मरीजों की खुशी में ही है अपनी खुशी : डा. आर. एन. कालरा


डा. आर. एन. कालरा प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ हैं। उन्होंने 1990 में नई दिल्ली के कीर्ति नगर में कालरा हास्पीटल की स्थापना की। इस अस्पताल की खासियत केवल यह नहीं है कि यहां ह्रदय रोगियों को कम खर्च में विश्व स्तरीय सुविधाएं प्रदान की जाती है बल्कि मुख्य खासियत यह है कि इस अस्पताल की आर से हर सप्ताह दिल्ली और एनसीआर में निःशुल्क मेडिकल चेकअप कैम्प आयोजित किया जाता हैं जिनके जरिए अब तक करीब डेढ लाख से अधिक मरीजों का इलाज किया जा चुका है। इसके अलावा अस्पताल में हर दिन एक घंटे की फ्री ओपीडी लगाई जाती है। अस्पताल की ओर से उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं तथा देश में उपलब्ध ह्रदय रोग के इलाज की सुविधाओं एवं समस्याओं के बारे में डा. आर. एन. कालरा से हुई बातचीत के अंश पेश है।
आपने कालरा हास्पीटल की शुरूआत कैसे और कब की?
1981 से कार्डियोलॉजिस्ट के रूप में प्रैक्टिस कर रहा हूं। 1990 में यह अस्पताल कीर्ति नगर में खुला जो उस समय यह 25 बेड का हास्पीटल था जो धीरे-धीरे बढ़कर 150 बेड का अस्पताल हो गया है जहां यहां हर तरह की बीमारियों का इलाज होता है। यहां कार्डिएक सर्जरी, एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी जैसी हर तरह की सर्जरी की सुविधाएं उपलब्ध है। 1991 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति ने कैथ लैब का उद्घाटन किया। उस समय दक्षिण पश्चिमी दिल्ली में यह एकमात्र अस्पताल था जहां यह कैथ लैब शुरू किया गया। मैं अब तक 11 हजार से अधिक एंजियोग्राफी और 5 हजार से अधिक एंजियोप्लास्टी कर चुका हूं। हमारे अस्पताल में कार्डियोलॉजी के अलावा गाइनी, आर्थोपेडिक, आप्थेलमोलॉजी आदि सभी विशेषज्ञताओं में अत्याधुनिक सर्जरी एवं चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध है।
चिकित्सा सुविधाओं को आम लोगों खास तौर पर गरीब लोगों तक पहुंचाने के लिए आपके अस्पताल की ओर से क्या पहल की जाती है?
हमारे अस्पताल की आर से हर सप्ताह दिल्ली और एनसीआर में निःशुल्क मेडिकल चेकअप कैम्प आयोजित किया जाता हैं जिनके जरिए हमने अब तक करीब डेढ लाख से अधिक मरीजों का इलाज किया जा चुका है। इन कैम्पों में जहां तक हो सकता है हम मरीज का पूरी तरह से निःशुल्क इलाज करते हैं। जो मरीज कैम्प में निःशुल्क सलाह लेने आते हैं उनसे हमारा रिश्त केवल कैम्प तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि बाद में भी जो मरीज कैम्प के कार्ड लेकर हमारे पास आगे के इलाज के लिए आते हैं उनका हम अस्पताल में भी निःशुल्क इलाज करते हैं। इसके अलावा हम 9 से 10 बजे तक अस्पताल में फ्री ओपीडी लगाई जाती है। जो लोग इलाज का पूरा खर्चा बर्दाशत नहीं कर सकते उनका हम काफी रियायती दर पर अथवा जरूरी होने पर नि:शुल्क इलाज करते हैं। चिकित्सा कैम्प लगाने के लिए हमसे कई संस्थाएं, संगठन, मंदिर या गुरूद्वारा प्रबंधक एवं आरडब्ल्यूए संपर्क करते हैं। इसके अलावा हम भी गुरूद्वारों, आरडब्ल्यूए और अन्य संस्थाओं से संपर्क करते हैं और जगह-जगह चिकित्सा कैम्प लगाते हैं।


टर्शियरी केयर के क्षेत्र में आपका अस्पताल क्या कदम उठा रहा है?
