संतानहीनता के उपचार के लिये आईवीएफ अथवा इन विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक एक लोकप्रिय एवं कारगर उपाय है लेकिन इसे लेकर कई भ्रांतियां भी हैं। भ्रांतियां एवं तथ्य इस प्रकार हैं:
मिथक: आईवीएफ के जरिये जन्म लेने वाले बच्चे अन्य बच्चों से अलग होते हैं।
तथ्य: इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि आईवीएफ के जरिये जन्म लेने वाले बच्चे अन्य बच्चों से अलग होते हैं। आईवीएफ के जरिये जन्म लेने वाले बच्चे भी अंडाणु एवं शुक्राणु से उत्पन्न होते हैं और किसी अन्य बच्चे की तरह ही स्वस्थ होते हैं।
मिथक: सभी तरह की संतानहीनता संबंधी समस्याओं का समाधान आईवीएफ है।
तथ्य: चिकित्सा तकनीकों के विकास की बदौलत प्रजनन केन्द्र अब उन दम्पतियों को सम्पूर्ण प्रजनन सुविधायें उपलब्ध करा रहे हैं। आज निंसंतान दम्पतियों को संतान जनने में मदद करने के लिये आईवीएफ के अलावा आर्टिफिषियल इनसेमिनेशन, इंट्रासाइटोप्लाजमिक स्पर्म इंजेक्शन (आईसीएसआई), आईएमएसआई तथा अन्य विकल्प भी उपलब्ध हैं। कई बार हमें डोनर एग्स, डोनर स्पर्म ओर सरोगेसी का सहारा लेना पड़ता है। किस मरीज के लिये किस विकल्प का इस्तेमाल किया जाना है यह मरीज की जांच रिपोर्टों के आधार पर तय होता है।
मिथक: आईवीएफ को अप्राकृतिक माना जाता है।
तथ्य: आईवीएफ अत्यंत सामान्य प्राकृतिक चिकित्सकीय प्रक्रिया है जिसकी मदद से जन्म लेने वाले बच्चे माता-पिता से आनुवांशिक रूप से जुड़े रहते हैं।
मिथक: आईवीएफ उपचार के कारण एक साथ कई बच्चों, जुड़वा बच्चों, तीन बच्चों आदि का जन्म होता है।
तथ्य: पहले आईवीएफ उपचार कराने वाली महिलाओं के लिये एक साथ कई बच्चों के जन्म देने की बात सामान्य थी, लेकिन पिछले दशक में तकनीकी विकास के कारण एक साथ कई बच्चों के जन्म होने के मामले काफी हद तक घट गये हैं, यहां तक कि जुड़वा बच्चों के जन्म के मामले भी तेजी से घटे हैं।
मिथक: सभी मामलों में आईवीएफ सफल है।
तथ्य: यह गलत है। आईवीएफ 40 से 50 प्रतिशत मामलों में सफल होता है। सफलता कई कारणों पर निर्भर करती है, जैसे महिला की उम्र, संतानहीनता के कारण, उपचार केन्द्र की विषेशज्ञता, जैविक और हार्मोनल कारण, लैब की गुणवत्ता, भ्रूण स्थानांतरण का दिन, ब्लास्टोसिस्ट का निर्माण आदि।
मिथक: आईवीएफ के लिये अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत होती है।
तथ्य: यह गलत है। इसके लिये अस्पताल में रात में रूकने की जरूरत नहीं होती है। यह मुख्य तौर पर ओपीडी उपचार है। अंडा लेने की प्रक्रिया के लिये मरीज को दिन में अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत होती है।
मिथक: आईवीएफ खतरनाक है।
तथ्य: आईवीएफ खतरनाक नहीं है। दरअसल यह सुरक्षित उपचार है। केवल एक या दो प्रतिशत मरीज की उपचार के दौरान गंभीर ओवेरियन हाइपर स्टिमुलेशन सिंड्रोम के कारण अस्वस्थ होती हैं। इसे भी चिकित्सकीय निगरानी के जरिये कम से कम किया जा सकता है।
मिथक: संतानहीनता महिला की समस्या है।
तथ्य: संतानहीनता के एक तिहाई मामलों में महिला, एक तिहाई मामलों में पुरूष तथा एक तिहाई मामलों में या तो दोनों जिम्मेदार होते हैं या इसके कारण स्पष्ट नहीं होते हैं। इस कारण से संतानहीनता केवल महिला से जुड़ी समस्या नहीं है।
मिथक: आईवीएफ बहुत ही कष्टदायक प्रक्रिया है।
तथ्य: आईवीएफ कष्टदायक प्रक्रिया नहीं है, जैसा कि लोग सोचते हैं। इसमें कई इंजेक्शन लेने होते हैं और इसके कारण मरीज को कुछ असुविधा एवं दिक्कत होती है, लेकिन इसके अतिरिक्त मरीज के लिये कोई अन्य कष्टदायक प्रक्रियायें शामिल नहीं है। आईवीएफ के तहत 10 से 14 दिनों के लिये हर दिन एक या दो इंजेक्शन लेने होते हैं। अंडा लेने की प्रक्रिया कष्टदायक हो सकती है, लेकिन यह प्रक्रिया एनीस्थिसिया के तहत की जाती है और इसलिये मरीज को कोई दर्द नहीं होता है। भ्रूण स्थानांतरण की प्रक्रिया भी दर्द रहित प्रक्रिया है।
मिथक: आईवीएफ से होने वाली गर्भावस्था में सम्पूर्ण बेड रेस्ट की जरूरत नहीं होती है।
तथ्य: हालांकि गर्भावस्था के पहले तीन महीनों के दौरान अतिरिक्त सावधानियां बरती जाती है लेकिन ज्यादातर मरीज गर्भावस्था के अंतिम चरण के आने तक नौकरी समेत सभी सामान्य काम काज करती हैं।