अधिक उम्र में मां बनने का खतरनाक चलन

आज के समय में कई तरह की खतरनाक प्रवृतियां सामने आ रही हैं जिनमें से एक प्रवृति यह है कि आज महिलाएं मीनोपॉज होने के बाद नई प्रजनन तकनीकों का सहारा लेकर मां बन रही हैं। हाल ही में ऐसी रिपोर्टें सामने आई कि 74 साल और 70 साल की महिलाओं ने आईवीएफ के जरिए शिशुओं को जन्म दिया और इससे आईवीएफ तकनीक के गलत इस्तेमाल का संगीन मुद्दा सामने आया। 
डॉ. ज्योति बाली ने मातृ आयु और आईवीएफ तकनीक के दुरुपयोग के मुद्दे के बारे में बताया कि जीवन के तीसरे, चौथे, 5 वें और अब छठे दशक तक प्रसव में देरी करने वाली महिलाओं का अनुपात शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहा है।
डॉ. ज्योति बाली बेबीसन फर्टिलिटी एंड आईवीएफ सेंटर की मेडिकल डायरेक्टर हैं और साथ ही दिल्ली चैप्टर, इंडियन सोसायटी ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्शन और दिल्ली गायनकोलॉजी फोरम की सेक्रेटरी हैं तथा नेशनल वुमन विंग, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ज्वाइंट सेक्रेटरी हैं।



इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि यह एक आम भ्रामक धारणा है कि प्राकृतिक प्रजनन क्षमता की भरपाई आईवीएफ द्वारा की जा सकती है। उम्र बढ़ने के साथ बांझपन में प्राकृतिक गिरावट होती है। लेकिन जानकारी की कमी और इसकी बढ़ती लोकप्रियता दोनों के कारण बड़ी उम्र में मां बनने की यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है यह होने वाले बच्चे और मां दोनों के लिए उचित नहीं है साथ ही प्रजनन विशेषज्ञों के लिए भी चुनौतीपूर्ण होता है।ऐसे में इस समस्या से बचने का एक मात्र उपाय है कि आप क्रायोप्रिजर्वेशन तकनीक का इस्तेमाल करके अपने अण्डाणुओं को फ्रीज करवा के रख ले। जिसे बाद में इस्तेमाल किया जा सकता है। 35 वर्ष की आयु क्रायोप्रिजर्वेशन के लिए उचित समय है। हालांकि फिर भी हम छठे दशक में जाकर गर्भधारण करने और करवाने की गलत प्रैक्टिस का पूरी तरह से विरोध करते हैं। आई सी एम आर गाइडलाइन के मुताबिक 50 वर्ष की आयु तक ही गर्भधारण किया जाना चाहिए। इससे अधिक आयु में गर्भ धारण करना अवैध है।