उपचार के क्षेत्र में प्रगति होने और स्ट्रोक पड़ने के बाद विंडो पीरियड के भीतर अस्पताल आने वाले मरीजों का इलाज और देखभाल अधिक सफलतापूर्वक हो सकता है। मैक्स अस्पताल के डॉक्टरों ने यह दावा किया है।
मैक्स हाॅस्पिटल पटपड़गंज और वैशाली में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, यहां स्ट्रोक के बाद निर्धारित विंडो अवधि के भीतर समय पर इलाज के लिए आपातकालीन विभाग में आने वाले मरीजों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इससे थ्रोम्बोलाइटिक थेरेपी के लिए मरीज अधिक योग्य होता है और लगभग 50 प्रतिषत रोगियों में महत्वपूर्ण रिकवरी होने की संभावना होती है।
मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हाॅस्पिटल, पटपड़गंज के वरिष्ठ निदेशक और विभागाध्यक्ष डाॅ. संजय सक्सेना ने एक केस स्टडी के बारे में बताते हुए कहा, ''39 वर्षीय एक रोगी को आपातकालीन विभाग में सुबह 4 बजे लाया गया। उसे शरीर के दाहिनी तरफ कमजोरी महसूस हो रही थी और वह बोल या समझ नहीं पा रहा था। चूंकि उसे विंडो अवधि के भीतर ही अस्पताल लाया गया था, इसलिए उसके आने के 20 मिनट के भीतर एक क्लॉट बस्टर इंजेक्शन दिया। लेकिन इससे रोगी की स्थिति में कोई महत्वपूर्ण सुधार नहीं हुआ इसलिए न्यूरो- इंटरवेंषनलिस्ट की टीम ने मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी करने का फैसला किया। एंजियोग्राफी में उसके मस्तिष्क की प्रमुख धमनी में एक मोटा थक्का होने का पता चला, जिसे सफलतापूर्वक हटा दिया गया। उसका दाहिना तरफ लकवाग्रस्त हो गया था जो ठीक हो गया और रोगी बोलने और समझने में सक्षम हो गया। यह एक महत्वपूर्ण मामला था, क्योंकि इस तरह के ब्लाॅकेज होने पर क्लाॅट बस्टर इंजेक्षन से अन्य मरीज़ आम तौर पर ठीक हो जाते हैं जबकि इस मामले में यह अप्रभावी हो गया।''
अस्पताल ने एक्यूट स्ट्रोक के बाद आने वाले लगभग 20-25 प्रतिषत मरीजों का थ्रोम्बोलाइटिक थेरेपी से इलाज किया है, जो दुनिया भर के किसी भी उन्नत स्ट्रोक केंद्रों के बराबर है। समर्पित टीम और इस्कीमिक और हेमोरेजिक स्ट्रोक दोनों के लिए मानक प्रोटोकॉल संस्थान होने के कारण, यहां उपचार के सभी उन्नत तकनीक चैबीसों घंटे उपलब्ध हैं।
डॉ सक्सेना ने कहा, ''लोगों में स्ट्रोक के लक्षणों और समय पर इलाज के महत्व के बारे में बड़े पैमाने पर जागरूकता पैदा करनी चाहिए। स्ट्रोक के इलाज और इसे ठीक करने के लिए पहले छह से चैबीस घंटे महत्वपूर्ण होते हैं। उपचार में देरी से स्ट्रोक पीड़ितों में से एक तिहाई से अधिक मरीज स्थायी रूप से अक्षम हो जाते हैं और 25 प्रतिषत से अधिक मरीज की पहले वर्ष में ही मृत्यु हो जाती है। सौभाग्य से, अधिक से अधिक जेनरल फिजिषियन और गैर न्यूरोलाॅजी फिजिषियन, जो लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने में महत्वपूर्ण हैं, अब एक्यूट स्ट्रोक का इलाज करने में अच्छी तरह से जागरूक और आश्वस्त हैं। एक्यूट स्ट्रोक रोगियों की उचित जागरूकता और तत्काल उपचार से निश्चित रूप से बीमारी का बेहतर नियंत्रण होगा और समाज में विकलांगता का बोझ कम हो जाएगा।''
स्ट्रोक दुनिया भर में मृत्यु दर और स्थायी विकलांगता के सबसे आम कारणों में से एक है। हालांकि एक्यूट स्ट्रोक वाले रोगियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और उनमें समय पर इसकी पहचान हो रही है, लेकिन विकसित देशों की तुलना में भारत में इससे संबंधित मृत्यु दर बढ़ रही है। एक्यूट स्ट्रोक का परिणाम प्राथमिक उपचार के आरंभिक समय पर निर्भर करता है इसलिए रोगियों का जल्द अस्पताल आना सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। इसका मतलब है कि आबादी में स्ट्रोक की जल्द पहचान और जागरूकता बहुत महत्वपूर्ण है।
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