दुखती कमर का क्या करें

कमर दर्द किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है। यह समस्या 35 और 55 वर्ष के बीच आयु वर्ग के लोगों के बीच काफी आम है। एक अनुमान के अनुसार करीब 75 से 85 प्रतिशत लोगों को उनके जीवन काल में किसी न किसी रूप में कमर दर्द होता है।
कमर के किसी भी हिस्से में होने वाले दर्द को कमर दर्द कहा जाता है। यह आम तौर पर रीढ़ की मांसपेशियों, जोड़ों, नसों, हड्डियों या रीढ़ के अन्य हिस्सों से शुरू होता है। कमर दर्द हमारे पैरों एवं पीठ में भी जा सकता है और यह डिप्रेशन और तनाव/चिंता जैसे अन्य कारकों से भी जुड़ा हो सकता है।
कमर दर्द का कारण 
कमर दर्द की समस्या दिन भर काम करने वाली गृहणियों एवं आफिस में डेस्क पर बैठकर काम करने वाले कर्मचारियों को अधिक होती हे। लेकिन कमर के दर्द की समस्या से आजकल हर उम्र का व्यक्ति परेशान रहता है। आजकल बच्चों से लेकर बड़े-बूढों को भी कमर दर्द की शिकायत होती है। कमर दर्द का एक कारण अधिक देर तक एक ही अवस्था में बैठकर काम करना भी है। भारी वजन उठाने के कारण मांसपेशियों में अधिक खिंचाव आ जाता है जिससे कमर में दर्द हो जाता है। हमेशा हाई हील सेंडिल या जूतों को पहनने के कारण भी कमर में दर्द हो जाता है। कभी-कभी अधिक नर्म गद्दों पर सोने से भी कमर में दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अधिक देर तक ड्राइव करने के कारण भी लोगों को कमर में दर्द की शिकायत हो जाती है। बुजुर्गों के कमर में दर्द बढ़ती उम्र के कारण हो सकता है। जैसे-जैसे वृद्ध लोगों की उम्र बढ़ती जाती है वैसे-वैसे उनके जोड़ों, कमर तथा पीठ में दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
कमर दर्द कई तरह से हो सकता है जैसे-  अचानक तीव्र शुरुआत, लगातार लंबे समय तक दर्द, सुस्ती के साथ दर्द, गहरी सनसनाहट, भेदने वाला तीव्र दर्द, गर्म या ठंडा महसूस होने के साथ कमर दर्द, कभी नहीं रुकने वाला लगातार दर्द, थोड़े समय के लिए आराम, उसके बाद फिर से दर्द का शुरू हो जाना, किसी खास हिस्से में दर्द और चारों तरफ फैलता हुआ दर्द।  
रीढ़ से जुड़े कमर दर्द के हर्नियेटेड डिस्क, ऑस्टियोपोरोसिस, स्पोंडिलोलिस्थीसिस, स्टेनोसिस, रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर, रीढ़ की हड्डी में ट्रामा, स्पाइनल ट्यूमर, डिजेनरेटिव डिस्क रोग (डीडीडी) और रेडियोकुलोपैथी स्कोलियोसिस जैसे प्रमुख कारण हैं। 
कमर दर्द की जांच
आम तौर पर कमर दर्द की जांच एक्स-रे, सीटी स्कैन, एमआरआई, माइलोग्राम और बोन स्कैन जैसी विधियों के जरिए की जाती है। एक्स-रे शक्तिशाली अदृश्य किरणें होती हैं जिनके जरिए मानव षरीर के भीतर के अंगों खास तौर पर हड्डियों को देखना संभव हो जाता है। सीटी स्कैन कम्प्यूटर से प्रोसेस की हुई एक्स-रे होती हैं जिनके जरिए षरीर के किसी हिस्से की क्राॅस सेक्शनल तस्बीेरें उत्पन्न की जाती हैं जिनकी मदद से हड्डियों और कोमल ऊतकों को देखा जाता है। एमआरआई एक इमेजिंग तकनीक है जिसमें ऊतकों और नसों सहित शरीर की आंतरिक संरचना को देखने के लिए चुंबकीय क्षेत्र और रेडियो तरंगों का उपयोग किया जाता है। माइलोग्राम में स्पाइनल कार्ड में रेडियोग्राफिक डाई इंजेक्ट की जाती है जिससे यह देखने में मदद मिलती है कि वर्टेब्रा कहीं स्पाइनल कार्ड में चुभ तो नहीं रहा है। बोन स्कैन के तहत मरीज में रेडियोधर्मी ट्रेसर इंजेक्ट किया जाता है। इसके बाद मरीज की स्कैनिंग की जाती है जिससे हड्डी में कुछ असामान्यताओं को देखा जा सकता है।
