भारतीय कृषि में अनुसंधान और विकास तथा प्रौद्योगिकी का महत्व

भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों का योगदान करीब 14 प्रतिशतत है और हमारी पूरी श्रम शक्ति (कार्य बल) का 50 प्रतिशतत भाग इन्हीं क्षेत्रों में शामिल है। भारत अब गेहूं और चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और दुनिया में प्रमुख खाद्य जिंसों का प्रमुख उत्पादक है। पिछले कुछ वर्षों में, हमारे देश में कुछ कृषि वस्तुओं की पैदावार में प्रति हेक्टेयर उपज प्रति किलोग्राम के हिसाब से स्थिर वार्षिक दर से बढ़ोतरी हुई है।
यह तथ्य है कि पिछले कुछ दषकों के दौरान भारतीय कृषि में उल्लेखनीय बदलाव आया है। घरेलू आय में वृद्धि, खाद्य प्रसंस्करण में विस्तार और कृषि निर्यात में वृद्धि जैसे अनेक कारकों ने इस क्षेत्र में विकास में दोहरे अंक की वृद्धि की है। हरित क्रांति प्रमुख तकनीकी कामयाबी थी जिसने भारतीय कृषि पर स्थायी प्रभाव छोड़ा। हालांकि, जहां तक अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) के बुनियादी ढांचे और प्रौद्योगिकी कार्यान्वयन में निवेश की बात आती है, तो इस मामले में बहुत कुछ करने की जरूरत है।
कृषि में अनुसंधान एवं विकास: जमीनी हकीकत
आपूर्ति पक्ष में बढ़ती दिक्कतों के साथ, अनुसंधान एवं विकास की भूमिका तेजी से महत्वपूर्ण हो गई है और अनुसंधान एवं विकास से भारतीय कृषि के क्षेत्र में दीर्घकालिक समाधान की संभावना निहित है। किसानों को नवीनतम शोधों के बारे में जानकारी पहुंचे तो बीज की समस्याओं, कीट और रोग की समस्याओं, फसल स्थिरता, जलवायु परिवर्तन, सिंचाई की समस्याओं, मिट्टी के कटाव, और इसी तरह की अन्य समस्याओं पर काबू पाने में उन्हें मदद मिल सकती हैं।
पूर्व में, अनुसंधान संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय, और सार्वजनिक क्षेत्र के निगम टिकाऊ कृषि के तौर-तरीकों के लिए अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण हितधारक थे। आज, बहुराष्ट्रीय कंपनियां और निजी क्षेत्र की कंपनियां (क्रिस्टल क्रॉप प्रोटेक्शन प्राइवेट लिमिटेड जैसे एग्रोकेमिकल भी शामिल हंै) भी अनुसंधान एवं विकास पर काफी निवेष कर रही हैं और वैज्ञानिक कृषि तरीकों के लागू किये जाने तथा इनको बढ़ावा दिए जाने के कारण कृशि उद्योग में क्रांतिकारी बदलाव आ रहा है। 
अनुसंधान एवं विकास और प्रौद्योगिकी के लाभ
यहां कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास तथा प्रौद्योगिकी के महत्वपूर्ण पहलुओं और संभावित लाभों के बारे में चर्चा की जा रही है जिनका कार्यान्वयन करके किसान लाभ उठा सकते हैं। 
बीज और फसलों का आनुवंशिक परिवर्तन 
आनुवंशिक तौर पर संशोधित बीजों की मदद से कृशि संसाधनों और कृषि रसायनों का न्यूनतम उपयोग करके भी अधिक पैदावार हासिल की जा सकती है - मौसमी और दीर्घकालिक आधार पर भी। भारत में इस प्रौद्योगिकी का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण पूर्व अनुसंधान एवं विकास के साथ बीटी कपास की शुरूआत है।
क्रॉस-प्रजनन और आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का बेहतर वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग और कृषि जैव प्रौद्योगिकी के साथ समायोजन करके नई तरह की फसलों को लाया जा सकता है जो इन प्रजातियों में प्राकृतिक तौर पर उत्पन्न नहीं होती हैं और इस तरह से पैदावार बढ़ाने में मदद मिलती है तथा साथ ही साथ कीटों से भी सुरक्षा होती है। आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) उच्च उपज वाली बीज ने दुनिया भर के किसानों के बीच लोकप्रियता हासिल की है। आजकल,  ट्रांसजेनिक और संकर बीज भारत में ग्रामीण बाजार पर हावी हो रहे हैं, खासकर अनाज, सब्जियों, और तिलहन के मामले में। 
कीटनाशकों और उर्वरकों पर परीक्षण और अनुसंधान
उर्वरकों और कीटनाशकों के विवेकपूर्ण उपयोग को समझने के महत्व को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। कम मात्रा मे इनके ं प्रयोग और स्थानीय कृशि स्थितियों के अनुकूल उच्च क्षमता वाले कृशि रसायनों के उपयोग पर जोर दिया जाना चाहिएं। यह जरूरी है कि सही समय पर सही मात्रा में कृशि रसायनों एवं उर्वरकों का उपयोग हो ताकि अधिक से अधिक लाभ उठाए जा सकें। सही तरीका यह है कि बाजार में उपलब्ध जेनेरिक कृशि रसायनों की मार्केटिंग तथा ''सदाबहार हरित क्रांति'' लाने वाले नए अणुओं की खोज के बीच संतुलन कायम किया जाए। 
कृषि के क्षेत्र में इस्तेमाल किए जाने वाले एग्रोकेमिकल्स की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए, भारत सरकार ने हाल ही में 71 कीटनाशक परीक्षण प्रयोगशालाओं को देश भर में स्थापित किया है। कई निजी कंपनियां भी कृषि रसायन और उर्वरक के उचित उपयोग के लिए गुणवत्ता को सुनिष्चित करने वाले अनुसंधान पर निवेश कर रही हैं। क्रिस्टल की गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला आईएसओ से प्रमाणित है और इसे परीक्षण और अंशांकन प्रयोगशालाओं के राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त है। क्रिस्टल की अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) टीम एग्रोकेमिकल्स की गुणवत्ता उत्पादन को सुनिश्चित करने के लिए बेहतर विनिर्माण प्रक्रियाओं पर जोर देती है।
