बच्चों में होने वाले स्ट्रोक की होती है अनदेखी

बच्चों में स्ट्रोक के मामले बहुत ही कम होते हैं लेकिन बच्चों में स्ट्रोक विकलांगता एवं असामयिक मौत का प्रमुख कारण हो सकता है। वयस्कों में होने वाले स्ट्रोक की तुलना में, बच्चों में स्ट्रोक के बिल्कुल अलग एवं अनोखे जोखिम कारक होते हैं। चूंकि बच्चों में स्ट्रोक के जोखिम कारक वयस्कों से अलग होते हैं और इस कारण बच्चों में स्ट्रोक का पता या तो बाद में चलता है अथवा उसकी पहचान ही नहीं हो पाती है। 
विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक, स्ट्रोक से पीड़ित 15 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर लगभग 25 प्रतिशत होती है और जबकि इससे ग्रस्त बाकी बच्चों में या तो इसकी पुनरावृत्ति होती है या लगातार न्यूरोलॉजिकल विकार बने रहते हैं। ऐसे बच्चों को सीखने में दिक्कत होती है या उन्हें दौरे पड़ते हैं। वयस्कों में ब्रेन स्ट्रोक के जोखिम कारक मधुमेह, उच्च रक्तचाप और एथेरोस्क्लेरोसिस के कारण बढ़ जाते हैं जबकि बच्चों में जोखिम कारक अलग-अलग होते हैं और इसके कई सारे जोखिम कारक होते हैं। 
हालांकि बच्चों में होने वाले स्ट्रोक के कम ही मामले सामने आ पाते हैं लेकिन हम जितना सोचते हैं उससे कहीं अधिक बच्चों में स्ट्रोक का प्रकोप है। इसका कारण यह है कि बच्चों में स्ट्रोक के लक्षण अन्य रोगों के लक्षण से मिलते-जुलते हैं और इसके कारण इसकी गलत पहचान होती है और उपचार में देरी होती है। न्यूरो-इंटरवेंशन के क्षेत्र में हालिया प्रगति के कारण बेहतर चिकित्सा सुविधाओं एवं अधिक जागरूकता आने के कारण स्ट्रोक से ग्रस्त बच्चों (यहां तक कि जन्मजात हृदय रोग, सिकल सेल रोग या अन्य रक्त विकारों से पीड़ित बच्चों) के जीवित रहने की दर दोगुनी हो गई है। 
पेडिएट्रिक स्ट्रोक क्या है?
स्ट्रोक मस्तिष्क में धमनियों और नसों में अवरोध आने या उनके फटने के कारण होता है। यह इस्किमिक या हेमोरेजिक दोनों हो सकता है। इस्किमिक स्ट्रोक आम तौर पर धमनियों में अवरोध के कारण होते हैं लेकिन यह नसों में रूकावट के कारण भी हो सकते हैं। जब अवरोध के कारण रक्त वाहिकाएं क्षतिग्रस्त होती है तो रक्त स्राव होने लगता है और इसे हेमोरेजिक स्ट्रोक कहा जाता है। वयस्कों में होेने वाले सभी स्ट्रोक में से 85 प्रतिशत इस्किमिक स्ट्रोक होते हैं जबकि बच्चों में होने वाले सभी स्ट्रोक में से केवल 50 प्रतिशत स्ट्रोक इस्किमिक होते हैं। 
बच्चों को मिनी स्ट्रोक (ट्रांजियेंट इस्किमिक अटेक - टीआईए) होने का भी खतरा अधिक होता है। यह स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति बहुत ही कम समय के लिए बाधित होती है। आम तौर पर टीआईए के तुरंत बाद लक्षण कम हो जाते हैं, लेकिन अगले 24 घंटों के भीतर स्ट्रोक होने का खतरा होता है। 
इसके लक्षण क्या हैं?
चूंकि किसी भी उम्र में स्ट्रोक हो सकता है - बच्चों से लेकर वयस्कों को। इसलिए उम्र के आधार पर न्यूरो इंटरवेंशन विशेषज्ञ उचित उपचार विधि निर्धारित करते हैं। लेकिन अक्सर बच्चों में स्ट्रोक की पहचान इस कारण से नहीं होती है क्योंकि स्ट्रोक के प्रभाव एवं लक्षण की तरफ ध्यान नहीं जाता है। 
स्ट्रोक का पहली बार पता तब चलता है जब बच्चे सीखने लगते हैं और उनका विकास होने लगता है और इसके साथ ही समस्याएं उभरने लगती हैं। आम तौर पर इसका पता तब चलता है जब बच्चे के चलने-फिरने के दौरान उसके षरीर के एक हिस्से में कोई दिक्कत नजर आती है। 28 दिनों तक के शिशुओं में दौरे सबसे आम लक्षण हैं और 18 वर्ष तक के बच्चे शरीर के एक तरफ कमजोरी या पक्षाघात का अनुभव कर सकते हैं, चेहरे लटक सकते हैं, बोलने में दिक्कत हो सकती है और सिर दर्द हो सकता है। ये सभी लक्षण आम तौर पर इस्किमिक स्ट्रोक से जुड़े होते हैं। हेमोरेजिक स्ट्रोक के लक्षणों में उल्टी, दौरे और कभी-कभी सिरदर्द शामिल हैं। 
स्ट्रोक का प्रभाव इस बात पर निर्भर करते हैं कि मस्तिष्क के किस हिस्से में स्ट्रोक हुआ है अैर उसके कारण कितना नुकसान हुआ है। जिन्हें बड़े स्ट्रोक होते हैं उनके शरीर का एक हिस्सा स्थाई तौर पर लकवाग्रस्त हो सकता है या बोलने की उनकी षक्ति जा सकी है लेकिन छोटे स्ट्रोक होने पर केवल हाथ या पैर की कमजोरी जैसी अस्थायी समस्याएं हो सकती हैं। समय पर इलाज होने पर ज्यादातर मामलों में मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं। 
किसे अधिक जोखिम है? 
