दिमागी कैंसर का संकेत हो सकता है सिर दर्द

अक्सर सिर दर्द को  मामूली बीमारी समझ कर अनदेखी कर दी जाती है लेकिन अगर सिर में लगातार दर्द रहे तथा दवाइयों और अन्य उपायों से यह ठीक नहीं हो तो यह मस्तिष्क कैंसर का संकेत हो सकता है। यह कैंसर किसी भी उम्र में यहां तक कि बचपन में भी हो सकता है लेकिन 40 साल की उम्र के बाद इसके होने की आशंका अधिक होती है। मस्तिष्क कैंसर में सिर दर्द, उल्टी, दौरा पड़ने, हाथ या पैर में कमजोरी आने, चेहरा टेढ़ा होनेे, खाना निगलने में परेशानी, चलते समय पैर डगमगाने जैसी शिकायतें होती हैं। अगर किसी व्यक्ति को लगातार सिर दर्द रहता हो और छोटी-मोटी दवाइयों से भी ठीक नहीं हो तथा आंखों या साइनुसाइटिस संबंधित जांच से भी इसके कारणों का पता नहीं चले तोे मरीज को अपने मस्तिष्क की जांच खासकर सीटी स्कैन अवश्य करानी चाहिए। बच्चों में ब्रेन कैंसर होने पर मस्तिष्क का आकार बढ़ने, खाने में अरूचि और कब्जियत जैसी शिकायतें होती है। टट्टी करते वक्त बच्चे जब जोर लगाते हैं तो उनके सिर में दर्द होने लगता है इसलिए वे टट्टी करना नहीं चाहते हैं। इससे उनकी कब्जियत और बढ़ जाती है। बच्चों में ऐसे लक्षण होने पर उनके मस्तिष्क का सीटी स्कैन अवश्य करा लेना चाहिए। सीटी स्कैन में मस्तिष्क की विस्तृत तस्वीर आ जाती है जिसे देखकर सिर दर्द के कारण का पता लगाया जा सकता है। हालांकि सिर दर्द से पीड़ित एक या दो प्रतिशत से भी कम रोगियों में ब्रेन कैंसर होता है लेकिन ब्रेन कैंसर की शुरूआत में ही इसका पता चल जाने पर मरीज केे इलाज होने की संभावना अधिक होती है। 
ब्रेन कैंसर में अधिकतर ग्लायोमा किस्म के ट्यूमर होते हैं। ग्लायोमा ट्यूमर बहुत जल्दी वृद्धि करते हैं। एक-दो हफ्ते में ही उनकी कोशिकाएं दोगुनी हो जाती हैं और वे इसी रफ्तार से बढ़ती जाती हैं जिससे ट्यूमर का आकार भी बहुत तेजी से बढ़ता जाता है। ट्यूमर के बढ़ने से ट्यूमर के आस-पास का हिस्सा दबने लगता है। बोलने से संबंधित स्नायु के दबने से मरीज को बोलने में परेशानी होने लगती है, पैर की गतिविधियों से संबंधित स्नायु के दबने से चलने-फिरने में परेशानी होने लगती है। इसी तरह शरीर के अन्य अंग को संचालित करने वाले स्नायु के दबने से अन्य तरह की परशानियां भी हो सकती हैं।
मेनिनजियोमा ट्यूमर आम तौर पर कैंसर नहीं होते। मेनिनजियोमा मस्तिष्क के ड्यूरामेटा (कवरिंग) का ट्यूमर है। यह ट्यूमर धीरे-धीरे बढ़ता है। यह ट्यूमर जब किसी खास जगह पर होता है तो खतरनाक हो सकता है क्योंकि वैसी स्थिति में इसका आपरेशन करना कठिन होता है। एक बार मेनिनजियोमा ट्यूमर को आपरेशन से सफलतापूर्वक निकाल देने और उसे गामा नाइफ जैसी तकनीक से जला देने पर उसके दोबारा होने की आशंका बहुत कम होती है और मरीज सामान्य जिंदगी जी सकता है।
ग्लायोमा ट्यूमर के इलाज के तौर पर सबसे पहले इसका आपरेशन किया जाता है। आपरेशन से यह भी पता लग जाता है कि यह सामान्य किस्म का ट्यूमर है या कैंसर वाला ट्यूमर है। इसी के आधार पर मरीज की बाकी जिंदगी का अंदाजा लगाया जा सकता है। आपरेशन के दौरान ट्यूमर का जितना अधिक हिस्सा निकाला जाता है, मरीज को उतना ही अधिक फायदा होता है। लेकिन ट्यूमर को निकालते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि इससे मरीज को कोई हानि न हो इसलिए ट्यूमर का उतना ही हिस्सा निकाला जाता है जिससे मरीज अपाहिज न हो और अपना काम खुद कर सके। 
ग्लायोमा ट्यूमर के आपरेशन के बाद मरीज को आमतौर पर रेडियोथेरेपी दी जाती है। इसके बाद कुछ मरीजों को कीमोथेरेपी दी जाती है। इसके तहत मरीज को दवाइयां दी जाती हैं। ग्लायोमा ट्यूमर के मरीजों को कीमोथेरेपी से विशेष फायदा नहीं होता है इसलिए ग्लायोमा ट्यूमर के बहुत कम मामलों में कीमोथेरेपी दी जाती है। लेकिन अगर मरीज को दौरा रोकने की दवा दी जाती है तो उसे नियमित रूप से यह दवा लेनी चाहिए। इससे दौरा नियंत्रित रहता है। 
इलाज के बाद मरीज का सिर दर्द ठीक हो सकता है, उल्टियां भी कम हो जाती है, लेकिन मस्तिष्क का जो हिस्सा क्षतिग्रस्त हो चुका होता है उसे ठीक नहीं किया जा सकता है। दो साल से कम उम्र के बच्चों में बहुत ही खतरनाक किस्म का ब्रेन कैंसर होता है और ऐसे में छह महीने भी जीवित रहना मुश्किल होता है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों में रेडियोथेरेपी भी नहीं दी जाती क्योंकि इससे बच्चे के मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है या बच्चे की बुद्धि क्षमता कम हो सकती है। हालांकि कुछ बच्चों में ऐसे ब्रेन ट्यूमर भी होते हैं जिन्हें निकाल देने पर बच्चा सामान्य जिंदगी जी सकता है। इसलिए ब्रेन ट्यूमर की स्थिति में बच्चे का आपरेशन कराना जरूरी होता है। अधिक उम्र के लोगों में भी अधिक खतरनाक किस्म का ब्रेन कैंसर होता है। 
अब विश्व भर के न्यूरो सर्जन और जैव प्रोद्यौगिकी विशेषज्ञ ऐसा इलाज विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे ट्यूमर दोबारा वृद्धि न करने पाए। इसके तहत जीन थेरेपी, जी,एल.ए. तकनीक, ब्रेकी थेरेपी जैसी तकनीकों पर गहन पूर्वक शोध किये जा रहे हैं। चिकित्सकों को इन तकनीकों में से सबसे अधिक उम्मीद जीन चिकित्सा से ही है। अमेरिका, इंग्लैंड और जापान में कैंसर मरीजों पर जीन थेरेपी का इस्तेमाल शुरू हो गया है। भारत में अभी इस थेरेपी से इलाज में कम से कम एक-दो साल लगेंगे क्योंकि यहां अभी इस तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं है।