योग आसन और प्राणायाम के नियमित अभ्यास से आप अपने श्वसन तंत्र और हृदय को स्वस्थ रख सकते हैं, फेफड़ों की कार्यक्षमता और रक्त परिसंचरण को बढ़ा सकते हैं। इससे आपको श्वसन तंत्र और हृदय संबंधी रोगों से भी प्रभावी तरीके से सुरक्षित रह सकते हैं।
योग एक प्राचीन अभ्यास है, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है। योग का श्वसन तंत्र और हृदय संबंधी, दोनों प्रणालियों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। योग आसन और प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से इन प्रणालियों की दक्षता और कार्यक्षमता में काफी वृद्धि हो सकती है, जिससे समग्र स्वास्थ्य बेहतर होता है और लचीलापन बढ़ता है।
श्वसन तंत्र पर योग का प्रभाव
योग के नियमित अभ्यास से श्वसन तंत्र बेहतर तरीके से काम करता है, जिससे श्वसन तंत्र में होने वाले संक्रमण, अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है। श्वसन प्रणाली पर योग के लाभों में से प्रमुख हैं - लंग वॉल्यूम और कपेसिटी में सुधार। इसमें टाइडल वॉल्यूम, वाइटल कपेसिटी, अधिकतम वेंटिलेटर वॉल्यूम और फोर्स्ड वाइटल कपेसिटी आदि में सुधार भी शामिल हैं। ये पैरामीटर फेफड़ों की ऑक्सीजन लेने और कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालने की क्षमता को दर्शाते हैं, जो समग्र स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
विभिन्न योग आसन, जो विशेष रूप से छाती के विस्तार और संकुचन पर केंद्रित हैं, श्वसन क्रिया को सीधे प्रभावित करते हैं। ताड़ासन, त्रिकोणासन, भुजंगासन, और धनुरासन जैसे आसन छाती के विस्तार में योगदान करते हैं और पोस्चर संबंधी दोषों को ठीक करने में मदद करते हैं, जिससे लंग वॉल्यूम और कपेसिटी बढ़ते हैं और सांसें गहरी हो जाती हैं।
डायाफ्राम और इंटरकोस्टल मांसपेशियों सहित श्वसन तंत्र की मांसपेशियों को मजबूत करने में यौगिक श्वास तकनीक और प्राणायाम महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस दौरान श्वास पर नियंत्रण हासिल करने से श्वसन तंत्र की मांसपेशियों की ताकत बढ़ती है, जिससे फेफड़ों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। इसके परिणामस्वरूप, फोर्स्ड एक्सपिरेटरी वॉल्यूम और मैक्सिमम वॉल्यूंटरी वेंटिलेशन आदि के बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं।
इसके अलावा, प्राणायाम और आसनों के अभ्यास से रक्त परिसंचरण को बढ़ावा मिलता है, जिससे सभी महत्त्वपूर्ण अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित होती है।
हृदय स्वास्थ्य पर योग का प्रभाव
हृदय को स्वस्थ रखने में भी योग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चाहे स्थिरता प्रदान करने वाले आसनों का अभ्यास हो या गतिशीलता प्रदान करने वाले, इन दोनों से हृदय-प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। रिलैक्स करने वाले आसन जैसे कि शवासन के अभ्यास से शांति और विश्राम की स्थिति उत्पन्न होती है। इससे हृदय गति, रक्तचाप की नियमितता बनी रहती है, साथ ही सिंपथेटिक और पैरा-सिंपथेटिक नर्वस सिस्टम के बीच संतुलन स्थापित होता है। इससे बेसल हार्ट बीट और ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद मिलती है।सूक्ष्म व्यायाम जैसे वार्म-अप अभ्यास लक्षित क्षेत्रों में रक्त प्रवाह को बढ़ाते हैं, परिसंचरण को बढ़ाते हैं और शरीर को एडवांस आसनों के लिए तैयार करते हैं। इसके विपरीत, एडवांस आसन का अभ्यास हृदय प्रणाली को सक्रिय करता है और हृदय गति को बढ़ाता है।
योग के नियमित अभ्यास से रक्त प्रेशर, लिपिड प्रोफाइल और समग्र कार्डियोवेस्कुलर संबंधी मापदंडों में सुधार देखा गया है। योग हृदय की मांसपेशियों को मजबूत बनाने में भी मदद करता है। इससे हृदय पूरे शरीर में रक्त को अधिक कुशलता से पंप करता है।
हाई ब्लड प्रेशर वाले बरतें विशेष सावधानी
हालांकि, इस बात पर ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है कि हाई ब्लड प्रेशर जैसी स्थिति में इन्वर्टेड पोज वाले कुछ आसन जैसे कि सर्वांगासन, विपरीत करणी, हलासन, और मयूरासन नहीं करने चाहिए। ये आसन हृदय प्रणाली पर दबाव बढ़ा सकते हैं और पहले से दिल की बीमारी से ग्रस्त लोगों के लिए जोखिम हो सकता है।
योग के माध्यम से समग्र स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त करें
अगर आप अपनी दिनचर्या में योग को शामिल करते हैं तो इससे आपको श्वसन और हृदय संबंधी कई लाभ मिलते हैं। आसन और प्राणायाम तकनीकों के माध्यम से, फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार आता है, रक्त संचार बेहतर होता है और दिल स्वस्थ रहता है। कुल मिलाकर, योग विभिन्न श्वसन और हृदय संबंधी स्थितियों के प्रबंधन और रोकथाम के लिए एक शक्तिशाली उपाय है, जो समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है और दीर्घायु बनाता है।