ब्रिटेन के वैज्ञानिक बना रहे हैं कृत्रिम रक्त

ब्रिटेन के वैज्ञानिक विश्व में पहली बार असीमित मात्रा में कृत्रिम रक्त बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं। इस कृत्रिम मानवीय रक्त का निर्माण इम्ब्रियोनिक स्टेम कोशिकाओं से किया जा रहा है जिसका इस्तेमाल आकस्मिक अवस्था में संक्रमण रहित रक्त संचरण के लिए किया जाएगा। इससे किसी दुर्घटना के शिकार व्यक्ति से लेकर युद्ध में हताहत हुए सैनिकों को यह कृत्रिम रक्त चढ़ाकर उनकी जान बचाने में मदद मिल सकेगी। इससे ताजा रक्त उपलब्ध कराने वाले रक्त दाताओं पर भी निर्भरता कम होगी।
इस अनुसंधान में एन एस एस ब्लड एंड ट्रांसप्लांट, द स्कॉटिश नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन सर्विस और विश्व की सबसे बड़ी मेडिकल रिसर्च चैरिटी वेलकम ट्रस्ट शामिल है। इस तरह इम्ब्रियोनिक स्टेम कोशिकाओं से रक्त विकसित करने की विश्व दौड़ में ब्रिटेन की मुख्य भूमिका होगी। अनुसंधानकर्ता 'ओ-निगेटिव' ब्लड ग्रूप को विकसित करने के लिए आई वी एफ इलाज के बाद के अवशेष मानवीय भ्रूण की जांच करेंगे। 'ओ-निगेटिव' ब्लड ग्रूप व्यापक रक्त दाता ग्रूप है जिसे रक्त उतकों के द्वारा अस्वीकृति के डर के बगैर किसी भी व्यक्ति में चढ़ाया जा जा सकता है। यह रक्त ग्रूप अपेक्षाकृत कम लोगों में लगभग सात प्रतिशत लोगों में ही होता है। लेकिन प्रयोगशाला में इसके अनंत मात्रा में गुणित होने की क्षमता के कारण इसे इम्ब्रियोनिक स्टेम कोशिकाओं से असीमित मात्रा में उत्पन्न किया जा सकता है। 
इम्ब्रियोनिक स्टेम कोशिकाओं को उत्तेजित करने का उद्देश्य आकस्मिक अवस्था में ऑक्सीजन को वहन करने वाली परिपक्व लाल रक्त कोशिकाओं को विकसित करना है। ऐसे रक्त से एच आई वी और हेपेटाइटिस जैसे विषाणुओं या 'मैड काऊ' रोग के मानवीय रूप से संक्रमित होने का खतरा नहीं होगा। खासकर मिलिट्री में यृद्ध की स्थिति में जब रक्त दाताओं से सामान्य रक्त आपूर्ति कम हो सकती है तब ताजा व्यापक डोनर रक्त की लगातार जरूरत रहती है। 
हालांकि आई वी एफ भ्रूण के अवशेष से रक्त विकसित करने पर लोग नैतिकता पर सवाल उठाएंगे क्योंकि वे स्टेम कोशिका बनाने के लिए भ्रूण को नष्ट करने के विचार से खुश नही होंगे। इससे अनुचित दार्शनिक सवाल भी उठ खड़े होगे कि कृत्रिम रक्त किसी ऐसे व्यक्ति से आया है जो कभी था ही नहीं। लेकिन सैद्धांतिक रूप से यह एक अनिवार्य जरूरत है।
वेलकम ट्रस्ट ने इस प्रोजेक्ट के खर्च के लिए 3 एमख्र  देने की योजना बनायी है ताकि आगे के निष्कर्ष स्काटलैंड, इंग्लैंड और वेल्स की रक्त संचरण सेवाओं से आ सके। ईरिश सरकार के भी इसमें शामिल होने के संकेत हैं। वेलकम ट्रस्ट के एक प्रवक्ता का कहना है कि सभी पार्टियों के द्वारा उठाए गए नैतिक मुद्दों को नजरअंदाज करना अब भी जारी है। आने वाले सप्ताह में जल्द ही इस संबंध में एक घोषणा की जानी है।
इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर  और स्कॉटिश नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन सर्विस के डायरेक्टर प्रोफेसर मार्क टर्नर करेंगे। प्रोफेसर टर्नर इस अध्ययन में भी शामिल रहे हैं कि दान में दिए गए  रक्त को वैरिएंट सी जे डी जैसे संक्रमण पैदा करने वाले एजेंटों और 'मैड काऊ' के मानवीय रूप से मुक्त कैसे किया जाए। कुछ वी सी जे डी  रोगियों को रक्त चढ़ाये जाने से इस रोग से ग्रस्त होते पाया गया है।   
इस अनुसंधान में यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के मेडिकल रिसर्च काउंसिल के सेंटर फॉर रिजेनेरेटिव मेडिसीन के वैज्ञानिकों और रॉसिन इंस्टीट्यूट में शामिल हो चुकी रॉसिन सेल्स कंपनी, जहां 1996 में डॉली नामक भेड़ का क्लोन तैयार किया गया था, भी शामिल हैं।
स्वीडन, फ्रांस और आस्ट्रिया जैसे अन्य देशों के वैज्ञानिक भी इम्ब्रियोनिक स्टेम कोशिकाओं से कृत्रिम रक्त के विकास पर कार्य कर रहे हैं। पिछले साल अमरीकी बायोटेक्नोलॉजी कंपनी एडवांस सेल टेक्नोलॉजी ने घोषणा की थी कि उन्होंने इम्ब्रियोनिक स्टेम कोशिकाओं से करोड़ों की संख्या में क्रियाशील लाल रक्त कोशिकाओं को उत्पन्न करने में सफलता हासिल कर ली है। लेकिन अमरीका में बुश प्रशासन ने इम्ब्रियोनिक स्टेम कोशिकाओं के कार्य पर रोक लगा दी, हालांकि अब मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस नीति को उल्टा कर दिया है।
ब्रिटेन में भी हालांकि 'ट्रांसलेशनल' रिसर्च के लिए कोष की दिक्कत के कारण यह प्रोजक्ट अभी रूका हुआ है। इसके अगले चरण में इसके व्यावसायिक विकास के शुरुआती अवस्था में प्रयोगशाला में वैज्ञानिक अध्ययन की जानी है।