भारत के अधिकतर हिस्सों में, गर्भनाल को प्रसव प्रक्रिया का एक बेकार चीज समझा जाता है और उसे फेंक दिया जाता है। प्रसव के बाद नवजात की नाभि को झूलते हुए छोड़ दिया जाता है और यह अलग होकर अपने आप एक सप्ताह के भीतर गिर जाता है। लेकिन वैज्ञानिक इसे काफी मूल्यवान मानते हंै और कई बीमारियों के इलाज के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। बच्चे का गर्भनाल स्टेम कोशिकाओं का एक समृद्ध स्रोत होता है (वयस्क अस्थि मज्जा से 10 गुना अधिक), जिसे अगर ठीक से निकाला जाये, जांच की जाये, और सरकारी रक्त बैंक में संग्रहित किया जाये तो यह न सिर्फ बच्चे के लिए बल्कि उसके भाई- बहन/माता- पिता के लिए भी और यहां तक कि वैसे लाखों के लिए भी जिनका रक्त उसके रक्त के साथ मेल खाता हो, कई प्रकार के ल्यूकेमिया, लिम्फोमा और अस्थि मज्जा विकारों सहित कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है।
पहला सफल गर्भनाल रक्त स्टेम सेल प्रत्यारोपण फ्रांस में किया गया था, उसके 28 से अधिक वर्ष बीत जाने के बाद भी, भारत में अभी तक आसानी से उपलब्ध इस कीमती सम्पत्ति की विशाल क्षमता का पता नहीं लगाया गया है और न ही देष में इसकी सरकारी बैंकिंग की व्यवस्था की गई है। हमें देष में एक सुसंगठित सरकारी गर्भनाल रक्त बैंकिंग की सख्त जरूरत है जो जरूरत पड़ने पर रोगियों का इलाज कर सके और जिसे इस विषय पर आगे के चिकित्सा अनुसंधान के लिए इस्तेमाल किया जा सके।
हालांकि अस्थि मज्जा और बाहरी अंगों (पेरिफेरल) के रक्त स्टेम सेल के प्रत्यारोपण की सफलता वैज्ञानिकता की कसौटी पर खरी उतरी हैै। इसलिए, यूसीबी उचित वयस्क दाताओं की कमी वाले मरीजों के लिए प्रत्यारोपण के स्रोत के एक विकल्प के रूप में लोकप्रिय हो चुका है और इसे लोगों ने स्वीकार कर लिया है। यूसीबीटी अस्थि मज्जा (बीएम) या बाहरी अंगों के रक्त (पीबी) की तुलना में कई लाभ प्रदान करता है। यूसीबीटी में 4/6 मैच की ही जरूरत होती है जबकि बीएम या पीबी में 6/6 मैच की जरूरत होती है। इसके अलावा, यूसीबी को कोशिकाओं की गुणवत्ता को किसी भी प्रकार की हानि पहुंचाये बगैर आसानी से एकत्र और संग्रहित किया जा सकता है और जरूरत पड़ने पर आसानी से उपलब्ध कराया जा सकता है।
भारत में, गर्भनाल रक्त बैंकिंग के लाभों के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है, लेकिन अमेरिका में, अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन, द अमेरिकन कांग्रेस आॅफ आॅब्सटेट्रिषियन्स एंड गाईनेकोजाॅजिस्ट्स, और अमेरिकन अकेडमी आॅफ पेडिएट्रिक्स जैसे प्रतिश्ठित चिकित्सा समूहों ने निजी बैंकिंग की तुलना में सरकारी बैंक डोनेषन की सिफारिष की है क्योंकि गर्भनाल रक्त के व्यक्तिगत इस्तेमाल सीमित हैं।
एएसबीएमटी के अनुसार, बच्चे को बाद में अपने बैंकिंग गर्भनाल रक्त से लाभ पहुंचने की संभावना वर्तमान में 0.04 प्रतिशत से भी कम है। ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं है क्यांेकि वर्तमान में गर्भनाल रक्त से बहुत ही कम बीमारियों का इलाज किया जा सकता हैं, बल्कि कई बच्चों के लिए गर्भनाल रक्त इसलिए भी व्यर्थ साबित होगा क्योंकि उन स्टेम कोशिकाओं में एक ही जैसे आनुवंशिक दोष होते हैं।
भारत में उच्च जन्म दर और आनुवंशिक विविधता के कारण यूसीबी बैंकिंग के लिए काफी संभावना है। जिन भारतीयों को अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण की जरूरत होती है उनमें से करीब 70 फीसदी रोगियों को अपने स्वयं के परिवार में मैच नहीं मिलता है। इसलिए, असंबंधित यूसीबी हीमैटोपोएटिक स्टेम सेल प्रत्यारोपण के लिए पुरखों का एक व्यापक रूप से स्वीकृत स्रोत है। हालांकि, यूसीबी के अत्यधिक महंगा होने और सालाना 50,000 इकाइयों की अनुमानित आवश्यकता के बजाय सीमित संख्या में यूसीबी इकाइयों के उपलब्ध होने के कारण भारत में बहुत सीमित संख्या में यूसीबी प्रत्यारोपण किये जा रहे हैं। यूसीबी के सरकारी बैंक की स्थापना में आने वाले वर्षों में वृद्धि की संभावना है। गर्भनाल रक्त बैंक के प्रभावी होने के लिए कम से कम 50,000 इकाइयां होनी चाहिए और तब यह अपने 98 प्रतिषत रोगियों के लिए एक मिलान कॉर्ड प्रदान करने में सक्षम होगा।
भारत में भविष्य के प्रत्यारोपण की जरूरत को पूरा करने के लिए, पश्चिमी दुनिया की तरह ही सरकारी सहायता और निवेश की आवश्यकता है। पिछले 30 साल से भारत में सरकारों ने घातक रक्त संबंधी विकारों से पीड़ित अपने नागरिकों को उपचार उपलब्ध कराने की दरकार को नजरअंदाज कर दिया है। लेकिन हाल के दिनों में हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने यूसीबीटी के द्वारा इलाज किये जाने वाले सिकल सेल डिजीज से पीड़ित आदिवासियों की दुर्दषा को संसद के ध्यान में लाया।
- डॉ राहुल भार्गव, निदेशक एवं प्रमुख, हीमैटो- ऑन्कोलॉजी एवं स्टेम सेल ट्रांसप्लांट, आर्टेमिस हाॅस्पिटल, गुड़गांव