नवीं क्लास में पढ़ने वाला 14 वर्शीय राजन मल्होत्रा को कुछ समय से एंग्जाइटी और पल्पीटेषन की समस्या रह रही थी। उसका वजन सामान्य था इसलिए उसके माता-पिता इस समस्या को लेकर अधिक परेषान नहीं थे। वे सामान्य जांच के लिए उसे डॉक्टर के पास लेकर गए तो उन्होंने पाया कि उसका रक्तचाप बहुत अधिक था। उसका लिपिड प्रोफाइल भी सामान्य स्तर से काफी अधिक था और उसकी ईसीजी (इलेक्ट्रो कार्डियोग्राम) में हल्की असमान्यता पायी गयी जो हृदय रोग की ओर इषारा कर रही थी। डॉक्टर को भी 14 साल के बच्चे के हृदय रोग से पीड़ित होने पर आष्चर्य हुआ। डॉक्टर ने राजन के रहन-सहन की जांच करने पर पाया कि उसे पढ़ाई से संबंधित बहुत अधिक तनाव था। वह रोजाना स्कूल जाने के अलावा तीन-तीन ट्यूषन पढ़ता था। डॉक्टर ने उसे स्कूल और ट्यूषन से छह महीने की छुट्टी लेने को कहा और योग, व्यायाम करने को कहा।
नये अध्ययनों से पता चला है कि देष के महानगरों एवं बड़े षहरों के बच्चे हाइपरटेंषन, मधुमेह और हृदय रोग जैसी जीवन षैली से जुड़ी बीमारियों के तेजी से षिकार हो रहे हैं। हाल के एक अध्ययन के अनुसार षहरों में रहने वाले करीब 25 प्रतिषत किषोर और युवा बच्चों को हृदय रोग का खतरा है। पिछले कुछ सालों में रहन-सहन एवं खान-पान की आदतों में बदलाव तथा स्थूल जीवन षैली तथा बढ़ते तनाव के कारण षहरी बच्चों में मोटापा 20-25 प्रतिषत बढ़ा है।
नेषनल डायबिटीज, ओबेसिटी एंड कोलेस्ट्रॉल डिसआर्डर फाउंडेषन (एनडीओसीडी) और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा हाल में दिल्ली के 40 स्कूलों में 14 साल से अधिक उम्र के बच्चों में कराए गए अध्ययन में पाया गया कि हानिकारक संतृप्त वसा उनके आहार का हिस्सा बन गए हैं। एनडीओसीडी की प्रियाली षाह बताती हैं कि आजकल बच्चे जरूरत से चार गुना ज्यादा वसा का सेवन कर रहे हैं। वह कहती हैं कि आजकल पिज्जा, पास्ता, पैस्ट्री, बर्गर जैसे अधिक वसायुक्त खाद्य पदार्थ बच्चों के भोजन का मुख्य हिस्सा बन गये है। इसके अलावा आज के बच्चों में आधुनिक युग का तनाव भी बढ़ रहा है।
हृदय रोग विषेशज्ञ तथा नौएडा स्थित मेट्रो हास्पीट्ल्स एंड हार्ट इंस्टीच्यूट के निदेषक डा. पुरूशोत्तम लाल बताते हैं कि आजकल किषोरों में भी हृदय रोग के संकेत मिलने लगे हैं। देष के षहरी इलाकों में स्कूल जाने वाले बच्चों में खान-पान की खराब आदतों, तनावपूर्ण जीवन और बहुत अधिक टेलीविजन देखने और अधिक समय तक कम्प्यूटर से संबंधित गतिविधियों में संलग्न रहने, व्यायाम नहीं करने, आरामतलबी और सिगरेट एवं षराब बढ़ते सेवन के कारण हृदय रोग के खतरे बढ़ रहे हैं।
गत वर्श देष के कुछ षहरों में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि खराब रहन-सहन, कम उम्र में धूम्रपान, विटामिन डी की कमी, मधुमेह आदि के कारण किषोर उम्र के बच्चों में भी हृदय रोग के खतरे बढ़ रहे हैं। किषोरों में हृदय रोग चिंताजनक है क्योंकि यह बुजुर्गावस्था की बीमारी मानी जाती है।
एक अध्ययन में पाया कि उत्तरी भारत के युवाओं में कम उम्र में ही मेटाबोलिक डिसआर्डर की समस्या बढ़ रही है जिससे उनमें हृदय रोग का खतरा बढ़ रहा है।
पदम विभूशण एवं डा. बी सी राय राश्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित डा. पुरूशोत्तम लाल कहते हैं कि भारत में कम उम्र के लोगों और खास तौर पर बच्चों में हृदय रोगों में बढ़ोतरी होने का एक चिंताजनक पहलू यह है कि जहां अमरीका में 10 साल के उम्र से ही बच्चों की हृदय रोग संबंधित स्क्रीनिंग षुरू हो जाती है वहीं भारत में मध्यम उम्र का व्यक्ति भी हृदय रोग की जांच-पड़ताल नहीं कराता। जबकि मौजूदा स्थिति को देखते हुए बच्चों की जल्द से जल्द खासकर पारिवारिक इतिहास होने पर स्क्रीनिंग जरूरी है ताकि जरूरत पड़ने पर रोकथाम के उपाय किये जा सकें।
