- भारत में 15 करोड़ से अधिक लोग घुटने की समस्याओं से पीड़ित हैं, जिनमें से 4 करोड़ लोगों को टोटल नी रिप्लेसमेंट कराने की आवश्यकता है।
- अगले दशक में, घुटने की आर्थराइटिस के भारत में शारीरिक अक्षमता के चैथे सबसे आम कारण के रूप में उभरने की उम्मीद है।
भारत में 15 करोड़ से अधिक लोग घुटने की समस्याओं से पीड़ित हैं, जिनमें से 4 करोड़ लोगों को टोटल नी रिप्लेसमेंट कराने की आवश्यकता है, जिससे समाज और देश पर भारी स्वास्थ्य बोझ पड़ रहा है। इसके विपरीत, चीन में, करीब 6.5 करोड़ लोग घुटने की समस्याओं से पीड़ित हैं, जो भारत में घुटने की समस्याओं से पीड़ित लोगों की संख्या से आधे से भी कम है। इससे भी बदतर स्थिति यह है कि भारतीय लोगों में घुटने की आर्थराइटिस की समस्या पश्चिमी देशों की तुलना में 15 गुना से भी अधिक है। भारतीय लोगों में घुटने की आर्थराइटिस का मुख्य कारण घुटने की आर्थराइटिस को लेकर भारतीयों का अनुवांशिक पूर्वाग्रह और जीवन शैली भी है जिसके कारण भारतीय लोग घुटने के जोड़ों का अधिक उपयोग करते हैं।
पिछले 20 सालों में भारत में ज्वाइंट रिप्लेसमेंट में जबरदस्त प्रगति हुई है, फिर लेकिन अभी भी काफी अधिक लोग ज्वाइंट रिप्लेसमेंट की सर्जरी नहीं करा पा रहे हैं, जबकि उन्हें इसकी सख्त जरूरत है। देश को आर्थराइटिस की महामारी का सामना करना पड़ रहा है। भारतीय आबादी में घुटने की आर्थराइटिस की समस्या पश्चिमी देशों की तुलना में 15 गुना अधिक मानी जाती है। अमेरिका में 30 करोड़ की आबादी में हर साल 7 लाख नी रिप्लेसमेंट सर्जरी होती है, लेकिन भारत के लिए, यह आंकड़ा केवल डेढ़ लाख है। 1994 में भारत में कुल 350 घुटनों की सर्जरी की गई थी, लेकिन अब इसमें अप्रत्याषित वृद्धि हुई है। लेकिन यहां की विषाल आबादी और घुटने की आर्थराइटिस के प्रति भारतीयों की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए अब देश में हर साल एक करोड़ नी रिप्लेसमेंट कराने की जरूरत होगी। इसकी तुलना में, भारत में 2022 तक हर साल लगभग सिर्फ दस लाख नी रिप्लेसमेंट ही होने की संभावना है। अच्छी खबर यह है कि ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी अग्रिम प्रौद्योगिकी के साथ लगातार आसान हो रही है। अब, इसकी संक्रमण दर भी काफी कम हो गई है और सर्जरी के बाद अस्पताल में भी कम समय तक रहना पड़ता है।
अगले एक दशक में, घुटने की आर्थराइटिस के भारत में शारीरिक अक्षमता के चैथे सबसे आम कारण के रूप में उभरने की संभावना है। देष में हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर और ऑर्थोपेडिक विशेषज्ञों की कमी के कारण स्वास्थ्य देखभाल के इस भारी बोझ से निपटना मुश्किल होगा। घुटने की आर्थराइटिस में तेजी से वृद्धि होने का एक प्रमुख कारण यह है कि आजादी के बाद से भारत में जीवन प्रत्याशा दोगुनी हो गई है, जिसके कारण काफी संख्या में बुजुर्ग लोग घुटने के घिसने और उसके क्षतिग्रस्त होने की समस्याओं से पीड़ित हो रहे हैं।
भारत में सबसे आम आर्थराइटिस उम्र से संबंधित डीजेनेरेटिव आर्थराइटिस है जिसमें कार्टिलेज का डीजेनेरेषन (घिसना और टूटना- फूटना) शामिल है, और यह घुटने जैसे किसी भी जोड़ को प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि, भारतीय महिलाओं में, घुटने की समस्याओं की शुरुआत के लिए औसत उम्र 50 साल है जबकि भारतीय पुरुषों में 60 साल है। महिलाओं में घुटने की समस्याओं की जल्द शुरुआत का कारण मोटापा और खराब पोषण है। करीब 90 प्रतिशत भारतीय महिलाओं में विटामिन डी की कमी है जो बोन मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है। शरीर में इसकी अनुपस्थिति सीधे या परोक्ष रूप से घुटने को प्रभावित करती है। भारतीय पारंपरिक जीवनशैली भी घुटने के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। पालथी मारकर बैठना जैसी गतिविधियां, पैरों को क्रॉस करके बैठना, भारतीय शौचालयों का उपयोग करना और घुटने के जोड़ों के अत्यधिक उपयोग और चलने के समय उचित जूते का इस्तेमाल नहीं करना आदि के कारण घुटने के जोड़ों का अधिक इस्तेमाल होता है और जोड़ों पर दबाव पड़ता है।
