- डॉ. समीर कौल, अध्यक्ष, बीसीपीबीएफ - द कैंसर फाउंडेशन
पिपैक (पीआईपीएसी) क्या है?
प्रेशराइज्ड इंट्रा पेरिटोनियल एयरोसोल कीमोथेरेपी (पीआईपीएसी) कैंसर के उपचार में एक अभूतपूर्व कामयाबी है। इसके तहत कैंसर को नष्ट करने के लिए कीमाथेरेपी को स्प्रे के रूप में दबाव के साथ पेट की गुहा और छाती गुहा जैसे शरीर में सीमित स्थानों तक पहुंचाया जाता है, जो वहां साधारण लैप्रोस्कोप के माध्यम से फैल गए हैं। यह थेरेपी अंडाशय, बृहदान्त्र, पेट, अपेंडिक्स के कैंसर के इलाज के लिए सबसे उपयुक्त है जो एडवांस स्टेज में है और जिसमें पेरिटोनियल गुहा भी शामिल है, और जिसका इलाज करने में अन्य पारंपरिक चिकित्सा विफल रहती हैं। यह वैसे कैंसर के इलाज में अत्यधिक प्रभावी है जो पेट की गुहा और छाती गुहा की लाइनिंग से उत्पन्न होता है, जिसे मेसोथेलिओमास कहा जाता हैकैंसर के वैसे मामलों में जिनमें उपचार की पहली विधि के तहत वर्तमान में तीव्र कीमोथेरेपी दी जाती है, ऐसी विधि से असंतोषजनक परिणाम प्राप्त होता है। इसके अलावा, कई बार कीमोथेरेपी देने पर रोगी कमजोर हो जाते हैं तथा प्रभावित जगह पर तरल जमा हो जाता हैं। इस स्थिति को एस्साइटिस (जलोदर) कहा जाता हैं। ऐसे मामलों में पीआईपीएसी रोगियों के लिए अत्यधिक फायदेमंद है क्योंकि यह चिकित्सा रोग को घटाती हैऔर रोग के लक्षणों को कम करके मरीज के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाती है। चूंकि पीआईपीएसी प्रक्रिया के दौरान संभावित एनजीएस अध्ययनों के लिए बायोप्सी लेने के अलावा कोई सर्जरी नहीं की जाती हैं। इसलिए यह एक ऐसी चिकित्सकीय प्रक्रिया है जिसमें नहीं के बराबर इनवैसिव प्रक्रिया की जाती है और यही इस ऑपरेशन की खासियत हैपीआईपीएसी कैंसर के उन्नत मामलों में इलाज के लिए लोकप्रियता हासिल कर रही हैआज कैंसर के इलाज के लिए सीआरएस, एचआईपीईसी और तीसरी पंक्ति की कीमोथेरपी सहित अन्य उपचार मॉड्यूल्स का उपयोग किया जा रहा है लेकिन इनसे असंतोषजनक परिणाम सामने आते हैं। सर्जिकल उपचार - सीआरएस और एचआईपीईसी व्यापक सुपरमेजर सर्जरी हैं, जो 10 घंटे से अधिक समय तक चलती हैं और जिनके तहत विभिन्न अंगों में चीर-फाड़ की जाती है और 8 से 10 यूनिट रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है तथा मरीज को 3 सप्ताह से अधिक समय तक अस्पताल में रहना पड़ता हैइस तरह की जोखिम भरी प्रक्रिया करने के बाद भी, जटिलता दर अभी भी काफी अधिक है और इसमें लगभग 9 लाख रूपए का खर्च आता है। इसी तरह, तीसरी पंक्ति की कीमोथेरपी भी बहुत प्रभावी नहीं हैं और मरीजों को कई दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ता है। क्लासिकल इंद्रापेरिटोनियल कीमोथेरेपी भी पीआईपीएसी की तरह प्रभावी नहीं है क्योंकि पीआईपीएसी की तुलना में इसमें गुहाओं के अंदर दवाइयां सही तरीके से नहीं पहुंचती और बीमारी से प्रभावित भाग में दवाइयां भीतर तक प्रविष्ट नहीं कर पाती है।
विकिरण चिकित्सा - बहुत कम इनवैसिव होने के बावजूद, नवीनतम साइबरनाइफ और गामा नाइफ रेडियोसर्जरी उदर या छाती के बाहरी हिस्से के कैंसर की व्यापक रूप से उन्नत रोग स्थितियों में फायदेमंद नहीं है, जबकि शरीर के अन्य भागों में बीमारी के कम बढ़ने के मामलों में ही फायदेमंद हैंमाइक्रोवेव एब्लेशन का उपयोग यकृत या कभी-कभी अन्य अंगों में छोटे ट्यूमर के इलाज के लिए किया जाता है लेकिन उन्नत कैंसर में यह बेकार है। पीआईपीएसी वर्तमान में पेरिटोनियम और एल्यूरा तक फैल चुके कैंसर के मामलों में इलाज की जरूरत की पूर्ति करती है। ऐसे कैंसर के मामले में इस समय कुछ बेहतर इलाज उपलब्ध नहीं है। अध्ययनों से पता चलता हैकि यह पेट के व्यापक तौर पर फैले कैंसर को कम करने और बाद में सीआरएस और एचआईपीईसी जैसी उपचारात्मक प्रक्रियाओं को उपयुक्त बनाने के लिए यह सहायक चिकित्सा के रूप में कार्य कर सकती है। यह बहुत सारे वैसे रोगियों को उपचार प्रदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण विधि है जिनके लिए कोई विकल्प नहीं होते हैं। उपरोक्त उपचार मॉड्यूल की तुलना में, पीआईपीएसी ऑन्कोलॉजिस्ट के लिए सर्वश्रेष्ठ गेम चेंजर के रूप में उभर रही है।
