हार्मोन में गड़बड़ी की पैदाइश है नपुंसकता

आधुनिक समय में महामारी का रूप धारण कर चुकी नपुंसकता ऐसी बीमारी है जिससे अनेकानेक गलत धारणायें और अंधविश्वास जुड़े हैं। सबसे बड़ा अंधविश्वास तो यही है कि यह नामर्दगी का लक्षण है अथवा इससे ग्रस्त व्यक्ति संतान जनने में असमर्थ होता है। जबकि मर्दानगी अथवा संतान जनने की क्षमता के साथ इसका कोई संबंध नहीं है।
चिकित्सकीय भाषा में नपुंसकता (इंपोटेंसी) उस स्थिति को कहते हैं जिसमें व्यक्ति मानसिक अथवा शारीरिक तौर पर यौन क्रिया सफलता पूर्वक करने में असमर्थ होता है। यह बीमारी प्रजनन हीनता (इंफर्टिलिटी) से अलग है जिसमें व्यक्ति के वीर्य में या तो शुक्राणु नहीं होते या कम संख्या में होते हैं जिसके कारण हालांकि व्यक्ति यौन क्रिया तो सफलतापूर्वक कर पाता है लेकिन संतान जनने में असमर्थ होता है।
नपुंसकता दो तरह की होती है। पहले तरह की नपुंसकता में मरीज को सेक्स या काम इच्छा ही नहीं होती हालांकि वह यौन क्रिया करने में सक्षम होता है। इस तरह की नपुंसकता के ज्यादातर कारण मानसिक होते हैं। दूसरे तरह की नपुंसकता में रोगी को हालांकि काम इच्छा होती है लेकिन वह यौन क्रिया कर पाने में अक्षम होता है क्योंकि उसके लिंग में पर्याप्त कड़ापन नहीं आ पाता है। इसके लिए इरेक्टाइल डिसफंक्शन शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इसके मरीज हालांकि लिंग में पर्याप्त कड़ापन के अभाव में सफलतापूर्वक यौन क्रिया करने में असमर्थ होते हैं लेकिन संतान जनने में शारीरिक तौर पर सक्षम होते हैं। लेकिन बीमारी के कारण उत्पन्न हीन भावना तथा कुंठा उसकी प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है। इरेक्टाइल डिसफंक्शन में काम वासना या यौन उत्तेजना होने पर भी पुरुष लिंग कड़ा नहीं होता। दरअसल पुरुष लिंग तब कड़ा होता है जब उसकी नलिकाओं में रक्त भर जाता है। जब रक्त् नलिकायें संकरी होती है या उनमें रक्त के थक्के अथवा काॅलेस्ट्राॅल जमा होने के कारण उनमें रक्त का बहाव नहीं हो पाता तब पुरुष लिंग में कड़ापन नहीं आ पाता। इरेक्टाइल डिसफंक्शन का एक अन्य कारण स्नायु तंत्र में गड़बड़ी आ जाना है जिसके कारण रक्त नलिकाओं को समय पर फैलने का संकेत नहीं मिलता और उनमें रक्त का बहाव तेज नहीं हो पाता है। यह समस्या मधुमेह और उच्च रक्त चाप के रोगियों के साथ अधिक होती है। मधुमेह में रक्त नलिकाएं संकरी हो जाती हैं जबकि हृदय की बीमारियों एवं अधिक रक्त चाप में रक्त नलिकाएं काॅलेस्ट्राॅल या रक्त के थक्के जम जाने के कारण या तो संकरी या अवरुद्ध हो जाती हैं। इसके अलावा धूम्रपान करने वालों, शराब पीने वालों एवं अधिक वसायुक्त भोजन करने वालों को यह समस्या अधिक होती है।
आधुनिक अध्ययनों और अनुसंधानों से साबित हुआ है कि नपुंसकता के अधिकतर मामले मानसिक होते हैं और कुछ प्रतिशत मामले शारीरिक कारणों से उत्पन्न होते हैं जिनका इलाज करना संभव है। पुरुषों और महिलाओं में नपुंसकता के अलग-अलग कारण होते हैं। पुरुषों में अधिक व्यस्त रहने, धूम्रपान करने, शराब पीने तथा तनाव ग्रस्त रहने एवं तनाव पैदा करने वाले काम करने से नपुंसकता आ सकती है जबकि महिलाओं में प्रोलेक्टिन हार्मोन के अधिक बनने या रजोनिवृति के बाद एस्ट्रोजन हार्मोन के कम बनने के कारण सैक्स के प्रति अनिच्छा या अक्षमता आ सकती है।
मधुमेह जैसी कुछ बीमारियां भी नपुंसकता पैदा कर सकती हैं। चूंकि मधुमेह में तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है इसलिए अगर मधुमेह को नियंत्रित नहीं रखा गया तो व्यक्ति में पांच-दस साल के बाद नपुंसकता आ सकती है। उच्च रक्त चाप तथा एसिडिटी जैसी बीमारियों की कुछ दवाइयां भी नपुंसकता पैदा करती है। लिंग में रक्त जम जाने या लिंग में चोट लगने से फाइब्रोसिस हो जाने के कारण भी नपुंसकता आ जाती है।
