भारत में मरीजों की सुरक्षा को लेकर हम कब होंगे जागरूक 

मरीजों की सुरक्षा स्वास्थ्य सेवा का एक बुनियादी तत्व है और इसे मरीज को स्वास्थ्य सेवा से हो सकने वाले संबंधित अनावश्यक नुकसान या संभावित नुकसान से मरीज को सुरक्षित रहने की स्वतंत्रता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। 
आंकड़ें भयावह हैं: अस्पताल की ओर से की जाने वाली गलतियों और असुरक्षित चिकित्सा की वजह से दुनिया भर में अस्पतालों में भर्ती होने वाले 10 प्रतिषत मरीजों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। निजी तौर पर किए गए अध्ययनों में अस्पतालों में भर्ती होने वाले 4-17 प्रतिषत मरीजों ने प्रतिकूल प्रभाव के बारे में बताया। अस्पताल की गलतियों और असुरक्षित देखभाल की वजह से इनमें से, 5-21 प्रतिषत रोगियों की मौत हो जाती है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, अस्पताल में मरीजों को लगने वाले संक्रमणों - हास्पीटल एक्वायर्ड इंफेक्षंस (एचएआई) बढ़कर 2 से 20 गुना हो गया है। विकसित देषों में एचएआई की व्यापकता 3.5 प्रतिषत से लेकर 12 प्रतिषत के बीच है जबकि विकासषील देषों में एचएआई की व्यापकता 5.7 प्रतिषत से लेकर 19.1 प्रतिषक के बीच है। 
ऐसा क्यों होता है: चिकित्सा शास्त्र में अस्पताल मंे होने वाले संक्रमणों का जिक्र किया गया है। ऐसे संक्रमण रोगियों को तब नहीं होते हैं, जब वे अस्पताल नहीं आते हैं। हालांकि साक्ष्यों से यह भी पता चलता है कि इनमें से आधे मामलों को अस्पताल की व्यवस्था, रास्ते में सुधार, और प्रक्रियाओं की योजना बनाते समय बजट में थोड़ी वृद्धि करके रोका जा सकता है। चूंकि सरकारी अस्पतालों में आम तौर पर लोगों की देखभाल के लिए जरूरत से कम मानव संसाधन होते हैं इसलिए इस क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी भागीदारी की अहम भूमिका है। काम के बोझ के अनुपात में सभी प्रकार के संसाधनों के उचित आबंटन नहीं किये जाने के बारे में मामले भी दर्ज किये गये हैं। अक्सर, न सिर्फ व्यक्तियों के द्वारा अनजाने में गलती की जाती है, बल्कि यहां होने वाले संक्रमणों की रोकथाम के लिए प्रणालियां और प्रक्रियाएं भी पर्याप्त रूप से प्रभावी नहीं हो सकती है।
अब कार्रवाई करने की जरूरत क्यों है: यह मुद्दा हाल ही में आरंभ किए जाने वाले राष्ट्रीय स्वास्थ्य गारंटी मिशन (एनएचएएम) के साथ खबर में आया है जिसका उद्देष्य भारत में पूरी आबादी के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज उपलब्ध कराना है। अगस्त और सितंबर में, राष्ट्रीय स्तर पर और विश्व स्वास्थ्य संगठन में मरीज की सुरक्षा पर दो विचार विमर्श किये गये। डब्ल्यूएचओ ने भारत सहित दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के मरीज की सुरक्षा के लिए एक नीति की रूपरेखा भी जारी की। विकसित दुनिया में कई देशों ने ''स्पीक अप फाॅर पेषेंट सेफ्टी'' अभियान चलाया है। मरीजों की सुरक्षा में सुधार करने के लिए व्यवस्थापरक प्रयासों की जरूरत है जिनमें कामकाज में सुधार, वातावरण सुरक्षा एवं संक्रमण नियंत्रण सहित जोखिम प्रबंधन, दवाइयों का सुरक्षित उपयोग, उपकरणों की सुरक्षा और सुरक्षित क्लिनिकल आचरण तथा देखभाल के लिए सुरक्षित वातावरण जैसे व्यापक क्षेत्रों में कार्रवाइयां किए जाने की जरूरत है। 