कमर दर्द का उपचार
कमर दर्द की गंभीर समस्या के उपचार के लिए गैर सर्जिकल एवं सर्जिकल जैसे विकल्प अपनाए जाते हैं। आरंभिक स्थितियों में कमर दर्द से पीड़ित ज्यादातर लोग फैमिली डाॅक्टर या इंटरनल मेडिसीन के विशेषज्ञ से परामर्श कर सकते हैं जो मरीज को परम्परागत तरीके से उपचार करने के बारे में सलाह दे सकते हैं। परम्परागत तरीके से उपचार की मदद से मेडिकल या आपरेटिव उपचारों को टाला जा सकता है। कमर दर्द के लिए परम्परागत उपचार विधियों में व्यायाम, फिजियोथिरेपी और इंजेक्षन आदि शामिल है। व्यायाम कमर दर्द तथा इससे जुड़ी चिंता/डिप्रेशन एवं लाचारी की भावना को दूर करने में मददगार साबित हो सकता है। फिजियोथिरेपी के तहत फिजियोथिरेपिस्ट मरीज को बुनियादी शरीर रचना और शरीर विज्ञान के बारे में शिक्षित करते हैं और मरीज को वैसे व्यायाम करने के बारे में निर्देश देते हैं जिससे प्रभावित अंग में ताकत आती है तथा शरीर को अनुकूल बनाया जा सकता है। एपीड्यूरल स्पाइनल इंजेक्शन के तहत कष्ट देने वाली स्पाइनल नसों के आसपास के क्षेत्र में सूजन रोधी दवाई दी जाती है। अगर परम्परागत उपचार की विधियों से लाभ नहीं होता है तो मरीज को आगे के इलाज के लिए स्पाइन विशेषज्ञ के पास भेजा जाना चाहिए। 
जब कमर दर्द का इलाज परम्परागत तरीकों से नहीं होता तो सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है। इसके लिए डिकम्प्रेशन, स्पाइनल फ्यूजन, मिनिमल एक्सेस स्पाइनल टेक्नोलॉजीज (एमएएसटी), बैलून काइफोप्लास्टी और डिस्क रिप्लेसमेंट (आथ्रोप्लास्टी) जैसी विधियां अपनाई जाती है।  
डिक्रम्प्रेशन में सर्जन कष्ट देने वाले हड्डी के टुकड़े या तकलीफदेह डिस्क सामग्रियों को निकाल देते हैं। स्पाइनल फ्यूजन के जरिए सर्जन आपकी रीढ़ पर से दबाव हटाते हैं और हड्डियों के दो खंडों को जोड़ते हैं। सर्जन फ्यूजन पूरा होने तक स्पाइन को स्थिर रखने के लिए मेटल राॅड तथा स्क्रू का उपयोग करते हैं। 
डिस्क रिप्लेसमेंट (आथ्रोप्लास्टी) में सर्जन रुग्न या क्षतिग्रस्त डिस्क के स्थान पर कृत्रिम डिस्क पुन:स्थापित करते हैं ताकि रीढ़ की हड्डी में सामान्य गतिशीलता को बनाया रखा जा सके तथा दर्द कम हो सके। 
बैलून काइफोप्लास्टी मिनिमली इनवैसिव स्पाइनल प्रक्रिया है जिसमें वर्टेब्रल हाइट को दोबारा कायम किया जाता है जिससे ओस्टियोपेरेटिक स्पाइनल फ्रैक्चर के कारण होने वाले दर्द से राहत मिलती है। फ्रैक्चर्ड वर्टेब्रेट हिस्से में एक छोटे से गुब्बारे को फुलाया जाता है ताकि वहां रिक्त स्थान बन सके। जब रिक्त स्थान बन जाता है तो उस रिक्त स्थान में बोन सीमेंट इंजेक्ट कर दिया जाता है। 
मिनिमल एक्सेस स्पाइनल टेक्नोलॉजीज (एमएएसटी) विधि में मानक स्पाइन प्रक्रियाओं की तुलना में बहुत ही छोटे चीरे के जरिए एमएएसटी सर्जरी की जाती है और इस तरह से मांसपेशियों की क्षति कम होती है, कम रक्त की हानि होती है और कम समय के लिए अस्पताल में रहना पड़ता है।