रमित रक्त की जरूरत होती है जबकि हेपेटाइटिस-बी सिर्फ 0.0001 मि.ली. यानि रक्त की सूक्ष्म मात्रा से भी फैल सकता है। यह एड्स वायरस से 100 गुना अधिक संक्रमित करने की क्षमता रखता है। जितने रोगी एड्स से एक साल में मरते हैं उतने रोगी हेपेटाइटिस-बी से एक दिन में मर जाते हैं।
हेपेटाइटिस-बी के टीके लगवाकर बचा जा सकता है जबकि एड्स का बचावी टीका उपलब्ध नही है।