बचपन में खराब रहन-सहन से पड़ सकता है युवावस्था में दिल का दौरा

हरियाणा में हाल में किए गए एक  अध्ययन से पता चलता है कि युवावस्था में यहां तक कि 20 साल की उम्र के बाद ही होने वाले दिल के दौरे एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुके हैं और इस अध्ययन में युवावस्था में होने वाले दिल के दौरे का बचपन के रहन- सहन से भी मजबूत संबंध पाया गया।
इस अध्ययन के तहत में हरियाणा के विभिन्न भागों से आये हृदय रोगियों का अध्ययन किया गया। 20-30 साल के आयु वर्ग में कोरोनरी हृदय रोग की व्यापकता 5 प्रतिशत पायी गयी, जबकि 30-40 साल के आयु वर्ग में इसकी व्यापकता 16 प्रतिषत, 40-50 साल के आयु वर्ग में 34 प्रतिषत और 50 से अधिक आयु वर्ग में 44 प्रतिषत पायी गयी।
दिल्ली के शालीमार बाग में मैक्स सुपर स्पेशलिटी हाॅस्पिटल में वरिष्ठ इंटरवेंशनल हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. नरेश कुमार गोयल ने बताया कि इस अध्ययन में शामिल युवा रोगी समूह (20-40 वर्ष) में से अधिकतर रोगियों में उनके बचपन के समय के दौरान पैसिव स्मोकिंग या तनाव या दोनों का इतिहास पाया गया। उनमें तनाव के प्रमुख कारणों में माता - पिता का व्यवहार, पैसे संबंधी मुद्दे, पारिवार में शोषण और दुव्र्यवहार पाये गये।
डॉ. नरेश कुमार गोयल ने कहा कि बड़े अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों के अनुसार बच्चों के सामने धूम्रपान करने से उनमें हृदय रोग होने का खतरा 400 प्रतिषत तक बढ़ जाता है। दूसरी तरफ, बचपन में तनावपूर्व जिंदगी जीने वाले बच्चे जब वयस्क अवस्था में पहुंचते हैं तो उनकी रक्त वाहिकाएं अस्वस्थ हो चुकी होती हैं।
संवाददाता सम्मेलन के दौरान उन्होंने कहा कि लोगों को इस बात से अवगत होना चाहिए कि यदि उनका धूम्रपान करना जरूरी है तो वे बच्चों के सामने धूम्रपान न करें। इसके अलावा बच्चों को शारीरिक रूप से अधिक से अधिक सक्रिय जीवन षैली जीने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि इससे तनाव के दुष्प्रभावों को कम करने में मदद मिलती है और यह संवहन प्रणाली को लंबे समय तक स्वस्थ रखता है।
उन्होंने कहा कि कई रोगियों का इस खतरनाक मिथक में विष्वास है कि एंजियोप्लास्टी के दौरान स्टेंट को प्रत्यारोपित करने पर धमनियां आजीवन खुली रहती हैं। उन्होंने कहा कि लोगों का इस बात से अवगत होना चाहिए कि स्टेंट धमनियों को उस समय तक खुला रखता हैं जब धमनियों में अपने आप खुले रहने की क्षमता विकसित हो जाती है और उसके बाद इन स्टेंट का कोई काम नहीं है।