बच्चों में स्ट्रोक के जोखिम कारक और कारण अलग-अलग होते हैं। उनकी रक्त वाहिकाओं में विकृतियों और अन्य जन्मजात असामान्यताओं में भी अंतर होता है।
इस्किमिक स्ट्रोक बच्चों में स्ट्रोक का मुख्य कारण है और इसके जोखिम कारकों में शामिल हैं -
1. जन्मजात हृदय रोग - बच्चों में 25 प्रतिशत तक इस्किमिक स्ट्रोक का कारण हृदय की बीमारियां होती हैं। जन्म से होने वाले जन्मजात हृदय रोग या बाद में होने वाली दिल की बीमारी से होने वाली असामान्यता के कारण स्ट्रोक हो सकते हैं। स्ट्रोक आम तौर पर दिल की बीमारी का पहला संकेत नहीं होता है। अक्सर बच्चे के स्ट्रोक होने से पहले हृदय रोग का निदान किया जाता है।
2. जन्मजात रक्त विकार - इसे प्रोथ्रोम्बोटिक डिसआर्डर भी कहा जाता है। यह ऐसी स्थिति है जो खून को गाढ़ा कर देती है और तेजी से रक्त का थक्का बनने लगता है। सिकल सेल डिजीज (एससीडी) एक और आनुवांशिक बीमारी है जो आरबीसी के विकास को प्रभावित करती है और इसके आकार को गोल से सिकल में बदल देती है। हालांकि यह दुर्लभ है, लेकिन यह मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में रक्तस्राव पैदा कर सकती है। अन्य बीमारियों में ल्यूकेमिया, एनीमिया और ऑटोइम्यून बीमारियां शामिल हैं।
3. धमनी में विकृति - मस्तिष्क में धमनियों के अनियमित गठन के कारण भी स्ट्रोक हो सकता है। जन्मजात होने के कारण, इस बीमारी के साथ पैदा होने वाले बच्चे में अक्सर तब तक इस बीमारी की पहचान नहीं हो पाती है जब तक कि स्ट्रोक के लक्षण सामने नहीं आ जाते हैं। ऐसे बच्चों की बार- बार स्ट्रोक के लिए नियमित रूप से निगरानी की आवश्यकता होती है। 
हेमोरेजिक स्ट्रोक बच्चों में स्ट्रोक के मामलों में से 50 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार होता है और इसका मुख्य कारण आर्टेरियो- वीनस मालफाॅर्मेशन (एवीएम) है। यह धमनियों और नसों की एक दुर्लभ विकृति है जिसमें हृदय से जो रक्त मस्तिष्क के लिए पंप किया जाता है वह रक्त उच्च दाब के साथ सीधे नसों में जाता है जो अपेक्षाकृत कम दबाव के साथ रक्त ले जाता है। दबाव में आए इस परिवर्तन के कारण रक्त वाहिकाएं फट जाती हैं और रक्तस्राव होने लगता है।
इसका इलाज कैसे किया जाता है?
हेमोरेजिक स्ट्रोक के उपचार को बच्चे के रक्तचाप और शरीर के तापमान को नियंत्रित करके बच्चे की स्थिति को स्थिर करने और हेमोरेजिक के इलाज से पहले सांस की तकलीफ को दूर करने पर फोकस किया जाता है। इसके शल्य चिकित्सा के विकल्पों में एन्यूरिज्म को क्लिप करने या असामान्य रक्त वाहिकाओं को हटाने के लिए माइक्रोस्कोर्जरी शामिल है। 
इस्किमिक स्ट्रोक के इलाज को मस्तिष्क के नुकसान को कम करने और एक और स्ट्रोक को रोकने पर फोकस किया जाता है। डॉक्टर रक्त का पतला करने वाली दवाइयां देते हैं और रिफ्लेक्स, आंखों के मूवमेंट, आवाज, निगलने और शरीर के अन्य कार्यों की निगरानी भी करते हैं। यह भी देखा जाता है कि बच्चा प्रकाश, चित्र, ध्वनि और स्पर्श के प्रति किस प्रकार की प्रतिक्रिया कर रहा है।