हृदय रोगों की तरह उच्च रक्तचाप की समस्या भी बच्चों में तेजी से बढ़ती जा रही है। उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड प्रेषर ) को आमतौर पर नजरंदाज कर दिया जाता है, लेकिन यह बीमारी जानलेवा साबित हो सकती है। यह बीमारी हृदय रोगों एवं दिल के दौरे का सबसे प्रमुख कारण है। उच्च रक्त चाप से ग्रस्त ज्यादातर लोगों को मधुमेह होने तथा उनके कालेस्ट्रॉल में वृद्धि होने की आषंका होती है। उच्च रक्त चाप के जिन मरीजों को मधुमेह के साथ-साथ कालेस्ट्रॉल भी बढ़ा होता है उन्हें कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां होने की आषंका कई गुना बढ़ जाती है।
डा. पुरूशोत्तम लाल के अनुसार भारत में युवा बच्चों में पाये जाने वाले हृदय रोगों में एथेरोस्क्लेरोसिस मुख्य है। इसमें धमनी की दीवारें कॉलेस्टेरॉल जैसे वसीय पदार्थों के निर्माण से मोटी हो जाती है। वसायुक्त जंक फूड का अधिक सेवन करने वाले बच्चे इसके प्रति अत्यधिक संवेदनषील होते हैं। कोलेस्ट्रॉल प्लाक बहुत तेजी से बढ़ने वाली प्रक्रिया है और यह यहां तक कि बाल्यावस्था में ही षुरू हो सकती है। इसके अलावा कावासाकी रोग और रह्युमेटिक बुखार जैसी बीमारियां भी बच्चों में हृदय रोग के लिए जिम्मेदार हैं। रह्युमेटिक बुखार में सामान्य वायरल संक्रमण जैसे लक्षण ही होते हैं लेकिन यह हृदय की धमनियों में सूजन पैदा कर हृदय को प्रभावित करता है। रह्युमेटिक बुखार के रोगियों में अक्सर उनके हृदय की मांसपेषियों में सूजन होती है।
सिर्फ षहरों में ही नहीं, गांव और छोटे षहरों के बच्चों में भी हृदय रोग के मामले सामने आ रहे हैं। गांव में रहने वाला 13 वर्शीय देबकुमार महतो कोलकाता के एक अस्पताल में रह्युमेटिक हार्ट का इलाज करा रहा है। यह एक एक्वायर्ड वाल्वुलर रोग है। बच्चों में यह बीमारी प्रदूशण, पोशण की कमी और तंग जगहों में रहने के कारण होती है। बच्चों में हृदय रोग के विकास का एक मुख्य कारण गर्भावस्था में माता का खराब पोशण भी है।
हृदय रोग की ही तरह उच्च रक्तचाप को भी सिर्फ वयस्कों की बीमारी मानी जाती है लेकिन अब बच्चे और किषोर भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। यहां तक कि कुछ षिषुओं में भी उच्च रक्तचाप पाया गया है। हालांकि बच्चों में विकास के साथ-साथ रक्त दबाव में परिवर्तन आता रहता है और किषोरावस्था में पहुंचने पर उनका रक्त दाब स्थिर हो जाता है। 10 साल के कम उम्र के बच्चों में उच्च रक्तचाप का कारण समयपूर्व जन्म, बच्चे का कम विकास और किडनी की समस्या होती है लेकिन 10 साल से अधिक उम्र के बच्चों में इसका कारण अधिक वजन, अत्यधिक वसा और नमक का सेवन तथा व्यायाम की कमी जैसी जीवन षैली से जुड़ी समस्याएं है। वयस्कों की तरह बच्चों में उच्च रक्त चाप के कोई लक्षण नहीं होते हैं। लेकिन कुछ बच्चों में सिर दर्द, ध्यान केंद्रित न कर पाना, सीने में दर्द, अत्यधिक थकावट, सांस लेने में दिक्कत और धुंधली दृश्टि जैसे लक्षण हो सकते हैं। कुछ मामलों में नाक से रक्तस्राव, हृदय की धड़कन का तेज होना, सुस्ती और जी मिचलाना जैसे लक्षण हो सकते हैं। यदि आपके बच्चे में ऐसे लक्षण हैं या वह अधिक वजन का है तो नियमित रूप से उसके रक्तचाप की जांच कराएं। बच्चों या किषोरों में उच्च रक्त चाप का इलाज नहीं कराने पर यह हृदय रोग, स्ट्रोक और किडनी फेलियर जैसी गंभीर समस्याएं पैदा कर सकती है। उच्च रक्तचाप को दवाइयों और जीवन षैली में परिवर्तन कर नियंत्रित रखा जा सकता है।
छोटी सी उम्र में बड़ों के रोग
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