ब्रिज कोर्स और मिड लेबल प्रैक्टिषनरों के सरकार के प्रस्ताव की निंदा करते हुए आईएमए ने वेलनेस केन्द्रों में अंडरग्रेजुएट मेडिकल प्रोफेशनल्स के लिए पर्याप्त संख्या में पोस्टिंग उपलब्ध नहीं कराए जाने पर भारत सरकार से जवाब की मांग की है।
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शांतनु सेन ने आज यहां जारी एक विज्ञप्ति में कहा कि देश में डॉक्टरों की कमी नहीं है। भारत में 494 काॅलेजों से 63,250 एमबीबीएस स्नातक निकलते हैं। भारत में पोस्ट ग्रेजुएट प्रैक्टिशनरों के लिए केवल 23,729 सीटें हैं। यह तथ्य है कि सरकार के पास बाकी प्रैक्टिशनरों को नियुक्त करने की क्षमता नहीं है। हर साल युवा मेडिकल स्नातकों में बेरोजगारी बढ़ रही है और यह बहुत ही चिंता का कारण है। अच्छी खासी अंडर ग्रेजुएट डिग्री पाने वाले इन युवाओं की हताशा का समाधान किया जाना जरूरी है।
आईएमए के राश्ट्रीय अध्यक्ष डा. शांतनु सेन ने कहा, ''“सरकार को इस सवाल का जवाब देना होगा कि क्यों हर साल पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में शामिल नहीं किए जाने वाले एमबीबीएस स्नातकों को सरकार रोजगार नहीं दे पाती जबकि इनकी संख्या बहुत अधिक है। बजट की कमी के कारण नए पदों का सृजन नहीं हो पाना तथा नए सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्रों और केन्द्रीय स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना नहीं हो पाना ही इसका मुख्य कारण है। एक के बाद एक करके आने वाली सरकारों की ओर से स्वास्थ्य पर जो खर्च होता है वह जीडीपी का मात्र 1.1 पर ही स्थिर रहता है और यह देष में स्वास्थ्य सेवाओं की निराषाजनक स्थिति का एक मुख्य कारण है। आईएमए 1,50,000 वेलनेस केंद्रों में युवा मेडिकल स्नातकों की सुविधा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अगर, दूसरी तरफ सरकार दंत चिकित्सकों, नर्सों, फार्मासिस्टों, ऑप्टोमेट्रिस्ट फिजियोथेरेपिस्टों और आयुष चिकित्सकों को मिड लेब प्रैक्टिशनरों में बदले पर जोर देती है तो आईएमए के पास सरकार के इस तरह के दुस्साहसिक फैसले का पुरजोर विरोध करने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाएगा।''
उन्होंने कहा कि चिकित्सा के प्रत्येक संबद्ध पेशे की एक विशिष्ट पहचान है और उनका एक विशिष्ट उद्देश्य है। दंत चिकित्सकों, नर्सों, ऑप्टोमेट्रिस्टों और फार्मासिस्टों की भूमिका है और उन्हें संबंधित क्षेत्रों में अपनी सेवाओं में योगदान देना चाहिए। इस अवधारणा का उल्लंघन करने वाली हर सरकार अपनी उथली विचार प्रक्रिया को उजागर करती है और ऐसा करके वह मानव जीवन की उपेक्षा करती है।
आईएमए ने मीडिया को जारी वक्तव्य में ब्रिज कोर्स एवं मिड लेबल पै्रक्टिषनरों के सरकार के प्रस्ताव की निंदा की।
आईएमए के मानद महासचिव डा. आर वी अशोकन ने कहा, ''सरकार मिड लेबल प्रैक्टिशनरों के जरिए देश के नागरिकों को आधी - अधुरी चिकित्सा सेवा प्रदान करने की कोषिष कर रही है और सरकार का यह प्रयास अत्यधिक खतरनाक है। सरकार को 1,50,000 वेलनेस सेंटरों में एमबीबीएस ग्रेजुएट्स को स्थायी पोस्टिंग प्रदान करनी चाहिए। एडहॉक पोस्टिंग अस्वीकार्य है और यह इन असहाय युवा स्नातकों के क्रूर शोषण के अलावा कुछ और नहीं है। छह महीने के ब्रिज कोर्स के माध्यम इन्हें मिड लेबल के मेडिकल प्रैक्टिषनरों के रूप में को मध्य-स्तरीय चिकित्सा चिकित्सकों के रूप में पहचान प्रदान किया जाना मरीजों की सुरक्षा और मरीज की चिकित्सा की अनदेखी किए जाने के समान है।
आईएमए कार्य समिति के अध्यक्ष डा. ए मार्तडा पिल्लई ने कहा, ''भोरे समिति ने 1946 में मिड लेबल मेडिकल प्रैक्टिशनरों को खत्म कर दिया था और चिकित्सा की प्रैक्टिस के लिए बुनियारी स्तर की योग्यता के रूप में एमबीबीएस को मान्यता प्रदान की थी जबकि उन दिनों चिकित्सा संसाधनों की बहुत अधिक कमी थी। अगर सरकार ब्रिज कोर्स एवं मिड लेवल प्रैक्टिषनों की अवधारणा को लागू करती है तो इसके विरोध में देशव्यापी आंदोलन होगा। हम इस बात पर जोर देना चाहते हैं कि हेल्थ केयर के प्रति खंडित दृष्टिकोण को खत्म किया जाना चाहिए और और स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों का समाधान किया जाना चाहिए।
आईएमए ने एमबीबीएस स्नातकों की नियुक्ति की मांग
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