पहले मरीज अपने आस-पास के डाक्टर के पास या निकट के अस्पताल में इलाज के लिए जाते हैं। वहां अगर इलाज नहीं हो पाता है तो मरीज हमारे पास या अन्य सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में जाते हैं। हमारे यहां क्रिटिकल केयर के लिए काफी मरीज आते हैं, जिनका अन्य जगहों पर समुचित इलाज नहीं हो पाता। जो मरीज बहुत ही क्रिटिकल मरीज आते हैं और हमारे पास उनके इलाज के लिए हर सुविधाएं, तकनीकें एवं डाक्टर उपलब्ध हैं। हमारे पास आधुनिकतम तकनीकें एवं मषीनें हैं किन्तु चिकित्सा विज्ञान की कोई सीमा नहीं है। आज तेजी से तकनीकों का विकास हो रहा है और रोज ही नई मशीनों का इजाद हो रहा है। नई मशीनें लगाने के लिए काफी फंडिंग की जरूरत होती है। हालांकि हमारे पास काफी सारी आधुनिक तकनीकें एवं मशीनें उपलब्ध है और साथ ही साथ हम नई मशीनें भी खरीदने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे पास हार्ट केयर की कुछ बहुत ही एडवांस मशीनें नहीं है लेकिन मैं उन्हें लगाना चाहता हूं ताकि हम लोगों की बेहतर तरीके से सेवा कर सकें। ताकि लोगों को यहां से कहीं बाहर नहीं जाना पड़े।
गांवों में बेहतर चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है। गांवों में चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए आपका क्या सुझाव है?
गांव में अच्छे डाक्टर इसलिए नहीं जाना चाहते क्योंकि गांवों में ऐसे समुचित अस्पतालों एवं चिकित्सा केन्द्रों का अभाव है जहां वे मरीजों का वे समुचित तरीके से इलाज कर सकें और अपनी चिकित्सकीय योग्यता एवं कुशलता का पूरा-पूरा उपयोग कर सकें। जो भी प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर हैं वे बहुत खराब स्थिति में है जहां बुनियादी सुविधाएं भी नहीं है। सरकार को गांवों में बड़े सर्जिकल सेंटर एवं चिकित्सा केन्द्र खोलने के लिए पहल करनी चाहिए। अगर सरकार खुद ऐसे सेंटर खोल नहीं सकती तो प्राइवेट क्षेत्र को इस दिशा में आगे आने के लिए प्रेरित करना चाहिए और उन्हें इसके लिए जरूरी सुविधाएं एवं रियायतें प्रदान करनी चाहिए ताकि वे गांवों में अथवा दूरदराज के क्षेत्रों में बड़े चिकित्सा संस्थान खोल सकें। सरकार पीपीपी मॉडल को बढ़ावा दे सकती है। सरकार अगर कम ब्याज पर उपकरणें खरीदने की सुविधा दे या कम ब्याज पर लोन दे तो हम भी इस दिशा में आगे बढ़ने को तैयार हैं।
पहले की तुलना में चिकित्सा के क्षेत्र में किस तरह का अंतर आया है?
पहले की तुलना में आज यह अंतर आया है कि पहले मरीज डाक्टर पर विष्वास करते थे। डाक्टर को भगवान मानते थे। पहले हम मरीज को जो सुझाव देते थे उसे दिल से मानते थे। पहले हम मरीज को उसकी बीमारी बताते नहीं थे और जो भी सुझाव देते थे उसका पालन करते थे। उस समय मरीज आम तौर पर कोई सवाल नहीं करते थे। आज यह सही है कि जागरूकता बढ़ी है और यह अच्छी बात है लेकिन आज मरीजों का डाक्टर पर से विष्वास खत्म हो गया है। आज कई लोग इंटरनेट पर किसी बीमारी के बारे में पढ़कर अपने को डाक्टर ही समझने लगते हैं। वे डाक्टर से बहस करने लगते हैं। एक डाक्टर ने सालों की मेहनत लगाई होती है उसके पास सालों का अनुभव होता है जबकि कोई इंटरनेट पर ह पढ़कर अपने को डाक्टर समझने लगता है। मेडिसीन बहुत ही व्यापक विषय है और इंटरनेट से इतने विशाल विषय का ज्ञान नहीं लिया जा सकता है। हमने वर्षों की रातों की नींद खराब की, अपना सोशल और पारिवारिक लाइफ खराब किया ताकि हम चिकित्सा का ज्ञान, कौशल एवं अनुभव हासिल कर सकें। यह इंटरनेट पर पढ़कर हासिल नहीं होता है।


आज काफी संख्या में डाक्टर विदेश जा रहे हैं। इसके क्या कारण है। यहीं नहीं जो लोग उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाते हैं वे वहीं बस जाते हैं और वहीं डाक्टरी की प्रैक्टिस करने लगते हैं। ऐसा क्यों होता है?
