भारत जैसे विकासशील देशों में कुपोषण के कारण बच्चों में पेट फूलना एक आम समस्या है। जानकारी एवं जागरूकता के अभाव में आम तौर पर माता-पिता अक्सर इसकी अनदेखी करते हैं, लेकिन कभी-कभी यह गंभीर रोग का सूचक हो सकता है। पेट फूलने (एब्डोमिनल डिस्टेंशन) की समस्या नवजात शिशुओं में भी हो सकती है। सिर्फ दूध पीने वाले शिशुओं को अक्सर पेट फूलने की शिकायत रहती है। इसका मुख्य कारण पेट के अंदर हवा चला जाना है। जब बच्चा दूध पीता है तब दूध के साथ वह हवा भी अंदर ले लेता है जिससे उसका पेट फूल जाता है। इसलिए दूध पिलाने के बाद बच्चे को कंधे से लगाकर डकार दिला देना चाहिए इससे अतिरिक्त हवा बाहर निकल जाती है और बच्चे का पेट नहीं फूलता तथा पेट में दर्द होने की संभावना भी काफी कम हो जाती है।
पेट में कीड़े, जिगर बड़ा हो जाना, तिल्ली बड़ी हो जाना आदि बच्चों में पेट फूलने के प्रमुख कारण हैं। कुछ बच्चों के पेट में कुछ जन्मजात विकृतियां जैसे बच्चे के पेट में जन्म से ही पानी से भरी झिल्ली या ट्यूमर होता है। इन विकृतियों का आमतौर पर जन्म से पहले पता नहीं चलता, लेकिन बच्चे के थोड़ा बड़ा हो जाने पर बच्चे को नहलाते या कपड़े पहनाते समय अचानक इसका पता लगता है। ऐसा लगता है कि बच्चे के पेट में कोई रसौली है या पेट बढ़ा हुआ है। ऐसे बच्चों में आमतौर पर लीवर बढ़ रहा होता है, लीवर के अंदर कोई सिस्ट या ट्यूमर होता है, तिल्ली बढ़ रही होती है, आंतें फूलने लगती है, गुर्दे में कोई ट्यूमर या कैंसर होने के कारण गुर्दा बढ़ रहा होता है या गुर्दे में रूकावट की वजह से मसाने में पेशाब इकट्ठा होते रहने के कारण पेट फूल सकता है। इनके अलावा छोटी बच्चियों के ओवरी में सिस्ट हो जाती है और यह धीरे-धीरे बहुत बड़ा आकार धारण कर लेती है जिससे बच्ची का पेट बढ़ जाता है।
पेट में कीड़े होने पर संक्रमण भी हो सकता है और उसका असर जिगर और तिल्ली पर पड़ सकता है जिससे जिगर या तिल्ली बढ़ सकता है। बच्चे को बार- बार मलेरिया होने की स्थिति में उसकी तिल्ली बहुत बढ़ जाती है जिससे उसका पेट भी बढ़ जाता है। किसी बच्चे के अधिक दिनों तक एनीमिया से पीड़ित रहने पर भी उसका जिगर बढ़ सकता है। बच्चे को गुर्दे की बीमारी होने, गुर्दे में खराबी होने या उसकी वजह से प्रोटीन की कमी होने पर गुर्दे फूल सकते हैं और बच्चे का पेट बढ़ सकता है। हमारे देश में बच्चों में पेट की तपेदिक बहुत सामान्य है और इसकी वजह से भी बच्चे का पेट फूल सकता है।
कुछ बच्चों में कैंसर की वजह से भी पेट फूल सकता है। गुर्दे, आंत, जिगर, तिल्ली या पेट के किसी अन्य भाग में कैंसर हो जाने पर न सिर्फ बच्चे का पेट फूलने लगता है, बल्कि पेट में दर्द भी हो सकता है, पेशाब में खून आ सकता है, खून बनना बंद हो सकता है, पेशाब या टट्टी आना रूक सकता है जिससे बच्चा दिनोंदिन पीला पड़ता जाता है, उसकी भूख कम हो जाती है और बुखार आने लगता है। ऐसे बच्चों में रोग और रोग की गंभीरता का पता लगाने के लिए अन्य जांच की भी जरूरत पड़ती है। कुछ बच्चों में हार्मोन खासकर थाइराॅयड हार्मोन की कमी के कारण भी पेट फूलने लगता है। यह समस्या जन्मजात भी हो सकती है। ऐसे बच्चों में हार्मोन की जांच करायी जाती है और उसी के आधार पर बच्चे का इलाज होता है।