कुशल जल प्रबंधन
जल सभी कृषि गतिविधियों के लिए अपरिहार्य है। अप्रत्याशित मानसून के साथ-साथ खाद्य उत्पादन के लिए बढ़ती मांग ने स्मार्ट सिंचाई को भारतीय कृषि के लिए जरूरी बना दिया है। जल प्रबंधन को स्थानीय जल संसाधनों और अपशिष्ट निश्पादन के लिहाज से कारगर बनाया जाना चाहिए। सिंचाई प्रौद्योगिकियां एवं क्षेत्र विशेष अनुसंधान एवं विकास इस संबंध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। भारत में, बिजली और डीजल पंप का इस्तेमाल आम तौर पर भूजल निकालने के लिए होता है। 
नए युग में ड्रिप सिंचाई जैसी कारगर जल प्रबंधन प्रणालियों तथा ट्रेडल पंप जैसे पानी खींचने वाले उपकरणों की मदद से कम खर्च पर डिजाइन की गई प्लास्टिक की पाइपों के नेटवर्क के जरिए पौधों की जड़ों में नियमित रूप से पानी की आपूर्ति को सुनिष्चित किया जा सकता है। उपरोक्त उल्लेखित प्रौद्योगिकियों तथा आगे के अनुसंधान एवं विकास के प्रभावकारी उपयोग से छोटे किसान भी पूरे वर्श खेती कर सकते हैं तथा फसल उत्पादकता में वृद्धि कर सकते हैं।
पर्यावरण अनुकूल कृषि
कृषि के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग से पर्यावरणीय प्रभाव से उपज के खराब होने तथा पैदावार बढ़ाने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले रसायनिक उर्वरकों पर निर्भरता को कम किया जा सकता है। हाल में ही, बायो फार्मुलेशंस के संबंध में प्रौद्योगिकियों को मिट्टी जनित रोगनकों के खिलाफ प्रभावी पाया गया है। इससे कृषि पारिस्थितिकियों की उत्पादन क्षमता को बरकरार रखा जा सकता है। अनुसंधान से पता चलता है कि बिना जुताई वाली कृषि को अपनाने से पारंपरिक बुआई तकनीकों की तुलना में 11 प्रतिशत अधिक पानी बचाया जा सकता है।
अनुसंधान एवं विकास इकाइयों ( निजी और सरकारी दोनों) ने पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियों के लिए और भूमि के उपयोग पैटर्न के बारे में किसानों को शिक्षित करने के लिए फील्ड अनुसंधान एवं विकास की प्रक्रिया का संचालन किया। इससे पता चलता है कि पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने से कृषि उत्पादन में सुधार हो सकता है। साथ ही साथ, जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में कार्य किया जाना चाहिए ग्रामीण समुदायों की आजीविका में सुधार हो। क्रिस्टल उल्लेखनीय एकीकृत आम खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन के लिएगुजरात इनवारो प्रोटेक्षन एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड का सदस्य है।
भविष्य का रास्ता 
प्रौद्योगिकी एकीकरण में कृषि उत्पादन और व्यापार शुरू करने के पूरे कृषि व्यवसाय मूल्य श्रृंखला को बदलने की क्षमता है, और यह किसानों को जागरूक निर्णय लेने में भी मदद करता है। इंटरनेट से संबंधित चीजों का इस्तेमाल करने से, जोखिम की गंभीरता को कम करना और खेत से फार्म तक फसल को ले जाना अधिक आसान हो गया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कृषि तकनीक भविष्य के लिए टिकाऊ कृषि में सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। प्रौद्योगिकी और अनुसंधान एवं विकास संयुक्त रूप से भारतीय कृषि उद्योग के महत्वपूर्ण अंतर करने वाले के रूप में उभरा है, चाहे यह प्राथमिक (उत्पादन), माध्यमिक (प्रोसेसिंग) या तृतीयक (मार्केटिंग और पैकेजिंग) के स्तर पर हो।
अनुसंधान एवं विकास नई प्रौद्योगिकियों उत्पन्न करता है और उन्हें किसानों के लिए उपलब्ध कराता है। आने वाले वर्षों में कृषि प्रौद्योगिकी ग्रामीण संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन से संबंधित समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। क्रिस्टल लगातार भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई), केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई), और चावल अनुसंधान निदेशालय (डीआरआर) के साथ निरंतर संबद्ध रहा है। ये सभी विभिन्न अनुसंधान एवं विकास से संबंधित परीक्षण के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) से मान्यता प्राप्त हैं। 
फसल पैदा करने और फसल संरक्षण और निजी क्षेत्र से भारी निवेश से संबंधित अनुसंधान एवं विकास की सफल पहल के बावजूद, भारत में काफी किसान विशेषज्ञ वैज्ञानिक सलाह के अभाव में अधिकतम पैदावार प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं और इसलिए अनुसंधान और व्यवहार के बीच की खाई को पाटना अत्यंत आवश्यक है।