हमें क्या करने की जरूरत है: हमें सुरक्षा की संस्कृति को अवष्य लागू करना चाहिए जैसा एयरलाइन उद्योग में किया जाता है। हालांकि इस संबंध में अस्पतालों और स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं के राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (एनएबीएच) और उसके विभिन्न कार्यक्रमों, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यु) के नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस मिशन (एनक्यूएएस), संयुक्त आयोग इंटरनेशनल (जेसीआई) द्वारा प्रयास किये गये हैं। उन्होंने रोगियों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं मेें विष्वास की भावना कायम किया है ताकि मान्यता प्राप्त अस्पतालों में तय किये गये न्यूनतम मानकों को कायम रखा जा सके। मान्यता प्राप्त अस्पतालों में क्लिनिकल ऑडिट के कार्य किये जाते हैं और डिजाइन के द्वारा गुणवत्ता आश्वासन प्रक्रियाओं को लागू किया जाता है और इस प्रकार समय पर कई चिकित्सा त्रुटियों से बचा जा सकता है। स्वास्थ्य बीमा उद्योग ने भी गुणवत्ता पूर्ण सेवा में सुधार करने और मानकीकरण करने के लिए अपने ग्राहकों पर परोक्ष रूप से दबाव डालकर कम से कम भारत के प्रमुख शहरों में एक उत्प्रेरक की भूमिका निभाई है।
हम यह कैसे कर सकते हैं: कई अन्य मुद्दों की तरह, मरीज की सुरक्षा की चुनौती को भी एक बहु-आयामी दृृष्टिकोण के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिए। भारत के पास रक्त बैंक सुरक्षा, अंग प्रत्यारोपण की सुरक्षा और बुनियादी मातृ एवं नवजात शिशु स्वास्थ्य सेवाओं के मामलों में मजबूत तंत्र है, लेकिन सुरक्षित इंजेक्शन, सुरक्षित फलेबोटोमी, सुरक्षित सर्जरी, और जैव चिकित्सा अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान के लिए एक मजबूत तंत्र की जरूरत है। हम मरीज की सुरक्षा के मुद्दों को उठाने के लिए सभी हितधारकों के लिए निम्नलिखित 4 सूत्री कार्यक्रम का प्रस्ताव देते हैं।
1. राष्ट्रीय रोगी सुरक्षा सप्ताह मनाने पर विचार करें, यह सभी सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य के क्षेत्र के संस्थानों और स्टैंडअलोन क्लीनिकों के लिए प्रासंगिक होना चाहिए।
2. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यु) को विष्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यु एच ओ) को क्षेत्रीय रणनीति अपनाने के लिए प्रेरित करने के अपने प्रयासों को जारी रखना चाहिए जिनमें व्यवहार परिवर्तन की पहल के अलावा राष्ट्रव्यापी मरीज की सुरक्षा आकलन और क्षमता विकास शामिल हैं। 
3. राज्य और जिला स्तर पर अधिकारियों और टेक्नोक्रेट्स को इस मुद्दे पर हर हफ्ते कम से कम 15-20 मिनट व्यतीत करना चाहिए। विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों में इस ओर गहराई से ध्यान देने से उन्हें प्रेरणा मिलेगी और वे अपने प्रशासनिक कौशल का उपयोग मरीज की सुरक्षा बढ़ाने के लिए स्थानीय स्तर पर अंतराल को कम करने के लिए कर सकंेगे।
4. पेशेवर और उद्योग निकायों को भी नए विचार विकसित करना चाहिए और रोगी देखभाल प्रदान करने के मामले में सरकार के प्रयासों में मदद करना चाहिए।
अब हम सभी को भारत में रोगी सुरक्षा के मुद्दे को उठाना चाहिए।