बच्चों में पेट फूलने की समस्या को कभी भी हल्के ढंग से नहीं लेना चाहिए। माता-पिता को बच्चे को नहलाते या कपड़े पहनाते समय उसके पेट को ध्यान से देखकर और छूकर यह पता लगाते रहना चाहिए कि बच्चे का पेट तो नहीं फूल रहा है। थोड़ी सी भी शंका होने पर नजदीकी चिकित्सक से बच्चे को दिखलाना चाहिए।
किसी बच्चे का पेट बढ़ने पर उसका कारण मालूम करना और उस कारण का निवारण करना बहुत जरूरी है। इसके लिए चिकित्सक सबसे पहले बच्चे के पेट में कीड़े का पता लगाने के लिए खून, पेशाब और टट्टी की जांच कराते हैं। ट्यूमर या कैंसर का शक होने या बच्चे में खून नहीं बनने की स्थिति में कुछ एक्स-रे या अल्ट्रासाउंड भी किया जा सकता है। इससे बीमारी का पता चल जाता है और उसी के आधार पर बच्चे का इलाज किया जाता है।
हमारे देश में साफ-सफाई के प्रति लोगों के लापरवाह होने के कारण पेट में कीड़े की समस्या सामान्य है और बच्चे के पेट फूलने का मुख्य कारण पेट में कीड़े होना ही होता है। खाने-पीने की चीजों के स्वच्छ नहीं होने और बच्चों के मिट्टी में खेलने के कारण कीड़ों के अंडे पेट में चले जाते हैं और वहां अपनी संख्या बढ़ाते रहते हैं। इसलिए रहने की जगह को साफ रखना जरूरी है, खाने-पीने की चीजों को ढककर रखना चाहिए और उन पर मक्खियां नहीं बैठने देना चाहिए।
अगर बच्चे का पेट सिर्फ कीड़े की वजह से फूला है तो इसका इलाज बहुत आसान होता है। बच्चों के पेट में दो तरह के कीड़े होते हैं एक तो नंगी आंखों से दिखाई देते हैं। इनमें सबसे सामान्य एस्केरिस कीड़ा होता है यह 5.6 इंच लंबा हो सकता है और इसकी वजह से बच्चों के आंत में रूकावट आ सकती है। इस कारण से बच्चा जो खाता-पीता है शरीर को नहीं लगता है और बच्चा एनीमिक हो जाता है। कभी-कभी ये कीड़े आंत से निकलकर पेट में स्वतंत्र रूप से घूमते रहते हैं या पेट से बाहर निकल आते हैं जिससे पेट में मवाद बनने लगता है। कुछ कीड़े ऐसे होते हैं जो नंगी आंखों से दिखाई नहीं देते और इन्हें माइक्रोस्कोप या दूरबीन से देखना ही संभव होता है। इसलिए इनका पता टट्टी की जांच के बाद ही लगता है।
पेट में कीड़े होने पर बच्चे को कीड़े की दवाई दी जाती है जिससे कीड़े मर जाते हैं और टट्टी के साथ पेट से बाहर निकल जाते हैं। जिन बच्चों में पेट फूलने का कारण खून नहीं बनना या एनीमिक होना होता है उन्हें तीन से छः महीने तक लौह तत्वों की दवाइयां दी जाती है जिससे धीरे-धीरे बच्चे का खून बनने लगता है। ऐसे बच्चों को प्रचूर लौह तत्व वाली हरी सब्जियां अधिक से अधिक देनी चाहिए। जिन बच्चों में कीड़े के कारण किसी तरह की जटिलता आ गयी हो या आंत गल गयी हो तो उसका इलाज आॅपरेशन से किया जाता है।
जिन बच्चों की जांच में पेट में कोई ट्यूमर या सिस्ट का पता चलता है या गुर्दे फूले होने या मसाना फूले होने का संकेत मिलता है, उनका इलाज आपरेशन से किया जाता है। कुछ बच्चों की आंतें जन्म से ही बहुत फूली होती हैं लेकिन उनमें न तो ट्यूमर होता है और न कोई सिस्ट होता है, फिर भी आंत के कुछ हिस्सों में जन्म से ही कुछ कमी होती है और आंत सही ढंग से काम नहीं करता और आंत फूलने लगती है जिससे बच्चे को कब्ज हो जाती है, ऐसी स्थिति में आंत के खराब हिस्से को आपरेशन के जरिये निकाल दिया जाता है।