ट्रांस फैटी एसिड को भारतीय आहार से निकाला जाए


  • उपभोक्ता संगठन ''कंज्युमर वाॅयस'' ने स्वास्थ्य मंत्रालय और एफएसएसएआई से 2021 तक भारतीय खाद्य से ट्रांस फैटी एसिड हटाने के लिए कदम उठाने की अपील की।

  • हृदय रोगों के प्रकोप को कम करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय को तत्काल इस बारे में अधिसूचना जारी करनी चाहिए: कंज्युमर वाॅयस


नई दिल्ली, 22 अक्टूबर: हमारे देश के लोगों के खान-पान में मौजूद ट्रांस फैटी एसिड हृदय की धमनियों में रूकावट पैदा करते हैं जिसके कारण हृदय रोग, मधुमेह और उच्च रक्त चाप जैसी बीमारियां होती हैं और इसे देखते हुए देश के प्रमुख उपभोक्ता संगठन ''कंज्युमर वाॅयस'' ने सरकार से 2021 तक भारतीय भोजन से फैटी एसिड को खत्म करने की अपील की है। सरकार ने भारतीय भोजन से ट्रांस फैटी एसिड को खत्म करने के लिए 2022 की समयसीमा निर्धारित की है लेकिन दिल्ली स्थित उपभोक्ता संगठन कंज्युमर वाॅयस का कहना है कि सरकार को इस समयसीमा को एक साल घटाकर 2021 कर देने पर विचार करना चाहिए। 



स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री श्री हर्षवर्धन को दिए गए एक ज्ञापन में, कंज्युमर वाॅयस (उपभोक्ता शिक्षा के लिए कार्यरत स्वैच्छिक संगठन) ने कहा कि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को भारतीय भोजन से ट्रांस फैटी एसिड को हटाने के लिए निर्धारित 2022 की समयसीमा को घटाकर 2021 करना चाहिए। 
एफएसएसएआई के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन के अनुसार, 01 जनवरी, 2021 से वसा और तेलों में ट्रांस-वसा की मात्रा वजन के हिसाब से 3 प्रतिषत से अधिक नहीं होगी और 01 जनवरी, 2022 से इसकी मात्रा वजन के हिसाब से 2 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के ''जागो ग्राहको जागो'' कार्यक्रम के तहत काम करने वाले उपभोक्ता संगठन ''कंज्युमर वाॅयस'' के मुख्य परिचालन अधिकारी श्री आशिम सान्याल ने कहा कि भारतीय भोजन में मौजूद ट्रांस-वसा हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, टाइप -2 मधुमेह और मोटापा जैसी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए जिम्मेदार हैं। “उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए, भारतीय भोजन से ट्रांस-फैट को जल्द से जल्द समाप्त किया जाना चाहिए। ट्रांस-फैट के खिलाफ दुनिया भर में तेजी से अभियान चलाए जा रहे हैं और इसलिए हमारी मांग है कि एफएसएसएआई 2021 तक भारतीय भोजन को ट्रांस-फैटी एसिड से मुक्त बनाने के लिए तत्काल अधिसूचना लाए। 
विश्व स्तर पर, ट्रांस-वसा के सेवन के कारण हर साल हृदय रोग से पांच लाख से अधिक लोगों की मौत होती है। भारत में, प्रतिवर्ष 77 हजार से अधिक मौतें ट्रांस-वसा के सेवन के कारण होती है। मौतों का यह आंकडा दुनिया में सबसे अधिक है।
खाद्य पदार्थों में प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों तरह से ट्रांस फैटी एसिड मौजूद होते हैं। प्राकृतिक ट्रांस-वसा, कुछ जानवरों के उत्पादों और दूध में बहुत कम मात्रा में मौजूद होते हैं और इन्हें हानिकारक नहीं माना जाता है, लेकिन औद्योगिक रूप से उत्पादित कृत्रिम ट्रांस-वसा के कारण हानिकारक कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) में वृद्धि होती है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल) में कमी होती है। कृत्रिम ट्रांस वसा वनस्पति तेल में हाइड्रोजन को मिलाकर बनाया जाता है। कृत्रिम वसा मुख्य तौर पर वनस्पति तेल, मार्जरीन, बेकरी उत्पाद, और बेक किए हुए एवं तले हुए खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं।



श्री सान्याल ने कहा कि उपभोक्ता वॉयस ने भी इस मुद्दे की ओर स्वास्थ्य मंत्री का ध्यान आकर्षित करने और तत्काल निर्णय लेने के लिए आठ सूत्रीय मांग पत्र प्रस्तुत किया है। इन मांगों में खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य उत्पाद मानक और एडिटिव्स) विनियम, 2011 में ट्रांस वसा की सीमा को निर्धारित करने के लिए संषोधन तथा खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग और प्रदर्शन) विनियम 2019 की षीघ्र अधिसूचना लाए जाने की मांग शामिल है।
इसके अलावा, खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य उत्पाद और मानक और एडिटिव्स) विनियम, 2011 में वसा, तेल और ''सभी खाद्य उत्पादों'' के लिए ट्रांस-वसा की सीमा 2 प्रतिषत निर्धारित होनी चाहिए। इसके अलावा 5 प्रतिशत के वर्तमान विनियम को लागू करने के लिए नियमित निगरानी परीक्षण होने चाहिए तथा कार्यान्वयन प्रक्रिया में पारदर्षिता सुनिश्चित होनी चाहिए तथा परीक्षण आंकड़ों (5 प्रतिषत, 3 प्रतिशत एवं 2 प्रतिषत) को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सार्वजनिक किया जाना चाहिए। 
मांग पत्र में ट्रांस-फैट-फ्री (2 प्रतिशत) उत्पादों के लिए एक नए लोगो की शुरूआत तथा पैक किए गए खाद्य उत्पादों पर भ्रामक ''नो ट्रांस वसा'' के दावों पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग की गई है। सभी प्रकार के भ्रामक दावों वाले पैकेज्ड खाद्य पदार्थों के विज्ञापनों एवं मार्केटिंग पर सख्त निगरानी भी होनी चाहिए।
श्री सान्याल ने कहा कि राज्य स्तर पर सख्त कार्यान्वयन होना चाहिए। इसमें आवश्यक बुनियादी ढाँचा तंत्र (लैब और तकनीशियन), संस्थागत तंत्र और अनिवार्य मूल्यांकन रिपोर्ट शामिल हैं। इसके अलावा, राज्य के खाद्य आयुक्तों और खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को ट्रांस फैट नियमन के कार्यान्वयन के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए और नियमों के कार्यान्वयन में अधिक सक्षम बनाया जाना चाहिए।