जो लोग खर्च उठा सकते हैं वे अपने बच्चों को विदेश पढ़ने को भेजते हैं और उनके बच्चे विदेशों में ही नौकरी करने लगते हैं। इसके अलावा जो बच्चे यहां से पढ़कर बाहर चले जाते हैं वे लौटकर वापस नहीं आते क्योंकि उन देशों में उनके काम के बदले उन्हें समुचित सम्मान और काम के बदले सुकून मिलता है। यहां काम करते हैं लेकिन उसके बदले सम्मान और सकून नहीं मिलता। विकसित देशों में ईमानदारी से काम कीजिए और आपको कोई दिक्कत या टेंषन नहीं है। कोई झंझट नहीं है। जबकि हमारे यहां आप ईमानदारी से और मेहनत से काम करने का कोई सम्मान नहीं है। यहां काम करने के साथ सुकून नहीं है। टेंशन ही टेंशन है। रोज घर से प्रार्थना करके निकलता हूं कि आज का दिन ठीक से गुजरे। बाहर के देशों में होता है कि वे पूरी तसल्ली से काम करते हैं और काम खत्म करके शांति के साथ घर जाते हैं।
आप अपने यहां उपलब्ध सेवाओं के बारे में लोगों तक कैसे जानकारी पहुंचाते हैं?
कानून के अनुसार एक डाक्टर अपना प्रचार नहीं कर सकता है लेकिन नीम हकीम अपना प्रचार कर सकता है। हम पास जो सुविधाएं और विशेषज्ञता है उसका हम प्रचार नहीं कर सकते और न ही करते हैं। हमारे बारे में लोगों को मरीजों से पता चलता है। अगर हम मरीजों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करें तथा मरीज हमारी सेवा से संतुष्ट और प्रसन्न हो तो हमारा प्रचार अपने आप हो जाता है। हम अन्य मरीजों तक पहुंचने के लिए निःशुल्क चिकित्सा शिविरों का आयोजन करते हैं और अपने अस्पताल में निःशुल्क ओपीडी आयोजित करते हैं।
प्राइवेट अस्पतालों में कम खर्च में बेहतर चिकित्सा सुविधाएं मिले, इसके लिए आपके क्या सुझाव हैं?
प्राइवेट अस्पतालों में इलाज का खर्च कम हो सकते हैं बशर्ते सरकार भी इस दिशा में कदम उठाए। अगर हम पर टैक्स कम लगे या नहीं लगे, मशीनें कम ब्याज पर मिले या मशीनें खरीदने के लिए सरकार की ओर से वित्तीय मदद मिले, बिजली आदि रियायती दर पर मिले तो निश्चित ही निजी अस्पतालों में चिकित्सा का खर्च कम हो सकता है। हम क्वालिटी केयर के साथ समझौता नहीं कर सकते। हमें पेमेंट की चिंता नहीं है लेकिन हम मरीजों को कम गुणवत्ता वाली चिकित्सा सेवा प्रदान नहीं कर सकते। हम खर्च घटाने के लिए चिकित्सा सेवा में कटौती नहीं कर सकते है। इससे न केवल मरीजों की जान के साथ खिलवाड होगा बल्कि यह नैतिक रूप से भी गलत होगा।
आप चिकित्सक कैसे बने। क्या आप चिकित्सक ही बनना चाहते थे?
हमने अपने पारिवारिक एवं सोशल लाइफ को सैकरिफाइस कर रखा है। पहले मरीज की खुशी, उसके बाद हमारी खुशी। मेरा ज्यादातर समय मरीजों के साथ ही निकल जाता है। मैं इंजीनियर बनना चाहता था। मेरे पिता का लेदर का कारोबार था। 11 वीं की पढ़ाई जब कर रहा था तो। मेरा गणित से बहुत लगाव था। लेकिन पिताजी ने कहा कि तुम मेडिकल में जाने की कोषिष करो। मैंने कहा कि मुझे मेडिकल नहीं होगा। उस समय मैं अपने पिताजी को मना नहीं कर पाया। पिताजी का सोचना था कि मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद मैं उनका काम संभाल लुंगा। जब मैंने दो-साल मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर ली तो पिताजी ने कहा कि तुम मेरे बिजनेस में आ जाओ। मैंने कहा कि अग मैं मेडिकल की पढ़ाई पूरी करके डाक्टर ही बनुंगा। मेंरा अब इसमें मन लग गया है और मैं इसे पूरा करके ही दम लुंगा। फिर पिताजी भी मान गए और मैंने चिकित्सा की पूरी शिक्षा लेकर चिकित्सक बना।
चिकित्सक के रूप में आपको सबसे अधिक संतुष्टि और खुशी कब मिलती है?
डाक्टर के रूप में मुझे पैसे की चिंता नहीं है। मैं यह नहीं देखता कि मरीज से कितने पैसे आए या नहीं आए। मेरी चिंता यह है कि मरीज को समुचित चिकित्सा मिली या नहीं मिली और उसे हमारी चिकित्सा से लाभ हुआ या नहीं। यही सभी चिकित्सकों का ध्येय होता है और होना चाहिए। अगर मेरा मरीज ठीक हो गया तो मैं समझता हूं कि चिकित्सक के रूप में मेरा फर्ज पूरा हो गया। मरीज के ठीक होने पर मुझे जो संतुष्टि मिलती है वहीं मेरे लिए सबसे बड़ा ईनाम है।