आंखें कुदरत की अनमोल वरदान हैं। आंखें सबसे बड़ी नेमत हैं। अगर आंखों न होती तो इस दुनिया में क्या रखा होता। इस दुनिया की सारी खूबसूरती हमारी आंखों की बदौलत है जो खुद इतनी खूबसूरत हो सकती है कि किसी पर जादू कर दे। आंखें चेहरे के सौंदर्य का आधार हैं। काली कजरारी आंखें, झील से गहरी आंखें, नीले गगन सी आंखें, बिल्लौरी आंखें, मदभारी शराबी आंखों इस धरती के सबसे कीमती, सबसे खूबसूरत और बेहतरीन नगीने हैं।
कुदरत ने इन आंखों को केवल देखने की शक्ति ही नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की क्षमता भी दी है। इसलिये तो आंखों को दिल की जुबान कहा गया है। आंख कुछ बोले बगैर भी सब कुछ बोल देती हैं। आंखों की अभिव्यक्ति की यह क्षमता कथकली जैसी उत्कृष्ट नृत्य कला का आधार है। हमारी भाव भंगिमा आंखों पर ही आधारित है।
हम अपनी आंखों को सजाने, संवारने के लिए तरह-तरह के जतन करते हैं। आंखों को सुंदर बनाने के लिए काजल लगाने का तरीका प्राचीन काल से चला आ रहा है। लेकिन आज कॉस्मेटिक कांटैक्ट लेंस का इजाद हो चुका है जिसकी बदौलत आंखों को मनचाहा रंग दिया जा सकता है। अगर आप अपने भूरे रंग की आंखों से संतुष्ट नहीं हैं तब अपने मनचाहे रंग वाले कांटेक्ट लेंस लगा कर आंखों को मनचाहा आकर्षण एवं सौंदर्य प्रदान कर सकते हैं। आप चाहें तो हर दिन आंखों का रंग बदल सकते हैं। अगर आप हाई सोसायटी के हैं तो आप हर दिन अपनी आंखों को अपनी पसंद का रंग देना चाहेंगे। कॉस्मेटिक कांटेक्ट लेंसों की बदौलत काली कजरारी, गहरी व हल्की नीली, भूरी, एवं हल्की भूरी, बिल्लौरी आसमानी आंखों पायी जा सकती हैं। फैशन, ब्यूटी तथा प्रतिस्पर्धा के आज के युग में
फैशन, ब्यूटी तथा प्रतिस्पर्धा के आज के युग में आधुनिक पीढ़ी युवक, युवतियों की आंखों में निहित सुंदरता एवं सफलता को जान लिया है और वे आंखों को खूबसूरत बना कर अपने व्यक्तित्व को निखारने की कोशिश करने में किसी से पीछे नहीं रहना चाहते। लेकिन कुदरत ने कुछ लोगों की आंखों में ऐसे नुक्श छोड़ दिये हैं जिनके कारण उनकी आंखों को चश्में की बैशाखी की जरूरत पड़ जाती है जिसके कारण उनकी आंखों की खूबसूरती नहीं बल्कि मानों उनका व्यक्तित्व ही चश्में में दब सा जाता हैइन नुक्श के कारण व्यक्ति को पास या दूर अथवा पास एवं दूर दोनों की चीजें साफ नहीं दिखती। इन्हें मायोपिया एवं
हाइपरमेट्रोपिया कहा जाता है। इसके लिये व्यक्ति को चश्मा लगाने की जरूरत पड़ जाती है। लेकिन फैशन एवं प्रतिस्पर्धा के युग में यह चश्मा अक्सर सुदरता और सफलता के मार्ग में बाधक बन जाता है। मृदुला पेशे से मॉडल है लेकिन अपने दृष्टिदोष के कारण नहीं चाहकर भी चश्मा पहनने को मजबूर है। वह कहती है चश्में के बगैर मैं इस दुनिया को नहीं और चश्में के कारण दुनिया मुझे नहीं देख सकती। मोनिका को मिस इंडिया बनने की तमन्ना है लेकिन अपने दृष्टि दोष के कारण वह अपने इस सपने को मन में ही कुचल देती है। विवेक पायलट बनना चाहता था लेकिन वह पायलट बन नहीं सकता क्योंकि मायोपिया नामक इस दृष्टि दोष के कारण उसे चश्मा पहनना पड़ता है।
हालांकि आधुनिक चिकित्सा तकनीकों के कारण इन दृष्टि दोषों का इलाज कराकर चश्में से मुक्ति पाना संभव हो गया है। कांटेक्ट लेंस इनसे उबरने का सस्ता और सुरक्षित साधन है। इन कांटैक्ट लेंसों को सोने से पहले उतारना
इन कांटैक्ट लेंसों को सोने से पहले उतारना और जागने पर आंखों में चिपकाना पड़ता है। कई लोगों के लिये ऐसा करना परेशानी का कारण होता है। इसके अलावा कांटैक्ट लेंस के कारण आंखें में संक्रमण होने का भी खतरा रहता है। आधुनिक तकनीक ने इस परेशानी का भी हल पेश किया है। यह हल एक्जाइमर एवं लै सिक लेजर के रूप में सामने आया है। इसके विकास से पहले आंखों में हीरे की चाकू से चीरे लगाकर चश्में से मुक्ति दिलायी जाती थी। लेकिन अब आंखों में किसी तरह के चीरे लगाने की जरूरत नहीं रही। नयी दिल्ली के प्रसिद्व नेत्रा चिकित्सक डा. संजय चौधरी का कहना है कि लै सिक लेजर को दुनिया भर में चश्में से मुक्ति दिलाने वाली सर्वश्रेष्ठ तकनीक के रूप में स्वीकारा गया है और लाखों लोगों ने इसका फायदा उठाया है।
नयी दिल्ली के दरियागंज स्थित चौधरी आई सेंटर एवं लेजर विजन में सैकड़ों लोगों को चश्मे से छुटकारा दिलाकर उनकी सुदरता एवं सफलता के सपने को सरकार करने वाले डा. संजय चौधरी का कहना है कि नयी पीढ़ी के लोग इस तकनीक का विशेष तौर पर फायदा उठा रहे हैं। कई लोग चश्में से मुक्ति पाने के बाद वर्षों से दबी कुठा से भी मुक्ति पा लेते हैं। उनमें आत्म विश्वास आ जाता है।