इसके निम्नलिखित फायदे हैं -
1. कोई जटिलता नहीं / सुरक्षित प्रक्रिया - पीआईपीएसी में वस्तुतः कोई जटिलता नहीं होती है, और उपचार का उद्देश्य उपचारात्मक के बजाय दर्द से राहत दिलाना है।
2. कम खर्चीला - अन्य उपचारों की तुलना में, पीआईपीएसी पर 3 लाख से कम खर्च बैठता है। 3. कम से कम समय तक हास्पीटल में रहने की जरूरत - तीसरी पंक्ति की कीमोथेरपी के मामले में मरीज को कम से कम 2 से 3 सप्ताह अस्पताल में रहने की जरूरत होती है जबकि पीआईपीएसी की स्थिति में मरीज को केवल एक दिन अस्पताल में रहने की जरूरत होती है। 4. जल्दी स्वास्थ्य लाभ - कम से कम चीरा लगाए जाने तथा और ट्यूमर के कम होने के कारण, ट्यूमर को ऑपरेट करने लायक बना दिए जाने के कारण मरीज तेजी से स्वास्थ्य लाभ करता है और वह जल्दी बेहतर स्थिति में आ जाता है। भारत में पीआईपीएसी की संभावनाएं यह तकनीक हाल ही में प्रोफेसर मार्क रूबेन्स द्वारा ट्यूबिनर्जन जर्मनी में विकसित की गई और अभी भी विकसित हो रही हैं। इसके पक्ष में ठोस सबूतों को जुटाने के लिए कई नैदानिक परीक्षण चल रहे हैंदुनिया के कुछ देशों जैसे फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका के कुछ चिकित्सा केन्द्रों को इस नई तकनीक का अनुभव है और भारत में हमारा केंद्र उनमें से एक है। जैसे-जैसे अधिक से अधिक केंद्र इस विशेषज्ञता को हासिल करेंगे यह अधिक से अधिक लोकप्रिय होता जाएगा।
प्राथमिक कैंसर के प्रकार के आधार पर, पीआईपीएसी थेरेपी के परिणाम भिन्न – भिन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, उन्नत (स्टेज चार) ओवरी के कैंसर के मामलों में, वर्तमान में इस्तेमाल किए जा रहे अन्य तरीकों की तुलना में इस विधि से इलाज करने पर प्रतिक्रिया की दर बहुत अधिक (70 प्रतिशत से अधिक होती है तथा मरीज के जीवित रहने की दर (14 माह) भी बेहतर होती है। अपेंडिक्स एवं कोलोन कैंसर के मामले में भी इसी तरह के उल्लेखनीय परिणाम आते हैं, लेकिन गैस्ट्रिक कैंसर के मामलों में प्रतिकूल जीव विज्ञान के कारण परिणाम इतने अच्छे नहीं आते हैं। पीआईपीएसी जीवन की गुणवत्ता के मामले में महत्वपूर्ण रूप से सुधार लाता परिणाम इतने अच्छे नहीं आते हैं। पीआईपीएसी जीवन की गुणवत्ता के मामले में महत्वपूर्ण रूप से सुधार लाता हैं।
नैदानिक परिणाम और रोगी की संतुष्टि
ओवरी, कोलोन और एपेंडिकुलर कैंसर के उन्नत चरणों से पीड़ित कई रोगियों में आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त हुए हैं। चूंकि इसके बिल्कुल ही दुष्प्रभाव नहीं होते हैं वैसे में मरीज अस्पताल से घर जाने पर आम तौर पर संतुष्ट और खुश रहते हैं। वे 6 सप्ताह या उसके बाद इस प्रक्रिया के लिए दोबारा अस्पताल आते हैं। पीआईपीएसी के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचा इसके लिए लैमिनर एयरफ्लो से युक्त एक ऑपरेटिंग रूम की आवश्यकता होती है या ऑपरेटिंग रूम में हेपा फिल्टर फिट किया जाता है ताकि कीमोथेरेपी के छोटे एयरोसोल कण अवशोषित हो जाएं। लैप्रोस्कोपिक कार्ट और स्कोप, एक डबल चेंबर हाई प्रेशर इंजेक्टर, वाष्प निकालने के लिए एक बफेलो फिल्टर और विकसित एरोसोलिसर जिसे कैपनोपेन कहा जाता है, की जरूरत होती हैं। इसके अलावा इस प्रक्रिया को अंजाम देने वाले सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट को प्रशिक्षित किया जाना चाहिएयह प्रक्रिया सामान्य एनेस्थिसिया के तहत की जाती है।