शरीर में कुछ खास हार्मोनों की कमी अथवा अधिकता होने से भी नपुंसकता उत्पन्न होती है। इनमें प्रोलेक्टिन, थायराॅयड हार्मोन, इंसुलिन और टेस्टोस्टेराॅन प्रमुख हैं। 
प्रोलेक्टिन हार्मोन व्यक्ति की यौन क्षमता को बरकरार रखने में मुख्य भूमिका निभाता है। यह मस्तिष्क में स्थित पिट्यूटरी ग्रंथि में बनता है। इस ग्रंथि में ट्यूमर होने, दिमागी चोट लगने, अनेक मनोरोगों एवं इन रोगों की दवाईयों के सेवन से यह हार्मोन अधिक बनने लगता है जिससे नपुंसकता की बीमारी उत्पन्न होती है। इसके अलावा थायराॅयड नामक ग्रंथि से निकलने वाले थाईरोक्सिन हार्मोन की कमी के कारण भी नपुंसकता होती है। पैंक्रियाज ग्रंथि से इंसुलिन नामक हार्मोन के कम अथवा नहीं बनने पर मधुमेह की बीमारी होती है जो नपुंसकता का सबसे सामान्य कारण है।
अंडकोष में बनने वाल टेस्टोस्टेराॅन हार्मोन की कमी भी नपुंसकता का एक मुख्य करण है। यह हार्मोन यौन क्षमता को बनाये रखता है। आनुवांशिक बीमारियों के कारण अंडकोष के ठीक से कारम नहीं करने पर अथवा उसके क्षतिग्रस्त होने पर यह हार्मोन ठीक से नहीं बन पाता।
यौन संचारित रोगों (एस.टी.डी.) का ठीक से इलाज नहीं कराने पर नपुंसकता हो सकती है। मोटापा का भी नपुंसकता से अप्रत्यक्ष संबंध है। मोटापे के कारण कई व्यक्तियों के हार्मोन में परिवर्तन हो जाते हैं जिसके कारण नपुंसकता हो जाती है।
एथलीटों में इस बीमारी का पाया जाना सामान्य बात है। कई एथलीट अपनी मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए एनाबोलिक स्टीराॅयड दवा का लंबे समय तक सेवन करते हैं जिसके कारण उनमें नपुंसकता आ सकती है। आम लोगों में धारणा है कि हस्त मैथुन करने से नपुंसकता हो जाती है, लेकिन ऐसा सोचना गलत है।
नपुंसकता के मानसिक कारणों का पता मरीज से बातचीत करने पर लगता है लेकिन हार्मोन संबंधी गड़बड़ियां जैसे शारीरिक कारणों का पता लगाने के लिए थायराॅयड परीक्षण से थायराॅयड हार्मोन के स्तर का तथा रक्त परीक्षणों से प्रोलेक्टिन हार्मोन, इंसुलिन तथा टेस्टोस्टेराॅन हार्मोन के स्तर का पता लगाया जाता है। 
इंडोक्राइनोलाॅजिस्ट सबसे पहले यह पता लगाते हैं कि शरीर में किस हार्मोन की कमी है। इसके बाद उस कमी को दूर करने के लिए जरूरी हार्मोन दिये जाते हैं। अगर पिट्यूटरी ग्रंथि में ट्यूमर हो तो उसका आपरेशन करना पड़ता है।
मधुमेह के कुछ रोगियों या मानसिक रोगियों पर जब दवाईयां प्रभावी नहीं होती है तो ऐसे रोगियों में सर्जरी की मदद से उनके लिंग में एक राॅड डाला जाता है, जिसे इंप्लांट कहा जाता है। इसकी मदद से रोगी ठीक से संभोग कर पाता है। इसके लिए प्लास्टिक सर्जन की मदद ली जाती है। लेकिन इस आपरेशन को करने से पहले पूरी तरह से यह पता लगा लिया जाता है कि रोगी को इसकी जरूरत है या नहीं। रोगी पर दवा बेअसर होने की स्थिति में ही यह आपरेशन किया जाता है।
बाजार में यौन क्षमता बढ़ाने वाली कई दवाईयां उपलब्ध हैं जिनका इस्तेमाल करने की नीम-हकीम अक्सर सलाह देते हैं। लेकिन यौन क्षमता बढ़ाने में इन दवाईयों का कोई योगदान नहीं होता। ये सिर्फ प्लैसिबो की तरह काम करती हैं और रोगी को मानसिक संतुष्टि देती है। कई बार इनसे फायदे की बजाय नुकसान होता है, इसलिए नपुंसकता का आभास होते ही नीम-हकीम डाॅक्टरों की बजाय इंडोक्राइनोलाॅजिस्ट या एंड्रोलाॅजिस्ट से सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि नपुंसकता का इलाज संभव है।