दुर्लभ आनुवांशिक बीमारियां : लायसोसोमल स्टोरेज बीमारियों (एलएसडी) का प्रकोप भारत में ज्यादा क्यों है

लायसोसोमल स्टोरेज बीमारियां (एलएसडी) उन बीमारियों का समूह हैं जिनमें करीब 50 दुर्लभ आनुवांशिक बीमारियां शामिल हैं। ये बीमारियां शरीर की लायसोसोमल नामक कोशिकाओं के विशेष हिस्सों में एक एंजाइम की कमी के कारण उत्पन्न होती है। ये एंजाइम शरीर के बेकार पदार्थों को लायसोसोम्स में विघटित करते हैं। इस एंजाइम की कमी के कारण शरीर की कोषिकाओं में बेकार पदार्थ जमा होने लगते हैं जिसका प्रभाव अनेक अंगों पर पड़ता है जिससे शरीर का मानसिक और/अथवा मानसिक क्षय होने लगता है। 
इन जटिलताओं के कारण विकास में बाधा पड़ती है, गतिशीलता संबंधी समस्याएं होती है, दौरे पड़ते हैं, लीवर बड़ा हो जाता है, तिल्ली का आकार बढ़ जाता है, हड्डियों कमजोर हो जाती हैं तथा फेफड़े एवं हृदय संबंधी समस्याएं होती हैं। 
इस बात के मद्देनजर कि दिल्ली सरकार ने राज्य में एलएसडी से ग्रस्त मरीजों की संख्या का पता लगाने के लिए एक समिति गठित की है, यह वक्त की जरूरत है कि एक ऐसा कोश गठित हो तथा इन मरीजों का उपचार शुरू हो तथा पुनर्वास की सुविधाओं से सम्पन्न एक केन्द्र की तत्काल स्थापना हो। जरूरत इस बात की है कि राज्य के आनुवांशिक विशेषज्ञों तथा सरकारी अस्पतालों के परामर्श से इस दिशा मे संयुक्त प्रयास किए जायें क्यांकि हर साल दुर्लभ बीमारियों से ग्रस्त बच्चे मौत के ग्रास बन रहे हैं। उन्होंने कहा, ''ईएसआई, सशस्त्र बल, सावर्जनिक क्षेत्र के उपक्रमों एवं महाराष्ट्र सरकार ने देश भर में ऐसे 14 मरीजों को निःषुल्क चिकित्सा देनी शुरू कर दी है।''
सर गंगा राम अस्पताल में मेडिकल जेनेटिक्स के निदेशक डॉ. आई. सी. वर्मा ने इस विचार की पुष्टि करते हुए कहा कि ''दुर्लभ बीमारियों से काफी संख्या में पीड़ित लोगों के जीवन को बचाने और उनके जीवन में सुधार करने के लिए भारत में इन बीमारियों के लिए एक राष्ट्रीय योजना विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है। डायग्नोस्टिक और प्रबंधन केंद्रों की स्थापना के साथ- साथ आम लोगों, चिकित्सकों और स्वास्थ्य प्रषासकों में जागरूकता पैदा करने के लिए एक निश्चित नीति बनाना आवश्यक है। इन केन्द्रों को इन बीमारियों की काउंसलिंग और रोकथाम में भी शामिल होना होगा।''
लायसोसोमल स्टोरेज डिसआर्डर जीवित जन्म लेने वाले 5000 में करीब एक बच्चे में होता है। अधिकतर एलएसडी को रोग विषिश्ट सहायक देखभाल उपायों के माध्यम से प्रबंधित किया जाता है। हालांकि, सात प्रकार के एलएसडी का अब एनजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपियों (ईआरटी) के माध्यम से इलाज किया जा सकता है। भारत में वर्तमान में एलएसडी के करीब 300-400 वैसे रोगी हैं जिनमें एलसीडी का इलाज किया जा सकता है।
डाॅ. वर्मा के अनुसार, ''भारत में 5 केन्द्रों में करीब 100,000 नवजात शिशुओं की स्क्रीनिंग पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के द्वारा एक ताजा अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में पता चला कि मेटाबोलिज्म में जन्मजात गड़बड़ी (आईईएम) के मामले पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में काफी ज्यादा थे और भारत में हर साल आईईएम से पीड़ित लगभग 26,000 शिशु पैदा होते हैं। विषेश आहारों और दवाओं से समय पर उनका उपचार कर उनमें से कई को बचाया जा सकता है या उनकी मानसिक मंदता की रोकथाम की जा सकती है। भारत सरकार को एक प्राथमिकता के रूप में भारत में दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए अनुसंधानों और  उपचारों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए एक आर्फन औषधि अधिनियम पारित करना चाहिए।''