कैंसर को अभी भी भारतीय समाज में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अभिषाप माना जाता है। स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाएं इसके बारे में खुले तौर पर नहीं बोलती हैं और अपनी बीमारी का इलाज कराने में अक्सर शर्म महसूस करती हैं। लक्षण दिखने के बावजूद, परिवार तब तक अपनी बेटियों को डाॅक्टर के पास ले जाने से बचते रहते हैं जब तक कि उनकी हालत असहनीय न हो जाए। हमारे देश में कैंसर के अधिकतर मामलों की पहचान देर से होने का यह एक मुख्य कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 60 प्रतिषत से अधिक महिलाओं में स्तन कैंसर की पहचान तीसरे या चैथे चरण में होती है। रोगियों के जीवित रहने की दर और उपचार के विकल्पों पर इसका काफी अधिक प्रभाव पड़ता है।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हाॅस्पिटल, षालीमार बाग के सर्जिकल ओंकोलाॅजी विभाग के वरिश्ठ कंसल्टेंट डॉ. रुद्र आचार्य ने कहा, ''हरियाणा अपने निकट के राज्य पंजाब की तरह ही कैंसर का एक क्षेत्र बनने की राह पर है। हालांकि यहां कैंसर के रोगियों की सही संख्या उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन हरियाणा से कैसंर के अधिक से अधिक मामले सामने आ रहे हैं। एक ताजा अध्ययन में कैंसर की व्यापकता पुरुषों में 55 प्रतिषत और महिलाओं में 45 प्रतिषत और कैंसर रोगियों की औसत उम्र पुरुशों में 52 वर्ष और महिलाओं में 62 वर्श पायी गयी। इन आंकड़ों से यह साबित होता है कि महिलाएं भी पुरुशों के समान ही कैंसर से पीड़ित हैं। क्षेत्र में कैंसर के मामलों के बढ़ने का एक मुख्य कारण लोगों में कैंसर और इसकी शीघ्र जांच की जानकारी की कमी है। हम पानीपत और आसपास के क्षेत्रों के निवासियों से आग्रह करते हैं कि वे नियमित रूप से जांच के लिए आगे आएं ताकि कैंसर की पहचान प्रारंभिक अवस्था में ही की जा सकें।''
कैंसर होने का मतलब जिंदगी खत्म हो जाना नहीं है। कैंसर की पहचान यदि पहले या दूसरे चरण जैसे शुरूआती अवस्था में ही हो जाए तो रोग का इलाज होना या रोगी के जीवित रहने की दर 80 से 100 प्रतिषत होती है जबकि तीसरे और चौथे चरण में कैंसर की पहचान होने पर इसके इलाज होने की संभावना सिर्फ 30 से 50 प्रतिषत ही होती है। लेकिन इसकी रोकथाम के लिए, लोगों को सक्रिय होने की जरूरत है और उन्हें जांच के लिए नियमित रूप से अस्पताल आना चाहिए।