आंखों के लिए नुकसानदेह है डायबिटीज

डायबिटीज हमेशा बने रहने वाला रोग है। डायबिटीज से किडनी, ब्लड प्रेशर व शरीर के अन्य अंगों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से अनेक लोग अवगत हैं, लेकिन इस रोग से आंखों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। डायबिटीज के मरीजों में अगर शुगर की मात्रा नियंत्रित नहीं रहती, तो वह मधुमेह रेटिनोपैथी के शिकार हो सकते हैं। इस समस्या का पता तब चलता है जब यह बीमारी गंभीर रूप ले लेती है।
डायबिटीक रेटिनोपैथी क्या है 
डायबिटीक रेटिनोपैथी तब होती है जब हाई ब्लड शुगर आंख के पिछले भाग यानी रेटिना पर स्थित छोटी रक्त वाहिनियों को क्षतिग्रस्त कर देती हैं। डायबिटीज वाले सभी लोगों में यह समस्या होने का जोखिम होता है। डायबिटीक रेटिनोपैथी एक ऐसा रोग है, जिसमें आंख की रेटिना पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की अनदेखी करने पर रोगी की आंख की रोशनी तक जा सकती है। इसका प्रभाव एक या दोनों आंखों पर भी हो सकता है।
डायबिटीक रेटिनोपैथी के प्रभाव
डायबिटीक रेटिनोपैथी के प्रतिकूल प्रभाव से रेटिना की छोटी रक्त वाहिकाएं कमजोर हो जाती हैं और इनके मूल स्वरूप में बदलाव आ जाता है। रक्त वाहिकाओं में सूजन आ सकती है, रक्तवाहिकाओं से रक्तस्राव होने लगता है या फिर इन रक्त वाहिकाओं में ब्रश की तरह की कई शाखाएं विकसित हो जाती हैं। इस स्थिति में रेटिना को स्वस्थ रखने के लिए ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति में बाधा पड़ती है। नई रक्त वाहिनियों के बढ़ने पर वे भी रिसाव करती हैं और रोगी की दृष्टि में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
डायबिटीक रेटिनोपैथी के प्रकार 
डायबिटीक रेटीनोपैथी दो प्रकार की होती है, बैकग्राउंड डायबिटिक रेटीनोपैथी और मैक्यूलोपैथी। बैकग्राउंड डायबिटीक रेटीनोपैथी आम तौर पर उन लोगों में पाई जाती है, जिन्हें बहुत लंबे समय से डायबिटीज हो। इस स्तर पर रेटिना की रक्त वाहिकाएं बहुत हल्के तौर पर प्रभावित होती हैं। वे थोड़ी फूल सकती है और उनमें से रक्त निकल सकता है। दूसरी मैक्यूलोपैथी उन लोगों को होती है जिनको बैकग्राउंड डायबिटिक रेटिनोपैथी की समस्या लंबे समय तक रहती हैं। ऐसा होने पर देखने की क्षमता प्रभावित होती है।
डायबिटीक रेटिनोपैथी कब होती है
गर्भावस्था में डायबिटिक रेटिनोपैथी की समस्या बढ़ जाती है। हाई ब्लड प्रेशर इस रोग की स्थिति को गंभीर बना देता है। बचपन या किशोरावस्था में डायबिटीज से ग्रस्त होने वाले बच्चों व किशोरों में यह मर्ज युवावस्था में भी हो सकता है। यह सब स्थितियों में यह ज्यादा पायी जाती है।
डायबिटिक रेटिनोपैथी के लक्षण
शुरुआती दौर में डाइबिटिक रेटिनोपैथी के लक्षण सामान्य तौर पर प्रकट नहीं होते, लेकिन जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, वैसे-वैसे दृष्टि में धुंधलापन आने लगता है। परन्तु इसके लक्षणों में तैरते धब्बे नजर आना, धुंधली दृष्टि, अवरुद्ध, अस्पष्ट दृष्टि आदि शामिल हैं।
डायबिटीक रेटिनोपैथी का इलाज 
डायबिटीक रेटिनोपैथी का अगर समुचित इलाज नहीं किया जाए, तो अचानक से आंख की रोशनी चली जाती हैं। डायबिटीज रेटिनोपैथी का इलाज दो विधियों से किया जाता है, लेजर से या वीट्रेक्टॅमी से। लेजर ट्रीटमेंट को 'लेजर फोटोकोएगुलेशन' भी कहते हैं, जिसका ज्यादातर मामलों में इस्तेमाल किया जाता है। डायबिटीज से ग्रस्त जिन रोगियों की आंखों की रोशनी के जाने या उनकी दृष्टि के क्षीण होने का जोखिम होता है, उनमें इस उपचार प्रकार की विधि का प्रयोग किया जाता है।
लेजर ट्रीटमेंट 
लेजर ट्रीटमेंट का मुख्य उद्देश्य दृष्टि के मौजूदा स्तर को बरकरार रखकर उसे सुरक्षित रखना है, दृष्टि को बेहतर बनाना नहीं। रक्त वाहिकाओं में लीकेज होने से रेटिना में सूजन आ जाती है। इस लीकेज को बंद करने के लिए इस विधि का इस्तेमाल किया जाता है। यदि आंखों में नई रक्त वाहिकाएं विकसित होने लगती हैं, तो उस स्थिति में पैन रेटिनल फोटोकोएगुलेशन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही लेजर तकनीक से सामान्य तौर पर कारगर लाभ मिलने में तीन से चार महीने का वक्त लगता है।
वीट्रेक्टॅमी ट्रीटमेंट 
कभी-कभी नई रक्त वाहिकाओं से आंख के मध्य भाग में जेली की तरह रक्त स्राव होने लगता है। इस स्थिति को 'वीट्रीऑस हेमरेज' कहते हैं, जिसके कारण दृष्टि को अचानक नुकसान पहुंचता है। अगर 'वीट्रीऑस हेमरेज' बना रहता है, तब वीट्रेक्टॅमी की प्रक्रिया की जाती है। यह सूक्ष्म सर्जिकल प्रक्रिया है। जिसके माध्यम से आंख के मध्य से रक्त और दागदार ऊतकों को हटाया जाता है।
कब बढ़ता है खतरा
जैसे-जैसे डायबिटीज की अवधि बढ़ती है इस रोग के होने की आशंका बढ़ती जाती हैं। और अक्सर ऐसा देखा गया है कि लगभग पिछले 15 सालों में 80 फीसदी लोग जो डायबिटीज से पीड़ित हैं, उनके रेटिना की रक्त वाहिकाओं में कोई न कोई समस्या आ ही जाती है।