बच्चों में सिर दर्द व्यापक समस्या है। आम तौर पर बच्चों के सिरदर्द को मामूली बीमारी समझ कर नजरअंदाज कर दिया जाता है। कई बार बच्चा जब सिरदर्द की शिकायत करता है तब मां-बाप यह मान बैठते हैं वह पढ़ाई अथवा स्कूल जाने से बचने का बहाना कर रहा है। हालांकि बच्चे का सिरदर्द अक्सर सामान्य कारणों से होता है लेकिन इसके बावजूद इसे मामूली नहीं समझना चाहिये क्योंकि यह दिमागी रसौली का भी संकेत हो सकता है। हालांकि बच्चों में सिर दर्द आम तौर पर आंखों में कमजोरी, साइनस एवं सर्दी-जुकाम जैसे कारणों से अधिक होते हैं जबकि बड़े लोगों में सिर दर्द का सामान्य कारण तनाव होता है जो बच्चों में आम तौर पर नहीं पाया जाता है। लेकिन बच्चों के साथ-साथ बड़े लोगों में सिर दर्द कई बार इन मामूली कारणों के अतिक्ति मस्तिष्क की रसौली अर्थात ब्रेन ट्यूमर,हाइड्रोसेफलस एवं मेनिनजाइटिस जैसे गंभीर कारणों से भी होता है। इसलिये सिर दर्द को हमेशा गंभीरता से लेना चाहिये। ट्यूमर की आरंभिक अवस्था में तो केवल सिर दर्द होता है लेकिन ट्यूमर जब बड़ा होकर आंखों से जुड़े स्नायु तंत्र को दबाने लगता है तब नेत्र की रोशनी घटने लगती है और बच्चा अंधा भी हो सकता है।
मस्तिष्क का ट्यूमर बच्चे को पैदाइश से ही हो सकता है। बच्चे को दिमागी रसौली की आरंभिक अवस्था में सिर दर्द एवं नजर में कमजोरी आने के अलावा भूख और शारीरिक वजन में लगातार गिरावट आती जाती है।
दिमागी रसौली कई तरह की होती है लेकिन इनमें से दो बहुत ही सामान्य हैं। ये हैं - ग्लायोमा एवं मेनिंनजियोमा। ग्लायोमा बच्चों में जबकि मेनिनजियोमा बड़े लोगों में सामान्य हैै। बच्चों एवं युवाओं में आम तौर पर दिमागी रसौली कैंसर रहित अर्थात बिनाइन (लो ग्रेड ग्लायोमा) होती है, लेकिन अगर इसका लंबे समय तक इलाज नहीं कराया जाये तब यही रसौली कैंसर युक्त अर्थात मेलिंग्नेंट में बदल सकती है। ग्लायोमा ट्यूमर मस्तिष्क के अंदर के उतकों से उत्पन्न होता है जबकि कैंसर युक्त अर्थात मेनिनजियोमा मस्तिक के पर्दे से उत्पन्न होता है। मेनिनजियोमा कई सालों में धीरे-धीरे विकसित होकर कभी-कभी इतना बड़ा हो जाता है कि उसे आपरेशन से पूरा निकालना संभव नहीं होता। दूसरी तरफ हाई ग्रेड ग्लायोमा ट्यूमर बहुत तेजी से कुछ ही महीनों में वृद्धि करके मस्तिष्क के अंदर दबाव डालने लगता है। अगर ट्यूमर आंखों की नर्व के ऊपर हो और वह नर्व पर बहुत अधिक दबाव डाल रहा हो तो आंखों की रोशनी भी खत्म हो सकती है। अगर ट्यूमर मस्तिष्क में उस हिस्से में हो जहां से शरीर का दायां या बायां हिस्सा नियंत्रित होता है तो उस हिस्से में लकवा मार सकता है। ट्यूमर के मस्तिष्क के सतह पर केन्द्र्र में होने पर बच्चे को मिर्गी के दौरे पड़ सकते हैं।
मस्तिष्क के ट्यूमर की पहचान जल्द से जल्द होने पर इलाज अधिक कारगर होता है। इसलिये अगर बच्चा सुबह-सुबह सिर में दर्द होने की शिकायत करे तब इसकी अनदेखी नहीं करना चाहिये बल्कि सिर दर्द के सही कारणों का पता लगाकर उचित उपचार आरंभ करना चाहिये। बच्चे की आंखों में कोई कमजोरी या खराबी, साइनस एवं जुकाम आदि की समस्या नहीं होने पर मस्तिष्क ट्यूमर होने की आशंका हो सकती है। मस्तिष्क के ट्यूमर का पता लगाने के लिये कम्प्यूटराइज्ड टोमोग्राफी अर्थात कैट स्कैन अथवा मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग (एम.आर.आई.) की मदद से बच्चे के सिर की स्कैनिंग की जाती है ।
बच्चों में आम तौर पर मस्तिष्क ट्यूमर के साथ-साथ दिमाग में पानी भरने की बीमारी हाइड्रोसेफलस भी हो सकती है,क्योंकि ट्यूमर के बढ़ने पर मस्तिष्क से पानी निकलने का रास्ता बंद हो जाता है जिससे सिर में पानी जमा हो जाता है। हाइड्रोसेफलस की समस्या हमारे देश में ट्यूबरक्युलोसिस (टी बी) मेनिनजाइटिस के अधिक प्रकोप के कारण बहुत ही आम है।
