हमारे देश में हृदय के वाल्व में खराबी आना या उनका विकारग्रस्त होना एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है। अमेरिका जैसे विकसित देशों में जागरूकता एवं बेहतर चिकित्सा सुविधाओं के कारण यह समस्या काफी हद तक काबू में आ चुकी है लेकिन हमारे देश में गरीबीए अत्यधिक भीड़.भाडए जागरूकता का अभाव तथा बेहतर चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण हृदय वाल्व में खराबी की समस्या काफी व्यापक है।
भारत में हृदय वाल्व में खराबी की समस्या की व्यापकता का एक बड़ा कारण रहृयूमेटिक हार्ट डिजीज है। यह बीमारी निम्न आय वर्ग के बच्चों और किशोरों में ज्यादा होती है। इसके अतिरिक्त घनी आबादी और भीड़भाड़ वाली जगहों पर रहने वाले लोग भी इस बीमारी की गिरफ्त में ज्यादा आते हैं। हमारे देश में गरीबों को खास तौर पर शिकार बनाने वाले रह्यूमेटिक रोग के कारण करीब दो करोड़ से अधिक लोग हृदय वाल्वों में खराबी से ग्रस्त हैं। अपने देश में इस रोग की व्यापकता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि विभिन्न अस्पतालों में भर्ती होने वाले 30 से 50 प्रतिशत हृदय रोगी इसी रोग से पीड़ित होते हैं।
हार्ट वाल्व की खराबी तब होती है जब हृदय के एक या अधिक वाल्व ठीक से काम नहीं करते। दिल में चार वाल्व होते हैं। हार्ट वाल्व डिजीज में हृदय से होकर जाने वाले रक्त का प्रवाह बाधित हो जाता है। इस तरह की समस्या होने पर प्रभावित व्यक्ति के पूरे स्वास्थ पर असर पड़ सकता है। मानव हृदय में झिल्लीनुमा संरचना वाले चार हार्ट वाल्व होते हैं। चार कक्षों वाले हृदय में वाल्व का काम लगातार एक दिशा में रक्त संचरण को बनाए रखना होता है। वाल्व ऊपरी और निचले कक्षों के प्रवेश और निकास द्वार पर मौजूद रहते हैं। इनका काम रक्त को आगे प्रवाहित करना और पीछे लौटने से रोकना होता है। ये फोल्ड होने के साथ बंद भी हो जाते हैं।
हार्ट चैंबर में लगे वाल्व हर एक हार्ट बीट के साथ खुलते और बंद होते हैं। हार्ट वाल्व यदि ठीक प्रकार से काम कर रहे हैं तो रक्त संचार बिना किसी बाधा के आगे की तरफ हो रहा होता है। हार्ट वाल्व में सिकुड़न या अन्य कोई परेशानी होने पर रक्त पूरी तरह आगे न जाकर पीछे की तरफ लौटना शुरू कर देता है।
हृदय के वाल्व के सिकुड़ जाने या कठोर हो जाने पर दिल की मांसपेशियों को रक्त खींचने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। हार्ट वाल्व के रोग जन्मजात भी हो सकते है। इसके अलावा यह समस्या किसी तरह के संक्रमण के कारण भी हो सकती है। ज्यादातर मामलों में हार्ट वाल्व के रोग की समस्या बाद में पैदा होती है। कई बार इस तरह की समस्या होने के कारण का पता नहीं चलता। यह समस्या बीमारियों से ग्रस्त रहने के कारण भी हो सकती है।
रह्युमेटिक हृदय रोग अथवा अन्य कारणों से वाल्व में खराबी होने पर रोगी की स्थिति के अनुसार बैलून वाल्वोप्लास्टी और ओपन हार्ट सर्जरी का सहारा लिया जाता है।
वाल्व के सिकुड़ जाने पर बैलून वाल्वयूलोप्लास्टी की मदद ली जाती है और वाल्व के बंद होनेए रिसाव होने तथा वाल्व में बहुत ज्यादा सिकुड़न होने पर ऑपरेशन के जरिये ही वाल्व रिप्लेसमेंट किया जाता है। इसे माइट्रल अथवा एयोर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट कहा जाता है।
जब वाल्व में बहुत ज्यादा रिसाव नहीं होता और उसमें कैल्शियम जमा नहीं होता है तब उसे बैलून वाल्वयूलोप्लास्टी की मदद से ही खोला जा सकता है। आज बैलून तकनीक काफी कारगर साबित हो चुकी है। पिछले 10—15 सालों से इसका व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है। हालांकि सीना खोल कर की जाने वाली ओपन हार्ट सर्जरी की जरूरत भी काफी ज्यादा हो गयी है क्योंकि ज्यादातर मरीज इलाज के लिए काफी देर में आते हैं उस समय तक सारे वाल्व खराब हो जाते हैं इसलिए सर्जरी के अलावा कोई चारा नहीं होता है। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को ओपन हार्ट सर्जरी से बहुत अधिक खतरा रहता है। कई बार सर्जरी के दौरान पेट में पल रहे बच्चे की जान चली जाती है। बैलून तकनीक में मरीज को बिना बेहोश किए ही बहुत कम समय में वाल्व को खोला जा सकता है।
आपात स्थिति में वाल्व बदलने पर मरीज की जान जाने का खतरा 50 प्रतिशत तक होता है लेकिन सामान्य स्थिति में वाल्व बदलने पर खतरा मात्र चार—पांच प्रतिशत ही होता है। ऐसे में मरीज तीसरे—चौथे दिन से ही चल—फिर सकता है।
वाल्व खोलने की प्रक्रिया में एक—दो प्रतिशत मरीजों के वाल्व फट भी सकते हैं। ऐसी स्थिति में मरीज की जान पर खतरा मंडराने लगता है। ऐसी स्थिति में मरीज का वाल्व ऑपरेशन के जरिये तत्काल बदलना जरूरी होता है। इसलिये बैलून वाल्वयूलोप्लास्टी के दौरान शल्य चिकित्सकों की टीम का होना आवश्यक होता है। बैलून वाल्वयूलोप्लास्टी से वाल्व खोलने में मरीज को बेहोश नहीं करना पड़ता है तथा मरीज को रक्त नहीं चढा़ना पड़ता है। मरीज को मात्र एक—दो दिन ही अस्पताल में रूकना पड़ता है। फेफड़े में जाने वाली पल्मोनरी नामक नस वाला वाल्व अगर बचपन से ही खराब हो तो उसे बिना ऑपरेशन बैलून की मदद से खोला जा सकता हैं। इसके अलावा एयोर्टिक वाल्व अगर संकरा हो जाये तो उसे बैलून की मदद से खोला जा सकता है। इस वाल्व से हृदय का रक्त निकल कर बाहर जाता है।