एक दूसरे से जुड़े हुये जुड़वे (कोंज्वाइंड ट्विंस) हमेशा से लोगों को चमत्कृत एवं विस्मित करते रहे हैं। वे कहीं देवी-देवताओं के रूप में पूजे जाते रहे हैं तो कहीं दैत्य के रूप में लोगों के लिये दहशत पैदा करते रहे हैं। मिथकों, कथा-कहानियों और फिल्मों में ये प्रमुखता से स्थान पाते रहे हैं। प्राचीन काल में एक दूसरे से जुड़े जुड़वे मांस्ट्रोसाइटिस कहलाते थे लेकिन आज इन जुड़वों की शारीरिक बनावट, उनकी मानसिक स्थितियों तथा उनके पैदा होने के चिकित्सकीय कारणों के बारे में ज्ञान बढ़ने के कारण ये जुड़वे सामाजिक सहारा, सहयोग और सहानुभूति पाने लगे हैं। कई जुड़वों ने अपनी शारीरिक विलक्षणता के कारण शोहरत की बुलंदियां भी पायी है। आपरेशन के दौरान मौत को गले लगाने वाली सिर से जुड़ी ईरानी बहनें - लोदन बिजलानी और लालेह बिजलानी इसका उदाहरण है। एक दूसरे से जुड़े जुड़वे को सियामी जुड़वे भी कहा जाता है क्योंकि विष्व के पहले संयुक्त जुड़वे सियाम (अब थाइलैंड) में पैदा हुये थे।
चिकित्सकों के अनुसार संयुक्त जुड़वों की पैदाइश अनेक कारणों से होती है जिनमें आनुवांशिक कारण तथा वातावरण संबंधी परिस्थितियां प्रमुख हैं।
एक अनुमान के अनुसार हर 70 हजार से एक लाख जीवित बच्चों के जन्म पर एक संयुक्त जुड़वे पैदा होते हैं। नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ न्यूरो सर्जन डा. विजयशील कुमार के अनुसार सिर से जुड़े (क्रैनियोपेगस) जुड़वे हर 20 लाख जीवित बच्चों के जन्म पर पैदा होते हैं। ईरान के तेहरान में 17 जनवरी 1974 को जन्मी सिर से जुड़ी बहनें - लोदन बिजलानी और लालेह बिजलानी क्रैनियोपेगस ट्विन्स थी।
वैज्ञानिकों के अनुसार संयुक्त जुड़वे एक ही अंडे से पैदा होते हैं।
गर्भ में विकसित होने वाला भू्रण गर्भधारण के बाद के पहले दो सप्ताह के भीतर दो एकसमान जुड़वे में विभाजित होना आरंभ होता है। लेकिन इस प्रक्रिया के पूरी तरह से पूर्ण होने के पहले ही रूक जाने पर आंशिक तौर पर पृथक अंडा बन जाता है। यह अंडा कोशिकाओं के दो पूरी तरह पृथक पिंडों में विकसित होता है जबकि एक दूसरे से अलग सामान्य जुड़वों की पैदाइश के दौरान ये दोनों पिंड एक समान होते हैं। इस कारण एक दूसरे से जुड़े जुड़वों की कोशिकायें इस बात को लेकर भ्रम में रहती हैं कि वे शरीर के किस भाग में हैं। सामान्य भूण विकास में हर कोशिका को पता होता है कि वे शरीर के किस हिस्से में हैं क्योंकि आस-पास की कोशिकायें आपस में रासायनिक संदेश का आदान-प्रदान करती हैं। सामान्य भ्रूण में त्वचा की कोशिकाएं केवल यह नहीं जानतीं कि वे त्वचा में हैं बल्कि वे यह भी जानती हैं कि नाक, कान, गाल, ठुड्डी, ओंठ अथवा किस अंग की त्वचा में हैं।
संयुक्त जुड़वे में रासायनिक संदेश की प्रणाली के ठीक से काम नहीं करने का परिणाम अत्यंत बेतुका होता है। एक शरीर में कई बार दो सिर, कई बार दो हृदय, कई बार चार पैर और कई बार चार हाथ हो जाते हैं। कई बार इसका उल्टा होता है अर्थात दो शरीर के साथ एक सिर अथवा दो पैर या दो हाथ हो जाते हैं। एक दूसरे से जुड़े हुये जुड़वे कई प्रकार के होते हैं। पिछली शताब्दी में कम से कम 36 प्रकार के जुड़वों की पहचान की गयी।
एक दूसरे से जुड़े जुडवे का जन्म अत्यंत कष्टदायी होता है। इन संयुक्त जुड़वों में से 40 से 60 प्रतिशत प्रसव के समय मृत होते हैं। प्रसव के समय जो संयुक्त जुड़वे जीवित होते हैं उनमें से करीब 35 प्रतिशत केवल एक दिन ही जिंदा बच पाते हैं। कुल मिलाकर संयुक्त जुड़वों के जीवित रहने की दर 5 से 25 प्रतिशत है। पिछले 500 वर्षों के इतिहास में करीब जीवित रहने वाले 600 एक दूसरे से जुड़े जुडवों के ब्यौरे मिलते हैं। इन जुड़वों में 70 प्रतिशत लड़कियां थी।
डा. विजयशील कुमार बताते हैं कि एक दूसरे से जुड़े जुड़वां बच्चों को अलग करने की शल्य क्रिया अत्यंत जटिल एवं जोखिम भरी होती है। आपरेशन के दौरान अनेक जटिलतायें पैदा हो सकती हैं और किसी एक या दोनों जुड़वों की जान जा सकती है। उन्हें दी जाने वाली एनेस्थिसिया भी खतरे पैदा कर सकती है। सर्जरी के दौरान नवनिर्मित रक्त धमनियों में रक्त के थक्के बनने, रक्त स्राव होने, हृदय संबंधी दिक्कतें और संक्रमण मुख्य जटिलतायें होती हैं। सर्जरी के बाद तीन से चार दिन का समय अत्यंत निर्णायक होता है।
पिछले दिनों आपरेशन के दौरान मौत को गले लगाने वाली ईरानी बहनों में मस्तिष्क अलग-अलग थे लेकिन सैगिट्टल साइनस सहित उनके मस्तिष्क की महत्वपूर्ण रक्त
धमनियां एक ही थीं। सैगिट्ट साइनस मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति करने वाली मुख्य धमनी होती है। उन्हें अलग करने के लिये आपरेशन करने वाले सिंगापुर के शल्य चिकित्सकों को दोनों के मस्तिष्क की कुछ धमनियों का पुनर्निर्माण करना था। लेकिन शल्य चिकित्सकों का कहना है कि धमनियों को अलग-अलग करने तथा नये रक्त मार्गों के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया के दौरान बहुत अधिक रक्त बह जाने के कारण दोनों की मौत हो गयी।