भारत में स्तन कैंसर का बढ़ता प्रकोप

महिलायें अपने रूप पर मुग्ध होते हुये दर्पण के समक्ष अपना काफी समय व्यतीत करती हैं लेकिन यह जानने के लिये अपने स्तन की निगरानी करने के लिये कुछ मिनट का भी समय लगाना भी गवारा नहीं करती कि उनके स्तन पर, उसके आसपास या कांख के क्षेत्र में कोई गांठ या सूजन अथवा स्तन कैंसर का कोई अन्य चिन्ह तो नहीं है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिशद (आई सी एम आर) के एक ताजा आंकड़े से पता चलता है कि भारत में महानगरों में महिलाओं में स्तन कैंसर का प्रकोप सबसे अधिक है और हर 22 भारतीय महिलाओं में से एक को उनके जीवन काल में स्तन कैंसर होने की आषंका होती है।
हमारे आधुनिक विष्व से होने वाले सभी आयातों में स्तन कैंसर की सबसे अधिक संदिग्ध स्थिति है। कभी अमीरों का रोग समझे जाने वाले स्तन कैंसर के प्रकोप ने आज विष्वव्यापी रूप धारण कर लिया है। मेडिकल कैंसर विषेशज्ञों का मानना है कि वे भारत में हर औसतन साल स्तन कैंसर के 80 हजार नये मरीजों को देखते हैं। एक अनुमान के अनुसार गत वर्श विष्व भर में स्तन कैंसर के 13 लाख नये मामलों का पता चला। 
''स्तन कैंसर हमारी आधुनिक जीवन षैली की ही देन है। षारीरिक व्यायाम नहीं करने, मोटापा, रक्त षर्करा, मधुमेह, देर से बच्चा पैदा होने, स्तनपान नहीं कराने के साथ-साथ कैंसर, यौन षिक्षा और प्रजनन स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का अभाव आपको स्तन कैंसर की ओर प्रवृत्त कर सकते हैं।'' 
देषों का जितना अधिक आधुनिकीरण होगा, उतना ही अधिक महिलाओं में स्थूल तरीके से कार्य करने, देर से बच्चे पैदा करने, अपने प्रजनन जीवन को नियंत्रित करने तथा पष्चिमी खाद्य पदार्थों का सेवन करने की प्रवृति बढ़ेगी। इन कारणों के अलावा भविश्य में महिलाओं के जीवन प्रत्याषा में वृद्धि होने के कारण भी स्तर कैंसर के प्रकोप की दर में निःसंदेह वृद्धि होगी। यह जरूरी है कि महिलाओं में स्तन कैंसर के खतरे के प्रति जागरुकता बढ़ने के साथ-साथ स्तन कैंसर की पहचान एवं उसके उपचार के संबंध में सरकार और चिकित्सक समुदाय के अपेक्षाओं में भी वृद्धि हो। 
''स्तन कैंसर षुरुआती अवस्था में दर्द पैदा नहीं करता है, लेकिन जैसे-जैसे यह बढ़ता है वैसे-वैसे परिवर्तन पैदा करता है जिन्हें जल्द पहचाना जा सकता है। हर महिला के लिये जरूरी है कि वे स्तन कैंसर को जल्द से जल्द पहचानने के तरीकों पर अमल करें।'' ''समय पर इलाज कराने के फायदे हैं और यह नियम स्तन कैंसर में भी लागू होता है।'' 
''स्तन कैंसर का इलाज किया जा सकता है और इसे ठीक किया जा सकता है खास कर तब जब स्तन की स्वयं जांच (बी एस ई) और चिकित्सक द्वारा स्तन की क्लिनिकल जांच (सी बी ई) जैसे स्तन कैंसर के षीघ्र पहचान के तरीकों के जरिये इसे समय रहते ही पता लगा लिया जाये। स्तन कैंसर की पहचान जितनी जल्दी होगी, इसे खत्म करने की संभावना भी उतना ही अधिक होगी। मैमोग्राफी लाभदायक है और 40 साल की उम्र के बाद साल में एक बार या दो साल में एक बार मैमोग्राफी कराने की सलाह जाती है। 50 साल से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए यह और भी लाभदायक है क्योंकि तब स्तन का घनत्व कम हो जाता है और धब्बों की पहचान अधिक आसानी से होती है।  
स्तन कैंसर को अक्सर पारिवार का रोग माना गया है लेकिन इसका अर्थ यह नही है कि जिस परिवार में स्तन कैंसर का इतिहास नहीं है उस परिवार की महिलाएं इससे सुरक्षित हैं। पारिवारिक कारणों से 20 से 30 प्रतिषत महिलाओं मेंं ही स्तन कैंसर होता है जबकि 70 प्रतिषत से अधिक रोगियों में वैसी महिलाएं होती हैं जिनके परिवार में कैंसर का कोई इतिहास नहीं होता है। 
हाल के वर्शों में, स्तन कैंसर के इलाज के लिये जीवन रक्षक उपचार तकनीकों में क्रांतिकारी विकास हुया है जिससे नयी उम्मीद एवं उत्साह का सृजन हुआ है। एक या दो विकल्पों के बजाय आज इलाज के ऐसे अनेक विकल्प उपलब्ध हैं जिनकी मदद से हर महिला में स्तन कैंसर की विषिश्ट तरह की कोषिकाओं से लड़ा जा सकता है।


'' स्तन कैंसर का इलाज कैंसर की स्थिति पर निर्भर करता है। हर महिला की स्थिति एवं उनके कैंसर का स्तर अलग होता है। उपचार की जो विधि किसी एक महिला के अनुकूल है वह दूसरी महिला के लिये अनुकूल नहीं होता है।''


सर्जरी और उसके बाद संभवतः रेडिएषन, हारमोनल (एंटी-इस्ट्रोजेन) थिरेपी और/अथवा कीमोथिरेपी जैसे निर्णयों का स्तन कैंसर के उपचार में गहरा असर होता है। 
यह अक्सर देखा जाता है कि स्तर कैंसर के बाद जीवित बचने वाली मरीज वह जीवन नहीं जी पाती है जो उसने कैंसर का पता चलने से पहले जीया था। ये महिलायें इस आषंका को लेकर जीती हैं कि कहीं फिर से कैंसर नहीं हो जाये। यही नहीं उन्हें हृदय रोग होने के खतरे तथा पेरीफेरल न्यूरोपैथी एवं जोड़ों में दर्द जैसे कैंसर के उपचार के दीर्घकालिक दुश्प्रभाव हो सकते हैं। विषेश हारमोन थिरेपियां के कारण उन्हें इंडोमेट्रायल कैंसर होने का अधिक खतरा होता है। 
चिकित्सकों का अनुमान है कि कैंसर पीड़ित 20 महिलाओं में से से एक (पांच प्रतिषत) महिला में जब तक स्तन कैंसर का पता चलता है तब तक कैंसर षरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल चुका होता है। यह अक्सर देखा जाता है कि इनमें से हर पांच महिलाओं में से एक महिला (पांच प्रतिषत) कैंसर का पता चलने के बाद कम से कम पांच साल तक तथा  25 महिलाओं में से एक महिला (चार प्रतिषत) दस साल से अधिक समय तक जीती हैं।