इस पुरुष प्रधान समाज में घर-बाहर पुरुषों का ही वर्चस्व बना रहता है। घर का मालिक पति को माना जाता है भले ही पति निठल्ला बैठा रहता हो। लेकिन आज के समय में जब महिलायें अपने अधिकारों को पहचानने लगी हैं और घर की दहलीज से बाहर निकल कर नौकरी-व्यवसाय में अपने पैर जमाने लगी हैं तब स्थिति में कुछ-कुछ बदलाव होता नजर आने लगा है। कई महिलायें अब अपने पतियों से ज्यादा पैसा और शोहरत कमाने लगी हैं। लेकिन इससे कई पति अपमानित महसूस करने लगे हैं जिसका प्रभाव दाम्पत्य जीवन पर भी पड़ने लगा है।
घर का बॉस कौन होता है - पति या पत्नी। तो हर किसी का जवाब होगा कि घर का बॉस पति ही होता है, लेकिन यह जवाब उस मायने में गलत भी साबित हो सकता है जब पति की तुलना में पत्नी की आमदनी अधिक हो। हालांकि ऐसी परिस्थिति में भी पति अपनी बॉसगिरी दिखाना नहीं भूलते। पत्नी को नीचा दिखाने का कोई भी मौका वे हाथ से जाने नहीं देना चाहते। अगर पत्नी पति पर हावी न भी हो तो भी उन्हें ऐसा महसूस होता है कि पत्नी उन्हें अहमियत नहीं दे रही है और वे खुद को अपमानित महसूस करने लगते हैं। पत्नी उन्हें लाख समझाने की कोशिश करती है, लेकिन वे पत्नी को अधिक कमाने का ताना देने से नहीं चूकते। इसकी वजह से घर में आए दिन पति-पत्नी के बीच मनमुटाव और तू तू-मैं मैं होती रहती है जिसका असर बच्चों पर भी पड़ता है।
हालांकि अन्य पत्नियों की तरह ही पति से अधिक कमाने वाली ज्यादातर पत्नियां भी किसी के सामने यह जाहिर नहीं करतीं कि उनके घर में उनकी कोई अहमियत नहीं है। लेकिन कई पति अपने दोस्तों के सामने यह डींग हांकना नहीं भूलते कि घर में उन्हीं की चलती है, भले ही बच्चे पिता की तुलना में मां को अधिक महत्व दे रहे हों ।
आरती रावत के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है। आरती रावत एक अमरीकी कंपनी में सहायक के तौर पर कार्यरत हैं और उनके पति किसी अन्य प्राइवेट फर्म में कार्य करते हैं। हालांकि आरती के पति का वेतन आरती की तुलना में अधिक है, लेकिन आरती को कंपनी की तरफ से अधिक सुविधाएं मिली हुई हैं। ऑफिस की कार उन्हें हर दिन घर से लेने और छोड़ने आती है। उनके अधीन दो चपरासी कार्यरत हैं जिनसे वह ऑफिस के अलावा अपना पर्सनल काम भी करवा लेती हैं। जबकि उनके पति को ये सुविधाएं हासिल नहीं हैं। इसी कारण बच्चों को भी अगर अपने दोस्तों के घर जाना होता है या उनके घर से अपने घर आना होता है यहां तक कि स्कूल-कॉलेज से कोई काम होता है तो वे पापा के बजाय मम्मी को ही बोलते हैं। लेकिन ये सब बातें उनके पति को बहुत खलती है और इसी कारण वे पत्नी को उलाहना भी देते रहते हैं। आरती को चाय की तुलना में कॉफी अधिक पसंद है, लेकिन उनके पति का कहना है कि अपना स्टेटस दिखाने के लिए ही वह कॉफी पीती हैं। हालांकि जब आरती उन्हें समझाती हैं तब वे सामान्य हो जाते हैं लेकिन आधे घंटे के बाद वे फिर से टीका-टिप्पणी करना शुरू कर देते हैं।
कामना की जिन्दगी भी आरती से काफी मिलती-जुलती है। कामना एक विज्ञापन कंपनी में कार्यरत हैं और उनके पति इन्कम टैक्स विभाग में हैं। हालांकि वे दोनों अपनी जिंदगी और घर-गृहस्थी से खुश हैं, लेकिन जब वे किसी पार्टी या किसी के घर डिनर पर जाते हैं तब लोग उन दोनों की आमदनी के बीच के अंतर पर बातें करने लगते हैं। इस तरह जब वे घर से निकलते हैं तब तो काफी खुश होते हैं लेकिन पार्टी खत्म होने तक उनके पति का मिजाज उखड़ चुका होता है और वे कामना से सीधे मुंह बात भी नहीं करते। अगर बच्चे कामना से हंस-बोल रहे होते हैं या कभी कुछ फरमाइश कर देते हैं तो उनके पति के अहं को ठेस पहुंचती है और उन्हें महसूस होने लगता है कि कामना की आमदनी अधिक होने के कारण बच्चे उनकी तुलना में मां को ज्यादा महत्व देते हैं।
पत्नियां इन बातों को समझती हैं और अपने दाम्पत्य जीवन में खुशहाली रखने तथा तनाव नहीं आने देने के लिये खुद पर अंकुश रखने की कोशिश करती हैं और खुद को अधिक सक्षम एवं योग्य दिखाने के चक्कर में नहीं रहती हैं।
अनेक पतियों को यह लगता है कि उनकी पत्नियां अधिक वेतन पाने का दिखावा करती हैं। इसलिये वे हमेशा उन्हें अपने से कम कर आंकते हैं। मिसाल के तौर पर माया के पति हमेशा यह दिखाने की कोशिश में रहते हैं कि वह जितना कमाते हैं उसका आधा भी उनकी पत्नी नहीं कमाती है और उनकी पत्नी का काम तो उनके काम की तुलना में किसी तरह से महत्वपूर्ण नहीं है। सरला के पति अपनी पत्नी की सभी सहेलियों में खामियां निकालते रहते हैं और मौका पड़ने पर टिप्पणियां करने से नहीं चूकते। सरला का कहना है कि इन चीजों की अनदेखी करनी पड़ती है और हममें से ज्यादातर महिलाएं ऐसा ही करती हैं।
सरला का कहना है कि महिला की कमजोरी उनके बच्चे होते हैं। हम बच्चों की खातिर ही चुप रह जाती हैं। अक्सर कहा जाता है कि बच्चों की जिम्मेदारी महिलाओं पर है। इसलिये अपने करियर में आप चाहे जो भी सफलता अर्जित करें वह बच्चों की कीमत पर होगा और अगर बच्चों के लालन-पालन में कोई खामी आयी तो पति की ऊंगली पत्नी पर ही उठती है। ऐसे में हमेशा मन में इस बात को लेकर बेचैनी बनी रहती है कि अपनी नौकरी में अर्जित होने वाली कामयाबियां उनके बच्चों के जीवन को बर्बाद कर रही है। इसे लेकर कई पत्नियां तनाव में रहती हैं या अपराध बोध से भी ग्रस्त रहती हैं। लेकिन पतियों के मामले में ऐसा नहीं होता है। अपनी पत्नी की तुलना में ऊंचे ओहदे एवं अधिक वेतन पर काम करने वाले पति अगर अपने बाल-बच्चों की परवरिश की चिंता नहीं भी करें तो उन्हें कोई अपराध बोध या तनाव नहीं होता।
इस तरह के असंतुलित समीकरण के कारण ही पारिवारिक जीवन में हमेशा कलह की गुंजाइश बनी रहती है।