टोटल नी रिप्लेसमेंट एक बहुत ही सफल प्रक्रिया है जो आधी सदी से भी अधिक पुरानी है। इसकी सफलता दर 95 प्रतिशत है, और इससे रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में आष्चर्यजनक रूप से बदलाव आया है। हाल के वर्शों में नी आथ्र्रोप्लास्टी में कई नए विकास किये गए हैं, जैसे रोगी के अनुकूल इंस्ट्रुमेंट, लिंग के अनुकूल घुटने, मिनिमली इंवैसिव सर्जिकल टेक्नीक और टोटल नी रिप्लेसमेंट करने के लिए कंप्यूटर का उपयोग। हालांकि, ये अधिक महंगी हैं और इनके परिणाम सामान्य नी रिप्लेसमेंट से बेहतर नहीं देखे गए हैं। एक अच्छा नी रिप्लेसमेंट करने और रोगी को अधिकतम लाभ देने में सर्जन के अनुभव और कौशल का मुकाबला वर्तमान में कुछ भी नहीं कर सकता है। यदि मरीज़ एक कुशल सर्जन के साथ सही अस्पताल का चुनाव करता है, तो पारंपरिक नी रिप्लेसमेंट अभी भी सबसे अच्छा और सबसे सस्ता विकल्प है।''
शरीर के किसी भी जोड़ में दर्द और जकड़न और जोड़ों से आवाज आना (जोड़ों से बार- बार आवाज आना) आर्थराइटिस के शुरुआती लक्षण हैं। बाद के चरणों में, जोड़ों के मूवमेंट में कठिनाई होती है और विकृतियां भी हो सकती हैं। घुटने की आर्थराइटिस के शुरुआती चरण के इलाज के लिए, सुरक्षित एनाल्जेसिक जैसी दवाएं, इंट्रा-आर्टिकुलर इंजेक्शन और फिजियोथेरेपी का उपयोग किया जाता है। विकसित चरणों में, सबसे सफल उपचार टोटल नी रिप्लेसमेंट है। आर्थराइटिस को रोकने के लिए, पैर मोड़कर बैठने से बचें, आलथी-पालथी मार कर नहीं बैंठें, भारतीय शौचालयों का उपयोग नहीं करें तथा लंबे समय तक खड़े होने से बचें। घुटने की आर्थराइटिस के प्रारंभिक चरण के रोगियों के लिए स्टेटिक क्वाड्रिसप्स व्यायाम, साइकल चलाना और तैराकी तीन सर्वोत्तम अभ्यास हैं। हम जो खाना खाते हैं वह डेयरी उत्पादों और मौसमी फलों और सब्जियों से प्राप्त प्रोटीन, कैल्शियम और एंटीऑक्सिडेंट में समृद्ध होना चाहिए।
भारत में लगभग 60 प्रतिषत पुरुष और 40 प्रतिशत महिलाएं कुल्हे की समस्याओं से ग्रस्त हैं। भारत में हिप रिप्लेसमेंट कराने वाले मरीजों की औसत आयु लगभग 50 वर्ष है। हिप रिप्लेसमेंट के लगभग आधे मामले अवैस्कुलर नेक्रोसिस के कारण होते हैं, जिसमें हड्डी में रक्त की आपूर्ति नहीं हो पाती है जिसके कारण हड्डी मर जाती है। ऐसा अल्कोहल और स्टेरॉयड के सेवन के कारण होता है। भारत में इसका अन्य मुख्य कारण रूमेटोइड आर्थराइटिस (एंकिलोज़िंग स्पोंडिलिटिस) है जो आनुवांशिक बीमारी है। बहुत से लोगों का मानना है कि रिप्लेसमेंट के बाद कूल्हे को हटा दिया जा सकता है, लेकिन यह सिर्फ एक मिथक है। टोटल हिप रिप्लेसमेंट में सफलता दर लगभग 99 प्रतिषत है, और इसमें संतुष्टि के स्तर बहुत अधिक हैं। टोटल हिप रिप्लेसमेंट में रोगी जल्द चलना- फिरना षुरू कर देता है और उसे अस्पताल से जल्द ही डिस्चार्ज कर दिया जाता है। रोगी अगले दिन से ही चलना शुरू कर देता है और आम तौर पर चार से पांच दिनों के बाद उसे छुट्टी दे दी जाती है। सर्जरी के बाद चिकित्सक कुछ चीजों पर प्रतिबंध लगाते हैं। मरीजों को सख्ती से सलाह दी जाती है कि वे पालथी मारकर न बैठें या एक पैर पर दूसरे पैर रखकर न बैठें। इम्प्लांट के लंबे समय तक चलने के लिए ऐसा करना महत्वपूर्ण है।'