ट्यूमर के साथ -साथ हाइड्रोसेफलस होने पर सबसे पहले हाइड्रोसेफलस का और फिर बाद में ट्यूमर का इलाज किया जाता है। हाइड्रोसेफलस का इलाज करने के लिये आपरेशन का सहारा लिया जाता है। इस आपरेशन के तहत बच्चे के सिर में एक छोटा सा सूराख करके एक नली डाल दी जाती है और इस नली के दूसरे सिरे को त्वचा के अंदर ही अंदर लाकर पेट में प्रवेश करा दिया जाता है। इससे मस्तिष्क का पानी नली के रास्ते पेट में आने लगता है । इसे शंट आपरेशन कहा जाता है। इस आॅपरेशन के बाद बाहर से देखने पर यह पता नहीं चलता है कि बिच्चे को शंट लगा है। हालांकि आजकल बिना शंट के ही इंडोस्कोपी की मदद से हाइड्रोसेफलस का इलाज होने लगा है। हाइड्रोसेफलस का इलाज हो जाने के बाद ही ट्यूमर का इलाज किया जाता है।
बच्चों में मस्तिष्क ट्यूमर के इलाज के लिये आपरेशन, रेडियोथेरपी और कीमोथेरेपी का सहारा लिया जाता है। आपरेशन से पहले बायोप्सी करके ट्यूमर होने को सुनिश्चित करना आवश्यक होता है क्योंकि बच्चों में मस्तिष्क ट्यूमर के अलावा तपेदिक,वायरल संक्रमण आदि होना सामान्य है। बायोप्सी करना इसलिये भी जरूरी हो जाता है क्योंकि आम तौर पर सीटी स्केैन या एम आर आई से यह नहीं पता चल पाता कि ट्यूमर कैंसर युक्त है या नहीं। अब नवीनतम तकनीकों की मदद से मस्तिष्क के अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र ब्रेन स्टेम से भी बायोप्सी के नमूने लेना संभव हो गया है। ब्रेन स्टेम हृदय एवं श्वसन का केंद्र्र बिन्दु है। वैसे बच्चों के ब्रेन स्टेम में सामान्यतः ग्लायोमा ही होता है । बच्चे के मस्तिष्क की बायोप्सी करने के लिये मस्तिष्क में मात्र दो सेंटीमीटर का छेद किया जाता है। कई बार मस्तिष्क के महत्वपूर्ण क्षेत्र में ट्यूमर होने पर समूचे ट्यूमर को निकालना संभव नहीं हो पाता है।
ट्यूमर को पूरा-पूरा निकालने की कोशिश में मरीज को लकवा मारने की आशंका रहती है। हालांकि अब ट्यूमर को कम्प्यूटर आधारित स्टीरियोटेक्टिक तकनीक के जरिये निकाला जाने लगा है जो अत्यंत सुरक्षित तरीका है।
आपरेशन के बाद भी अगर ट्यूमर काफी बड़े आकार का रह जाये तब उसे सामान्य तरीके से रडियोथेरेपी दी जाती है। लेकिन अगर आपरेशन के जरिये ट्यूमर के आकार को काफी छोटा कर लिया जाये तब रेडियेशन के साथ-साथ एक्स या गामा नाइफ भी दी जाती है। अगर ट्यूमर कैंसर रहित अर्थात बिनाइन ग्लायोमा है और उसकी वृद्धि बहुत धीरे-धीरे हो रही होती है तब सिर्फ एक्स या गामा नाइफ दी जाती है। चूंकि बच्चों में ज्यादातर बिनाइन ग्लायोमा होते हैं इसलिये उनके पूरे मस्तिष्क को रेडियेशन नहीं देकर केवल प्रभावित हिस्से पर ही रेडियेशन दिया जाता है क्योंकि पूरे मस्तिष्क में रेडियेशन देने पर बच्चे का शारीरिक एवं मानसिक विकास प्रभावित हो सकता है। ऐसी स्थिति में अगर बिनाइन ट्यूमर का पूर्णतया इलाज कर भी दिया जाये तो रेडियेशन के कारण मस्तिष्क को क्षति होने से शारीरिक एवं मानसिक विकास के कम होने का खतरा रहता है।
इसके अलावा पिट्यूटरी ग्रंथि से निकलने वाले ग्रोथ हार्मोन सहित अन्य हार्मोनों में भी खराबी आ जाती है। बच्चे को उच्च रेडियेशन देने पर उसके मस्तिष्क को गंभीर क्षति हो सकती है जिससे बच्चा मनोरोगी भी हो सकता है। इसलिये इन सब बातों को ध्यान में रखकर बच्चे के मस्तिष्क ट्यूमर में केवल प्रभावित हिस्से में रेडियेशन की डोज दी जाती है ताकि मस्तिष्क का शेष हिस्सा रेडियेशन के दुष्प्रभाव से बचा रह सके। एक्स नाइफ से रेडियेशन देने पर केवल प्रभावित हिस्से को ही रेडियेशन देना संभव हो गया है।
बच्चे में सिर दर्द का कारण हो सकता है मस्तिष्क ट्यूमर
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