कई माता-पिता अपने बच्चों की खर्राटे लेने की आदत को लड़कपन समझ बैठते हैं और इसे को गंभीरता से नहीं लेते हैं। लेकिन जब बच्चे खासकर छोटे बच्चे के खर्राटे की आवाज तेज हो, तो आप सचेत हो जाएं, क्योंकि यह ऑब्सट्रक्टिव स्लिप एप्निया नामक जानलेवा स्थिति का संकेत हो सकता है। यह स्थिति नींद में मौत का कारण बन सकती है। खर्राटे भरने वाले लगभग 30 प्रतिशत बच्चे अब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया से ग्रस्त रहते हैं। इसमें गहरी नींद के दौरान जीभ पीछे की ओर पलट कर गले की मांसपेशियों के बीच इस कदर पफंस जाती है कि बच्चा 10 से 30 सेकेण्ड तक श्वसन सांस ही नहीं ले पाता है। इस क्षणिक अवधि के दौरान कोई आवाज नहीं निकलती। लेकिन श्वास क्रिया बंद होते ही बच्चे की जीवन रक्षा पद्धति सक्रिय हो जाती है जिससे नींद खुल जाती है और बच्चा जीभ को आगे कर लेता है। इससे वायुमार्ग खुल जाता है और श्वसन आरम्भ हो जाता है। लेकिन जैसे ही वह गहरी नींद में जाता है उक्त क्रिया फिर से शुरू हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार करीब आठ से 12 प्रतिशत बच्चे खर्राटे से जबकि करीब दो से तीन प्रतिशत बच्चे स्लिप एप्निया से पीड़ित होते हैं। अब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया से ग्रस्त लोगों के नींद में ही मौत हो जाने का खतरा बहुत अध्कि होता है।
नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ ई. एन. टी. सर्जन डा. संदीप सिंधु बताते हैं कि बच्चों में आब्स्टस्लिप स्लिप एप्निया के लक्षण स्पष्ट नहीं होते हैं इसलिए माता-पिता को बच्चों के व्यवहार एवं उनकी आदतों पर ध्यान रखना चाहिए, क्योकि हाइपरएक्टिविटी, ए डी एच डी, स्कूल में खराब प्रदर्शन, खर्राटे, मुंह से सांस लेने, बिस्तर गीला करने, असंयमित अथवा उग्र व्यवहार जैसे लक्षण आब्स्टस्लिप स्लिप एप्निया अथवा नींद संबंधी बीमारी के संकेत हो सकते हैं।
बच्चों में अनिद्रा, खर्राटे और स्लिप एप्निया जैसी समस्याओं का शुरू में ही पता चल जाने पर दवाइयों से ही इलाज किया जा सकता है। आम तौर पर बच्चों में स्लिप एप्निया का कारण साइनुसाइटिस, टांसिल अथवा एडेनॉयड का बड़ा होना हो सकता है। साइनुसाइटिस का इलाज एंटीबायोटिक दवाइयों से जबकि बढ़े हए एडेनॉयड का इलाज सर्जरी से किया जाता है। सर्जरी के जरिये प्रभावित टांसिल और एडेनॉयड को निकाल दिया जाता है।
युवावस्था में खर्राटे को बिल्कुल नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। माध्यमिक स्कूल में खराब शैक्षणिक प्रदर्शन करने वाले बच्चों के बाल्यावस्था के शुरूआती अवस्था में ही खर्राटे से प्रभावित होने की संभावना होती है। खर्राटे लेने वाले युवा बच्चों के दमा और रात के समय कफ से भी प्रभावित होने की संभावना होती है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ चेस्ट फिजिशियन (एसीसीपी) द्वारा प्रकाशित चेस्ट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि स्कूल जाना शुरू नहीं करने वाले खर्राटे लेने वाले 40 प्रतिशत बच्चों में रात में कफ की समस्या विकसित हो गई और जांच करने में उनमें दमा पाया गया।
खर्राटे लेने वाले माता-पिता के बच्चों में खर्राटे की अधिक संभावना होती है। चेस्ट जर्नल के नवीनतम अंक में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार खर्राटे नहीं लेने वाले माता-पिता के बच्चे की तुलना में माता-पिता में से किसी एक के भी खर्राटे लेने पर उनके बच्चे में खर्राटे की संभावना तीन गुना बढ़ जाती है। इस अध्ययन से इस बात को बल मिलता है कि खर्राटे में आनुवांशिक कारकों का भी योगदान होता है।
दरअसल खर्राटे स्लिप डिसआर्डर ब्रिदिंग का प्राथमिक लक्षण है। बच्चों में इसका संबंध सीखने की अक्षमता, चयापचय और कार्डियोवैस्कुलर डिसआर्डर से भी होता है। खर्राटे की शुरूआती अवस्था में ही पहचान और इलाज से बच्चों में स्लिप डिसआर्डर ब्रिदिंग के कारण मृत्यु की आशंका को कम किया जा सकता है।
डा. संदीप सिंधु की सलाह है कि एक साल से अधिक उम्र के बच्चे यदि खर्राटे लेते हैं तो रूटीन जांच में डॉक्टर को यह बात अवश्य बतानी चाहिए और ऐसी स्थिति में डॉक्टर को बच्चे की जरूरी जांच अवश्य कराना चाहिए क्योंकि गंभीर खर्राटे अक्सर आब्सट्रक्टिव स्लिप एप्निया सिंड्रोम के लक्षण होते हैं। इसमें श्वांस नली के उतक अस्थायी रूप से बीमार हो जाते हैं जिससे पूरी रात सांस लेने में बाधा आती है। लेकिन स्लिप एप्निया के बगैर भी गंभीर खर्राटे अपने आप में एक समस्या है। मोटापा इस खतरे को और बढ़ा सकते हैं। श्वांस नली के चारों ओर वसा के जमा होने से यह नली संकुचित हो जाती है और पेट में जमा वसा डायफ्राम को सहीं ढंग से काम करने में बाधा पहुंचाता है। 20 से 40 प्रतिशत मोटे बच्चे आब्सट्रक्टिव स्लिप एप्निया सिंड्रोम से प्रभावित होते हैं।
युवाओं की तरह ही जिन बच्चों की खर्राटे लेने की आदत होती है, यहां तक कि जिनमें स्लिप एप्निया की शिकायत नहीं होती है, वे रात में गहरी नींद नहीं सो पाते हैं, जिसके कारण वे दिन भर सुस्ती महसूस करते हैं। सुस्ती महसूस करने वाले कुछ बच्चे अन्य बच्चों की तरह दौड़-धूप नहीं कर पाते हैं।
यदि कोई बच्चा आब्सट्रक्टिव स्लिप एप्निया सिंड्रोम से पीड़ित है तो उसे ऑक्सीजन बहुत कम मात्रा में, लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड बहुत अधिक मात्रा में मिलने लगता है। इससे उसके हृदय और फेफड़े के विकास तो प्रभावित होते ही है, उसे व्यवहार संबंधी समस्याएं भी हो जाती हैं और इलाज नहीं कराने पर उसकी मृत्यु भी हो सकती है। लेकिन यदि इसका पता शुरूआती अवस्था में ही चल जाए तो रोगी पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
डा. संदीप सिंधु नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में वरिष्ठ ई.एन.टी. चिकित्सक हैं। इससे पूर्व वह नयी दिल्ली के ही सफदरजंग अस्पताल एवं सर गंगाराम अस्पताल में काम कर चुके हैं। उनसे निम्नलिखित फोन नम्बरों पर सम्पर्क किया जा सकता है।
बच्चों के खरार्टे को मामूली नहीं समझें
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