कैसा है फैशन का आपके मानसिक स्वास्थ्य पर असर


 


आज हर तरफ भागमभाग और प्रतियोगी बनकर सब लोग दौड़ रहे हैं। हर किसी को शॉटकर्ट तरीके से आगे निकलना है। संयुक्त परिवार से अलग होकर छोटे-छोटे घरों में लोग शिफ्ट हो रहे हैं। बच्चे शिक्षा और युवा रोजगार के लिए दूर जा रहे हैं। परिवार में संस्कार परंपरा बंधन की डोर शिथिल हो गई है। महिलाओं, बड़े बुजुर्गों के प्रति आदर भाव कम हो रहा है और सबसे बड़ी बात यह है कि लोग इंसानियत को भूलकर स्वार्थप्रवृत्ति के हो रहे हैं।


हम सब सुबह सुबह दिन के लिए तैयार होते हैं। दिन के लिए कपड़े बदलने का काम कोई यूं ही तो कोई ज्यादा सोच समझ कर करता है। लेकिन जाने अनजाने जैसे भी आप ये करते हैं - होता ये है कि आपके कपड़े आपके बारे में बाहर की दुनिया से बिना बोले कुछ बता रहे होते हैं फैिशन को खुद को व्यक्त करने का एक तरीका माना जाता है। कई बार इससे हमारी पहचान जुड़ जाती है तो कई बार उससे हमारा मूड भी प्रभावित होता है। हर दिन हम जो कपड़े पहनते हैं वे दिखाते हैं कि हम खुद को कैसे देखते हैं और बाकी लोगों को अपनी कैसी छवि दिखाना चाहते हैं। इससे भी बढ़कर पाया तो ये गया है कि कपड़े हमारे ज्ञान संबंधी कौशल पर भी असर डालते हैं। सन 2012 में अमेरिका के नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने पाया कि कुछ खास चीजें पहनने से पहनने वाले के सोच और प्रदर्शन पर असर पड़ता है। रिसर्चर इस नतीजे पर पहुंचे कि कपड़ों का अपना एक सांकेतिक अर्थ होता है। जब हम एक खास अर्थ वाले कपड़ों को पहनते हैं तो उससे हमारी मनोदशा पर भी असर पड़ता है। इसे 'एनक्लोद्ड कॉग्निशन' कहा गया। उदाहरण के तौर पर, एक लैब कोट को बुद्धिमत्ता और वैज्ञानिक सोच के साथ जोड़ कर देखा जाता है। अपने रिसर्च में उन्होंने पाया कि जब कोई इंसान किसी विशेष काम को करने से पहले ऐसा लैब कोट पहनता है तो कोट से जुड़े ये मूल्य पहनने वाले के प्रदर्शन पर सकारात्मक असर दिखाते हैं। स्टडी में पाया गया कि जो कपड़ों से जुड़े ऐसे मानसिक असर को मापा भी जा सकता है। सुबह सुबह कपड़े चुनना कभी कभी बड़ी चुनौती जैसा लग सकता है।


लंदन कॉलेज ऑफ फैशन से एप्लाइड साइकोलॉजी में मास्टर्स डिग्री ले चुकी कैमी एब्राहम बताती हैं, 'यह प्रयोग दिखाता है कि कपड़े कैसे हमारी एकाग्रता, दक्षता और अपने बारे में हमारी सोच को प्रभावित करते है।' जाहिर है कि अगर इसका अच्छा असर पड़ता है तो बुरा भी पड़ता होगा। इस बारे में एब्राहम कहती हैं, 'अगर किसी खास कपड़े को नकारात्मक चीजों से जोड़ कर देखा जाता है तो आपकी मानसिक दशा पर भी उनका वैसा ही असर पड़ेगा।' इस तरह 'एनक्लोद्ड कॉग्निशन' असल में दोनों तरह से काम करती है। जिन दिनों हम अंदर से अच्छा महसूस नहीं कर रहे हैं उन दिनों सही कपड़े हमें बेहतर महसूस करवा सकते हैं और एक कवच की तरह काम आ सकते हैं। लेकिन कई बार ऐसी मानसिक स्थिति में लोगों के लिए सही कपड़ों के बारे में सोचना तक मुश्किल हो जाता है। ऐसे में कुछ लोग किसी दूसरे व्यक्ति की स्टाइल की नकल करने की कोशिश करते हैं लेकिन फिर काफी असहज महसूस करने लगते हैं। फैशन के बारे में लिखने वाली पत्रकार एब्राहम बताती हैं कि ऐसा 'कॉग्निटिव डिजोनेंस' और फैशन के बीच के संबंध के कारण होता 'कॉग्निटिव डिजोनेंस' का मतलब है ऐसी मानसिक प्रक्रिया 'कॉग्निटिव डिजोनेंस' का मतलब है ऐसी मानसिक प्रक्रिया जहां हमारे अपने मूल्यों के साथ मेल ना खाने वाला कोई काम करने से मानसिक परेशानी महसूस होती है। इससे उबरने के लिए या तो हम ऐसा कोई काम करना बंद कर सकते हैं या फिर अपने आपको ये समझा सकते हैं कि भले ही वह निजी मूल्यों से मेल ना खाता हो हम करना वही चाहते हैं। कपड़ों से जुड़े मामले में या तो जो आपको सूट नहीं कर रहा वह आप कभी नहीं पहनेंगे या फिर निर्णय लेंगे कि वही पहनना है। एब्राहम बताती हैं, 'जब आपको समझ आता है कि कोई स्टाइल आपके विचारों, मूल्यों और आस्थाओं से मेल नहीं खाते तो मानसिक रूप से आप बेचैन हो जाते हैं और अपनी स्टाइल बदल कर वो बेचैनी दूर करने की कोशिश करते हैं। इसीलिए आप जिन कपड़ों में आर । म महसूस करते हैं - बार बार वही पहनना चाहते या फिर, खुद को मना लेते हैं कि जिस अलग अंदाज के कपड़ों को आपने पहना है असल में उनकी मदद से आप अपने व्यक्तित्व के किसी नए पहलू को सामने लाना चाहते हैं। अब सवाल ये उठता है कि क्या आपको वैसे कपड़े पहनने चाहिए जैसा आप महसूस कर रहे हैं या फिर वैसे कपड़े जैसा आप महसूस करना चाहते हैं? इस विषय की एक्सपर्ट एब्राहम बताती हैं, 'मेरे हिसाब से आपको वैसे कपड़े पहनने चाहिए जैसा आप महसूस करना चाहते हैं। ऐसी कोशिश करनी चाहिए कि आप इस पर फोकस करें कि आप कैसा महसूस करना चाहेंगे।' ऐसा करने से बाहरी दुनिया को आपके बारे में पॉजिटिव संदेश जाता है।